भागलपुर :- तारा महाविद्या साधना दुर्गा तंत्र में दस महाविद्याओं को शक्ति के दस प्रधान स्वरूपों के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। ये दस महाविद्याएँ हैं:- “श्रीकाली तारा महाविद्या षोडसी भुवनेश्वरी भैरवी छिन्नमस्ता च विद्या धूमावती तथा श्रीबगलासिद्धिविद्या च मातंगी कमलात्मिका” एता दसमहाविद्या: सिद्धि विद्या प्रकीर्तिता:।। इस सम्बन्ध में अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त ज्योतिष योग शोध केन्द्र, बिहार के संस्थापक दैवज्ञ पंo आरo केo चौधरी उर्फ बाबा-भागलपुर, भविष्यवेत्ता एवं हस्तरेखा विशेषज्ञ ने सुगमतापूर्वक बतलाया कि:- महाविद्याओं को दो कुलों में बांटा गया है:- पहला काली कुल तथा दूसरा श्रीकुल।
काली कुल की प्रमुख महाविद्या है तारा। इस साधना से जहाँ एक ओर आर्थिक समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है, वहीं ज्ञान व विद्या का विकास भी होता है। इस महाविद्या के साधकों में जहाँ महर्षि वशिष्ठ जैसे प्राचीन साधक रहे हैं, वहीं वामाक्षेपा जैसे साधक वर्तमान युग में बंगाल प्रांत में हो चुके हैं।
विश्व प्रसिद्ध तांत्रिक तथा लेखक गोपीनाथ कविराज के परमादरणीय गुरुदेव स्वामी विशुद्धानंद जी तारा साधक थे। इस साधना के बल पर उन्होंने अपनी नाभी से कमल की उत्पत्ति कर के दिखाया था।
तिब्बत को साधनाओं का गढ़ माना जाता है। तिब्बती लामाओं, या गुरुओं के पास साधनाओं की अतिविशिष्ट तथा दुर्लभ विधियाँ आज भी मौजूद हैं। तिब्बती साधनाओं के सर्वश्रेष्ठ होने के पीछे भी उनकी आराध्या देवी मणिपद्मा का ही आशीर्वाद है। मणिपद्मा तारा का ही तिब्बती नाम है।
इसी साधना के बल पर वह असामान्य तथा असंभव लगने वाली क्रियाओं को भी करने में सफल हो पाते हैं। तारा महाविद्या साधना सबसे कठोर साधनाओं में से एक है। इस साधना में किसी प्रकार के नियमों में शिथिलता स्वीकार्य नहीं होती। इस विद्या के तीन रूप माने गये हैं तथा इनके भैरव हैं अक्षोम्य ऋषि।
1. नील सरस्वती 2. एक जटा 3. उग्र तारा।ऊँ एकजटा नीलसरस्वती उग्रतारा दैव्यै भियो नमः स्वाहा।
बिहार के सहरसा जिले में प्रसिद्ध महिषी ग्राम में माँ उग्रतारा का सिद्धपीठ विद्यमान है। वहाँ तारा, एकजटा तथा नीलसरस्वती की तीनों मूर्तियों एक साथ हैं। मध्य में बड़ी मूर्ति व दोनों तरफ छोटी मूर्तियाँ हैं।
नील सरस्वती माता तारा के नील सरस्वती स्वरूप की साधना :- विद्या प्राप्ति तथा ज्ञान की पूर्णता के लिये सर्वश्रेष्ठ है। इस साधना की पूर्णता साधक को जहाँ ज्ञान के क्षेत्र में अद्वितीय बनाती है, वहीं साधक को स्वयं में कवित्व शक्ति भी प्रदान कर देती है, अर्थात वह कविता, या लेखन की क्षमता भी प्राप्त कर लेता है। इस साधना से निश्चित रूप से मानसिक क्षमता का विकास होता है।
यदि इसे नियमित रूप से किया जाए तो विद्यार्थियों के लिए अत्यंत लाभप्रद होती है। नीलसरस्वती बीज मंत्र “ऐं” यह बीज मंत्र छोटा है, इसलिए करने में आसान होता है। जिस प्रकार एक छोटा सा बीज अपने आपमें संपूर्ण वृक्ष समेटे हुए होता है, ठीक उसी प्रकार यह छोटा सा बीज मंत्र तारा के पूरे स्वरूप को समेटे हुए है।
साधना विधि इस मंत्र का जाप नवरात्रि में करना सर्वश्रेष्ठ होता है तथा महाकाल -संहिता के काम-कालाखण्ड में तारा रहस्य वर्णित है, जिसमें तारारात्रि में तारा की उपासना का विशेष महत्व है। चैत शुक्ल नवमी की रात्रि तारारात्रि कहलाती है।