कुदरत की पीर :- ‘हे मानव अब तो संभल जा…’

वैश्विक आर्थिक गतिविधियों में ठहराव का यह दौर बेशक बहुत चिंताजनक है, लेकिन पर्यावरण पर सकारात्मक असर पड़ा है। जाने-अनजाने मनुष्य पर्यावरण के खिलाफ जो काम करता था, वह पिछले कुछ महीनों से बंद हो गये। इसके बाद ताजी हवा के झोंकों, साफ नदियों और नीले आसमान की दुनियाभर से जो तस्वीरें आयीं, उन्हें देख लगा मानो कुदरत पुकार के कह रही हो, ‘हे मानव अब तो संभल जा…।’

डॉo सत्यवान सौरभ,

लॉकडाउन के दौरान आर्थिक पक्ष तो निश्चित तौर पर भयावह रहा है, लेकिन लगता है कुदरत ने तो इन दिनों जैसे खुल के बाहें पसारी दी हों। कहा जा रहा है कि जीवाश्म ईंधन उद्योग से वैश्विक कार्बन उत्सर्जन इस साल रिकॉर्ड 5% की कमी के साथ 2.5 बिलियन टन घट सकता है। कोरोना वायरस के कारण यात्रा, कार्य और उद्योग पर अभूतपूर्व प्रतिबंधों ने हमारे घुटे हुए शहरों में अच्छी गुणवत्ता वाली हवा प्रदान कर दी है। प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन स्तर सभी महाद्वीपों में गिर गए हैं। कोरोना के कारण हुए लॉकडाउन के दौरान औद्योगिक और परिवहन उत्सर्जन और अपशिष्ट कम हो गए हैं, और औसत दर्जे का डेटा वायुमंडल, मिट्टी और पानी में प्रदूषकों के समाशोधन का कार्य कर रहा है। यह प्रभाव कार्बन उत्सर्जन के विपरीत भी है, जो एक दशक पहले वैश्विक वित्तीय दुर्घटना के बाद 5 प्रतिशत तक बढ़ गया था। चीन और उत्तरी इटली ने भी अपने नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के स्तर में महत्वपूर्ण कमी दर्ज की है। लॉकडाउन के परिणामस्वरूप, मार्च और अप्रैल में दुनिया के प्रमुख शहरों में वायु गुणवत्ता स्तर में नाटकीय रूप से सुधार हुआ। कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और संबंधित ओज़ोन के गठन, और पार्टिकुलेट मैटर में फैक्टरी और सड़क यातायात उत्सर्जन में कमी के कारण हवा की गुणवत्ता में बड़े पैमाने पर सुधार हुआ। जल निकाय भी साफ हो रहे हैं और यमुना और गंगा नदियों में देशव्यापी तालाबंदी के लागू होने के बाद से महत्वपूर्ण सुधार दिखा है।

इस दौरान यह तो दिखा है कि हम चाहें तो अपने व्यवहार में बदलाव ला सकते हैं। यह बदलाव कभी सरकार की सख्तियों और कभी खौफ के चलते हुआ है। हमें जीवन जीने के न्यूनतम दृष्टिकोण को अपनाने के साथ निम्न-कार्बन जीवनशैली में बदल करना होगा। हो सकता है कि हमें विकास को फिर से परिभाषित करने की आवश्यकता हो जो पारिस्थितिक सम्पन्नता के संदर्भ में मापी जा सके न कि बढ़ती आय के स्तर के रूप में। आखिरकार, यह अधिक टिकाऊ और धारणीय जीवन जीने का आखिरी मौका हो सकता है। हमें पृथ्वी के सभी तत्वों को संरक्षण देने का संकल्प लेना चाहिए। अब समय आ गया है कि हमें धरती मां की पुकार सुननी होगी। मां का दर्जा दिया है तो उसके साथ मां जैसी भावना से पेश भी आना होगा।

धरती खाली-सी लगे, नभ ने खोया धीर! अब तो मानव जाग तू, पढ़ कुदरत की पीर !


अभी नहीं चेतेंगे तो आधुनिक युग के महान वैज्ञानिक और ब्रह्मांड के कई रहस्यों को सुलझाने वाले खगोल विशेषज्ञ स्टीफन हॉकिंग की भविष्यवाणी हमें झेलनी होगी। उनका मानना था कि पृथ्वी पर हम मनुष्यों के दिन अब पूरे हो चले हैं। हम यहां दस लाख साल बिता चुके हैं। पृथ्वी की उम्र अब महज़ दो सौ से पांच सौ साल ही बच रही है। इसके बाद या तो कहीं से कोई धूमकेतु आकर इससे टकराएगा या सूरज का ताप इसे निगल जाने वाला है, या कोई महामारी आएगी और धरती खाली हो जाएगी। हॉकिंग के अनुसार मनुष्य को अगर एक और दस लाख साल जीवित बचे रहना है तो उसे पृथ्वी को छोड़कर किसी दूसरे ग्रह पर शरण लेनी होगी। पृथ्वी का मौसम, तापमान और यहां जीवन की परिस्थितियां जिस तेज रफ्तार से बदल रही हैं, उन्हें देखते हुए उनकी इस भविष्यवाणी पर भरोसा न करने की कोई वजह नहीं दिखती।

ज़रूरी है परिवहन और उद्योग की नयी प्रणाली
कोरोनो वायरस के कारण बंदी के साये में आये देशों में परिवहन और उद्योग बंद रहे। इसके चलते वायु प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में महत्वपूर्ण कमी आई। इसलिए जब तक ऐसा रहेगा कार्बन उत्सर्जन अपेक्षाकृत कम रहेगा। यह एक टिकाऊ पर्यावरणीय सुधार है। लेकिन साथ ही हमें अर्थव्यवस्था को भी गति देनी होगी, इसलिए हमें परिवहन और उद्योग की नयी प्रणाली की ओर ध्यान देना होगा। एक अनुमान के मुताबिक विश्व स्तर पर, वायु प्रदूषण के कारण हर साल 70 लाख लोगों की मौत हो जाती है। इस समस्या को दूर करने के लिए भारत में भी एक जागृत आह्वान होना चाहिए। वायु प्रदूषण को कम करने का लॉक डाउन आदर्श  तरीका नहीं है, लेकिन यह साबित करता है कि वायु प्रदूषण मानव निर्मित है। अब हमे यह पता चल गया है कि हम प्रदूषण को कम कर सकते हैं। मौका है हमें अपने परिवहन और उद्योग-धंधों के परिचालन के नये तरीकों पर विचार करना होगा।

तत्काल उपाय ज़रूरी
अल्पकालिक जलवायु प्रदूषक जैसे कि ब्लैक कार्बन, मीथेन, हाइड्रोफ्लोरोकार्बन और ट्रोपोस्फेरिक ओजोन के कारण ग्लोबल वार्मिंग का खतरा बढ़ता है। यह खतरा अभी भी कम नहीं हुआ है। हमें उन उपायों पर तुरंत कारगर कदम उठाना शुरू कर देना चाहिए जो अल्पकालिक जलवायु प्रदूषक उत्सर्जन को कम करने में मददगार हों। ये उपाय से जलवायु के साथ-साथ लाखों लोगों के स्वास्थ्य की बेहतरी और आजीविका के लिए असरकारी होंगे। असल में जलवायु परिवर्तन से जनता के लिए खतरे को भांपने में हम विफल रहे हैं, जिससे तथ्यों का व्यापक खंडन हुआ है। आवास और जैव विविधता का नुकसान मानव समुदायों में फैलने वाले घातक नए वायरस और कोविड-19 जैसी बीमारियों के लिए स्थितियां बनाता है। अगर पर्यावरण के खिलाफ हमारी यही स्थिति रही और हम अब भी नहीं चेते तो हमारी कृषि प्रणालियों को गहरा धक्का लगेगा।

स्थायी तरीके खोजने का समय
सामान्य रूप से जीवाश्म ईंधन को खोदना, जंगलों को काटना और लाभ, सुविधा और खपत के लिए जीवमात्र के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करना-विनाशकारी जलवायु परिवर्तन को बढ़ा रहा है। अब इस विनाशकारी प्रणाली को छोड़ने और हमारे ग्रह के निवासियों के लिए स्थायी तरीके खोजने का समय आ गया है।

लॉकडाउन का करना होगा अभ्यास
कोरोना वायरस और उससे उपजी स्थितियों से संकेत मिला है कि हमें भविष्य में और भी बड़े लॉकडाउन के लिए अभ्यास करना होगा। यह प्रकृति से हमारे लिए एक जगने की पुकार है-हमारे जीने के तरीके में बदलाव का संकेत है। कोई भी कोरोनोवायरस के लिए भौगोलिक रूप से अलग नहीं है और जलवायु परिवर्तन के लिए भी यही सच है। यदि हम पर्यावरण के अधिकारों का सम्मान नहीं करते हैं तो कोविड-19 जैसे महामारी बहुत अधिक बार आएंगी। वैश्विक चुनौतियों के लिए साहसिक परिवर्तनों की आवश्यकता होती है। वे परिवर्तन जो केवल सरकार या कंपनियों द्वारा सक्रिय नहीं किए जा सकते हैं, बल्कि उन्हें व्यक्तिगत व्यवहार परिवर्तन की भी आवश्यकता होती है। हमें दोनों की जरूरत है।

 
 डॉo सत्यवान सौरभ, 
रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस, दिल्ली यूनिवर्सिटी, 
कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,
(उपयुक्त आलेख में दिए गये तथ्य और विचार लेखक के निजी हैं)

Related posts

Leave a Comment