बिहार विधानसभा चुनाव में जदयू औऱ भाजपा के बीच सीटों को लेकर लगभग सहमति बन चुकी है। लोजपा को मनाने की तमाम कोशिशें बेकार साबित हुईं और लोजपा ने अकेले ही चुनावी अखाड़े में दांव आजमाने की तैयारी कर ली है। लोजपा में चिराग पासवान के नेतृत्व में ये पहला विधानसभा का चुनाव लड़ा जा रहा है। 2015 के विधानसभा चुनाव में एनडीए गठबंधन के अंदर भारतीय जनता पार्टी, लोक जनशक्ति पार्टी, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा शामिल थे। वहीं महागठबंधन में जनता दल यूनाइडेट, राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस शामिल थीं। 2015 के चुनाव में भाजपा को 53, लोजपा को 2, रालोसपा को 2 और हम (सेक्यूलर) को एक सीट पर जीत मिली थी। वहीं, महागठबंधन में जदयू को 71, राजद को 80 औऱ कांग्रेस को 27 सीटों पर जीत हासिल हुई थी।
2015 के चुनाव में जीत महागठबंधन की हुई थी औऱ महागठबंधन को कुल वोट का करीब 43 फीसदी हासिल हुआ था। इसमें आरजेडी को 18.4 फीसदी, जेडीयू को 16.8 और कांग्रेस को 6.7 फीसदी वोट मिले थे। दूसरी तरफ एनडीए को केवल 33 फीसदी वोट ही मिले थे। इसमें बीजेपी को 24.4 प्रतिशत, लोजपा को 4.8, उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा को 2.4 और मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा को 2.2 प्रतिशत वोट मिले थे।
इस बार एनडीए से उपेंद्र कुशवाहा बाहर हैं तो वहीं लोजपा ने अलग ताल ठोंक दिया है। अगर भाजपा और जदयू के कुल वोट शेयर को जोड़ दिया जाए तो यह करीब 41.2 फीसदी हो जा रहा है वहीं, जीतन राम मांझी की हम के वोट शेयर को जोड़ देने से यह करीब 43.5 फीसदी होता है यानी पिछली बार की तुलना में वोट प्रतिशत ज्यादा दिखाई दे रहा है। इस तरह से अगर लोजपा अलग भी चुनाव लड़ती है तो एनडीए की जीत सुनिश्चित है। हालांकि लोजपा ने साफ किया है कि वह एनडीए में बने रहेंगे यानी चुनाव परिणाम के बाद लोजपा बिहार एनडीए के साथ मिलकर सरकार में शामिल हो सकती है। वैसे जदयू के मुखिया नीतीश कुमार से लोजपा प्रमुख चिराग पासवान की तल्ख़ी लगातार बढ़ती जा रही है इसलिए इसकी संभावना कम ही दिखाई देती है कि लोजपा का फिलहाल बिहार एनडीए में स्वागत होगा। राजनीति के जानकार ये भी मानते हैं कि लोजपा जदयू के खिलाफ़ उम्मीदवार उतारना चाहती है ताकि जदयू को जरूरी जादुई आंकड़े से काफी दूर किया जा सके। अब ये देखना दिलचस्प होगा कि वीआईपी के मुकेश सहनी का क्या रुख होता है, क्योंकि लोजपा के बाहर होने की सूरत में एनडीए डैमेज कंट्रोल करने की नियत से वीआईपी को अपने पाले में कर सकती है।
आनंद कौशल, वरिष्ठ पत्रकार सह मीडिया स्ट्रैटजिस्ट
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं)