मनु ने इस बार के रविवारीय में कल का साहित्य कैसा था, और आज़ का साहित्य कैसा है और कल का साहित्य कैसा रहेगा उसपर अपनी क़लम चलायी है। कल के साहित्य और आज के
साहित्य के मुद्दे जो मैंने उठाए हैं, वे आज के साहित्यिक परिदृश्य और सोशल मीडिया के प्रभाव को बखूबी उजागर करते हैं। साहित्य का स्वरूप बदल रहा है, और इसके साथ ही इसे देखने, समझने और सराहने का नजरिया भी बदल चुका है। पिछले दो दशकों में सोशल मीडिया ने लेखन को एक नई दिशा दी है। जहां एक ओर यह मंच हर व्यक्ति को अपनी लेखनी प्रस्तुत करने का मौका देता है, वहीं दूसरी ओर यह त्वरित प्रतिक्रियाओं, लाइक्स और शेयरों के आधार पर लेखन को आंका जाने वाला माध्यम भी बन गया है।
पहले के साहित्य और आज के साहित्य में जो बुनियादी अंतर है, वह केवल तकनीकी नहीं, बल्कि दृष्टिकोण और प्रक्रिया का भी है। पहले लेखकों को लिखने से पहले गहन शोध, अध्ययन और अनुभवों से गुजरना पड़ता था। उनकी रचनाएं समाज के गहरे पहलुओं को उजागर करती थीं, और उनमें भविष्य की झलक देखने को मिलती थी। यह सब केवल उनके ज्ञान, अनुभव और समाज की गहरी समझ के कारण संभव होता था।
आज के दौर में सोशल मीडिया ने लेखन को लोकतांत्रिक बना दिया है। अब कोई भी व्यक्ति अपनी भावनाओं, विचारों या अनुभवों को साझा कर सकता है। लेकिन इस खुलेपन के साथ चुनौती यह है कि लेखन का स्तर और गहराई कई बार सतही रह जाती है। सोशल मीडिया की त्वरित प्रतिक्रिया प्रणाली—लाइक्स, कमेंट्स और शेयर—ने लेखकों को गुणवत्ता की बजाय लोकप्रियता की होड़ में डाल दिया है।
नतीजा यह हुआ कि गंभीर और परिपक्व लेखन की जगह तात्कालिक और सतही सामग्री ने ले ली। जो रचनाएं गहरे अर्थ और संदेश लिए हो सकती थीं, वे अब केवल मनोरंजन तक सीमित हो गई हैं।
घोस्ट राइटर्स का विषय भी बेहद रोचक और विचारणीय है। ये वो लेखक होते हैं जिनका नाम कभी सामने नहीं आता, लेकिन उनकी लेखनी किसी और के नाम से प्रकाशित होती है। यह चलन कॉर्पोरेट जगत, सेलेब्रिटीज और कई बार राजनीति में भी देखा जाता है। घोस्ट राइटर्स की समस्या केवल साहित्यिक ईमानदारी की नहीं है, बल्कि यह लेखन के प्रति समाज के दृष्टिकोण को भी दर्शाती है।
ऐसा लगता है जैसे लेखन केवल एक सेवा बनकर रह गया है, जिसे पैसे देकर खरीदा जा सकता है। इससे न केवल असली लेखक की पहचान छिप जाती है, बल्कि साहित्य का मूल उद्देश्य भी कहीं खो जाता है। क्या करे बेचारा ? दाल रोटी की जद्दोजहद भी कोई चीज होती है! सामाजिक और आर्थिक स्तर पर समृद्ध लोग बैठे हुए हैं आपकी दाल रोटी का इंतजाम करने के लिए। बदले में वो आपसे कुछ तो चाहेंगे ही ! मुफ़्त में कहां कुछ मिलता है।
पहले के साहित्यकारों की कृतियां परिपक्व और दूरदर्शी होती थीं। इसका कारण यह था कि वे समाज में हो रहे बदलावों को गहराई से देखते, समझते और फिर लिखते थे। उनकी लेखनी समाज के लिए मार्गदर्शक होती थी। वहीं आज के लेखन में यह परिपक्वता और दूरदृष्टि कम देखने को मिलती है। इसका एक बड़ा कारण यह है कि आज का लेखन अधिक व्यक्तिगत और क्षणिक हो गया है। लोग अपनी भावनाओं को तुरंत व्यक्त करना चाहते हैं, भले ही वे पूरी तरह से परिपक्व न हों।
हो सकता है कि आप मेरी बातों से इत्तेफाक ना रखें! कोई बात नहीं! पर जो सच्चाई है आप उसे नकार नहीं सकते हैं।
आज के दौर में लेखकों और पाठकों को यह समझने की जरूरत है कि साहित्य केवल मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि यह समाज का दर्पण और मार्गदर्शक भी है। यह जरूरी है कि सोशल मीडिया के इस दौर में भी लेखन की गुणवत्ता और गहराई को बनाए रखा जाए।
साथ ही, घोस्ट राइटिंग जैसे चलनों पर भी चर्चा होनी चाहिए ताकि लेखन की गरिमा और ईमानदारी बनी रहे।
भविष्य का साहित्य कैसा होगा, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि हम लेखन को केवल एक माध्यम मानते हैं या इसे समाज को दिशा देने वाला एक साधन।
मेरी बातों का तार्किक आधार स्पष्ट है। जो लोग साहित्य को केवल “लाइक्स” और “शेयर” तक सीमित कर रहे हैं, उन्हें यह समझने की जरूरत है कि साहित्य का उद्देश्य इससे कहीं अधिक है। साहित्य समाज को बदलने की ताकत रखता है, और इसे केवल लोकप्रियता के लिए नहीं लिखा जाना चाहिए।
✒️ मनीश वर्मा’मनु’