।।वट सावित्री व्रत महत्व व विधि।।

।।वट सावित्री व्रत महत्व व विधि।।

वट सावित्री व्रत इस साल 10 जून, गुरुवार को रखा जाएगा इस दिन सुहागिन महिलाएं व्रत कर पति की लंबी आयु की कामना करती हैं। यह व्रत हर साल ज्येष्ठ माह की अमास्वस्या तिथि के दिन रखा जाता है।शादीशुदा महिलाएं व कुँवारी कन्याएं इस दिन वट वृक्ष के पेड़ की पूजा करती हैं, परिक्रमा करती हैं, और कलावा बांधती हैं. ऐसी मान्यता है कि जो महिलाएं इस व्रत को सच्ची निष्ठा से रखती है, उसे न सिर्फ पुण्य की प्राप्ति होती है, बल्कि उसके पति पर आई सभी घोर विपत्तियों का नाश भी हो जाता है। इस व्रत में पूजन की सामग्री का काफी महत्व होता है।

 

।। वट सावित्री व्रत पूजन सामग्री।।

1 -बांस का पंखा

2 -लाल और पीले रंग का कलावा या कच्चा सूत

3-धूप बत्ती

4- घी-बाती

5-पुष्प माला

6-यथा शक्ति फल

7-कुमकुम या रोली

8-सौभग्य सामग्री

9-लाल रंग का वस्त्र पूजन में बिछावन हेतु ।

10-पूजा के लिए सिन्दूर

11-मीठीपूरियां

12बरगद का फल

13-मिट्टी का कलश उसमें मीठा जल भरा हुआ ।

 

।।वट सावित्री व्रत के लिए शुभ मुहूर्त।।

अमावस्या तिथि प्रारम्भ: 9 जून 2021, दोपहर 01:57 बजे

अमावस्या तिथि समाप्त: 10 जून 2021, शाम 04:22 बजे

हिन्दू धर्म में बरगद के पेड़ को पूजनीय माना जाता है, शास्त्रों के अनुसार बरगद के पेड़ में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवों का वास होता है।और इस वृक्ष का प्रलय में भी विनाश नहीं होता। इसलिए बरगद के पेड़ की आराधना करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है. पुराणों के अनुसार माता सावित्री ने इसी व्रत के पुण्य प्रभाव से अपने पति के प्राणों को यमराज से छुड़ाकर ले आई थीं।

ऐसे में इस व्रत का महिलाओं के बीच विशेष महत्व बताया जाता है।

इस दिन बरगद के पेड़ का पूजन किया जाता है, इस व्रत को स्त्रियां अखंड सौभाग्यवती रहने की मंगलकामना से करती हैं.

।।पूजा की विधि।।

इस दिन शादीशुदा महिलाएं सुबह प्रातः जल्दी उठें और स्नान करें. इसके बाद लाल या पीली साड़ी पहनकर पूरा श्रृंगार तैयार हो जाएं।

अब पूजा का सारा सामान व्यवस्थित तरीके से रख लें और वट (बरगद) के पेड़ के नीचे के स्थान को अच्छे से साफ कर वहां बरगद के पेड़ सावित्री-सत्यवान की मूर्ति स्थापित कर दें।इसके बाद बरगद के पेड़ में जल डालकर उसमें पुष्प, अक्षत, फूल और मिठाई चढ़ाएं. अब वृक्ष में रक्षा सूत्र बांधकर आशीर्वाद मांगें और सात बार परिक्रमा करें।

इसके बाद हाथ में काले चना लेकर इस व्रत का कथा सुनें।

।।वट सावित्री व्रत कथा।।

वट सावित्री व्रत का उल्लेख पौराणिक ग्रंथों- स्कंद पुराण व भविष्योत्तर पुराण में भी विस्तार से मिलता है। महाभारत के वन पर्व में इसका सबसे प्राचीन उल्लेख मिलता है। महाभारत में जब युधिष्ठिर ऋषि मार्कंडेय से संसार में द्रौपदी समान समर्पित और त्यागमयी किसी अन्य नारी के ना होने की बात कहते हैं, तब मार्कंडेय जी युधिष्ठिर को सावित्री के त्याग की कथा सुनाते हैं।

 

।।कथा।।

पुराणों में वर्णित सावित्री की कथा इस प्रकार है- राजर्षि अश्वपति की एकमात्र संतान थीं सावित्री। सावित्री ने वनवासी राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को पति रूप में चुना। लेकिन जब नारद जी ने उन्हें बताया कि सत्यवान अल्पायु हैं, तो भी सावित्री अपने निर्णय से डिगी नहीं। वह समस्त राजवैभव त्याग कर सत्यवान के साथ उनके परिवार की सेवा करते हुए वन में रहने लगीं। जिस दिन सत्यवान के महाप्रयाण का दिन था, उस दिन वह लकड़ियां काटने जंगल गए। वहां मू्च्छिछत होकर गिर पड़े। उसी समय यमराज सत्यवान के प्राण लेने आए। तीन दिन से उपवास में रह रही सावित्री उस घड़ी को जानती थीं, अत: बिना विकल हुए उन्होंने यमराज से सत्यवान के प्राण न लेने की प्रार्थना की। लेकिन यमराज नहीं माने। तब सावित्री उनके पीछे-पीछे ही जाने लगीं। कई बार मना करने पर भी वह नहीं मानीं, तो सावित्री के साहस और त्याग से यमराज प्रसन्न हुए और कोई तीन वरदान मांगने को कहा।

सावित्री ने सत्यवान के दृष्टिहीन माता-पिता के नेत्रों की ज्योति मांगी, उनका छिना हुआ राज्य मांगा और अपने लिए 100 पुत्रों का वरदान मांगा। तथास्तु कहने के बाद यमराज समझ गए कि सावित्री के पति को साथ ले जाना अब संभव नहीं। इसलिए उन्होंने सावित्री को अखंड सौभाग्य वती होने का आशीर्वाद देते हैं और आश्वासन भी देते हैं कि हेवपुत्री तुम्हारे समान निष्ठा से जो व्रती स्त्री इस त्रिदिवसीय विशेषतः आज के दिन अपने सौभाग्य हेतु व्रत करेगी उसका सौभाग्य तुम्हारी तरह अखण्ड बना रहेगा। यह वर देकर सत्यवान को छोड़कर वहां से अंतर्धान हो गए। उस समय मातासावित्री अपने पति को लेकर वट वृक्ष के नीचे ही बैठी थीं।

इसीलिए इस दिन महिलाएं अपने परिवार और जीवनसाथी की दीर्घायु की कामना करते हुए वट वृक्ष को भोग अर्पण करती हैं, उस पर धागा लपेट कर पूजन कर अपने अचल सौभाग्य की कामना करतीं है। तब से यह अलभ्य व्रत सर्व प्रचलन में प्रकाशित हुवा।

 

।। इति शुभम्।।

आचार्य स्वामी विवेकानन्द जी

ज्योतिर्विद , व वास्तुविद सरस् श्री रामकथा व्यास श्री धाम श्री अयोध्या जी संपर्क सूत्र:-9044741252

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