सुकुवां-ढुकुवां बांध को देश की सबसे पुरानी और बेहतरीन इंजीनियरिंग सिंचाई परियोजना के रूप में चुना गया है। इसे विश्व स्तरीय संगठन इंटरनेशनल कमिशन ऑन इरिगेशन एंड ड्रेनेज (आईसीआईडी) द्वारा वर्ल्ड हेरिटेज इरीगेशन कैटेगरी में चुना गया है। इसने पिछले साल उन जलाशयों की पहचान की थी, जो 100 साल बाद भी काम कर रहे हैं।
करीब 112 साल पुराना सुकुवां-ढुकुवां बांध आज भी कर रहा काम
करीब 112 वर्ष पुराना सुकुवां-ढुकुवां बांध आज भी अपनी खूबसूरती और बेहतरीन इंजीनियरिंग के चलते देश के चुनिंदा जलाशयों में शुमार है। पिछले वर्ष इंटरनेशनल कमीशन ऑन इरिगेशन एंड ड्रेनेज (आईसीआईडी) ने पूरे दुनिया के सबसे पुरानी बेहतरीन सिंचाई परियोजनाओं को चिन्हित करने की कवायद शुरू की थी। ऐसे में केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) ने उत्तर प्रदेश से सुकुवां ढुकुवां बांध का नाम भेजा।
बांध की संरचना में आज तक नहीं हुआ कोई बदलाव
बेतवा नदी पर स्थित यह बांध वर्ष 1909 में बनाया गया था। उसके बाद से लेकर अब तक इसकी संरचना में आज तक कोई बदलाव नहीं हुआ। इसी आधार पर इसे सबसे बेहतरीन संरचना के तौर पर चुना गया है। गौरतलब हो, केंद्रीय जल आयोग ने बीते साल अगस्त में इसके नाम की सिफारिश की थी। अब इस प्राचीन सिंचाई स्थल के वर्ल्ड हेरिटेज इरीगेशन कैटेगरी में जुड़ने से झांसी में पर्यटन को बढ़ावा मिलने की खासी उम्मीद की जा रही है।
देश-विदेश से पर्यटकों की बढ़ेगी आवाजाही
सुकुवां-ढुकुवां बांध झांसी के बबीना प्रखंड में स्थित है। इंजीनियरों का कहना है कि इसे संरक्षित करने से यहां पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा। सूची में शामिल होने के बाद यहां पहुंच मार्ग चौड़ा हो जाएगा। साथ ही साथ अब इसकी कनेक्टिविटी को बेहतर किया जाएगा। इसके अलावा यहां सुरक्षा के लिए अब अलग से गार्ड तैनात किए जाएंगे। वहीं देश-विदेश से पर्यटकों की आवाजाही भी बढ़ेगी।
वाकयी यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। यह राज्य में एकमात्र सिंचाई संरचना है, जिसे अपनी अद्भुत इंजीनियरिंग के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली है। अब इसे भविष्य में भी इसी रूप में सुरक्षित रखा जाएगा। इसके साथ-साथ आसपास के क्षेत्र का विकास भी इसी पर निर्भर होगा।
हर साल हजारों लोग यहां आते हैं घूमने
इस बांध को देखने के लिए हर साल हजारों लोग यहां आते हैं। मानसून के दौरान जब यहां से करीब तीन लाख क्यूसेक से ज्यादा पानी छोड़ा जाता है तो इसका नजारा देखने लायक होता है। उस दौरान यहां रोजाना हजारों लोग पहुंचते हैं। इसके अंदर बनी सुरंग से करीब पचास फीट की ऊंचाई से गिरता पानी एक अलग ही रोमांच पैदा कर देता है। इतनी पुरानी संरचना होने के बावजूद यह जलाशय जस का तस बना हुआ है। अंग्रेजों के जमाने में लगे गेट और अन्य उपकरण यहां आज भी काम कर रहे हैं।
ऐसा की गई थी बांध की परिकल्पना
सर्वप्रथम 1881-82 में तत्कालीन कार्यपालक अभियंता थॉर्नहिल ने परीछा बांध से कम पानी मिलने पर परीछा से लगभग 112 मील ऊपर बेतवा नदी का सर्वेक्षण किया। इस रिपोर्ट के आधार पर कार्यपालक अभियंता एटकिंसन ने बेतवा नदी के कमान क्षेत्र में वर्ष 1901 में सुकुवां-ढुकुवां बांध का प्रस्ताव रखा था। 8.22 मीटर ऊंचा मौजूदा बांध 2,972 मीटर लंबा है, जिसे 1172 मीटर लंबाई तक चिनाई और चूने के कंक्रीट में बनाया गया है जबकि शेष 1800 मीटर लंबाई मिट्टी से बना है। इसकी मदद से रबी की फसल को भी पानी देने का निर्णय लिया गया। इसके बाद साल 1905 में इसका निर्माण शुरू हुआ। चार साल बाद 1909 में इसका निर्माण पूरा हुआ।