पाये तेरी गोद में, मैंने चारों धाम !!
तेरे आँचल में छुपा, कैसा ये अहसास !
सोता हूँ माँ चैन से, जब होती हो पास !!
माँ ममता की खान है, धरती पर भगवान !
माँ की महिमा मानिए, सबसे श्रेष्ठ-महान !!
माँ कविता के बोल-सी,कहानी की जुबान !
दोहो के रस में घुली, लगे छंद की जान !!
माँ वीणा की तार है, माँ है फूल बहार !
माँ ही लय, माँ ताल है,जीवन की झंकार !!
माँ ही गीता, वेद है, माँ ही सच्ची प्रीत !
बिन माँ के झूठी लगे, जग की सारी रीत !!
माँ हरियाली दूब है, शीतल गंग अनूप !
मुझमे तुझमे बस रहा, माँ का ही तो रूप !!
माँ तेरे इस प्यार को, दूँ क्या कैसा नाम !
पाये तेरी गोद में, मैंने चारों धाम !!
✍ प्रियंका सौरभ
कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार