छोटे व लघु किसान या ऐसे लोग जिनके पास कृषि योग्य भूमि न होने पर भी आज अन्य विकल्प के माध्यम से अपनी आय में वृद्धि कर रहे हैं। आज देश में मीठी क्रांति इसी दिशा में पहल है। मधुमक्खी पालन और उससे संबद्ध गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए ‘मीठी क्रांति (स्वीट रिवोल्यूशन)’ की परिकल्पना के अनुरूप शहद के निर्यात में वृद्धि आई है। भारत से प्राकृतिक शहद के निर्यात ने अप्रैल-जुलाई 2022 में 2013 की इसी अवधि की तुलना में 257% की शानदार वृद्धि दर्ज की गई है।
कोविड महामारी के बाद शहद मांग में तेजी
देश में पहले भी मधुमक्खी पालन होता रहा है, लेकिन इसके निर्यात के लिए विशेष रूप से फोकस पिछले कुछ वर्षों से ज्यादा है। खासतौर पर कोविड-19 महामारी के बाद दुनिया भर में शहद की प्राकृतिक प्रतिरक्षा बूस्टर विशेषताओं और चीनी के एक स्वस्थ विकल्प के कारण इसकी खपत में कई गुना वृद्धि हुई है। इसी के मद्देनजर एपीडा का लक्ष्य अब नए देशों में गुणवत्ता उत्पादन और बाजार विस्तार सुनिश्चित करके शहद के निर्यात को बढ़ावा देना है। वर्तमान में भारत का प्राकृतिक शहद निर्यात मुख्य रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका के बाजार पर निर्भर है, जो इस निर्यात का 80 प्रतिशत से अधिक हिस्सा है।
स्वरोजगार का बन रहा माध्यम
पीएम मोदी ने भी ‘मन की बात‘ कार्यक्रम में जोर देकर कहा था कि आयुर्वेद में शहद को बहुत महत्व दिया गया है। शहद को अमृत के रूप में वर्णित किया गया है। उन्होंने कहा था कि आज शहद उत्पादन में इतनी संभावनाएं हैं कि व्यावसायिक पाठ्यक्रमों का अध्ययन करने वाले युवा भी इसे स्वरोजगार का माध्यम बना रहे हैं। गौरतलब हो कि बाजार में शहद और मोम की मांग काफी अधिक है।
भारत से 2012-22 में शहद निर्यात
2012-22 में 74,413 मीट्रिक टन (एमटी) प्राकृतिक शहद का निर्यात किया है, जिसका मूल्य 16 करोड़ 37 लाख 30 हजार अमेरिकी डालर है। बता दें कि भारत ने वर्ष 1996-97 में अपना पहला संगठित निर्यात शुरू किया था। वहीं वर्ष 2020 में वैश्विक शहद निर्यात 7.36 लाख मीट्रिक टन दर्ज किया गया था तथा भारत शहद उत्पादक और निर्यातक देशों में क्रमशः 8 वें और 9वें स्थान पर था। 2020 में, कुल शहद उत्पादन 16 लाख 20 हजार मीट्रिक टन आंका गया था और जिसमें सभी पराग (नेक्टर) स्रोतों, कृषि उपजों, वन्य पुष्पों और वन्य वृक्षों से निकाला गया शहद शामिल था।
मीठी क्रांति योजना के तहत किसानों को सहायता
शहद उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सरकार की आत्मनिर्भर भारत पहल के एक हिस्से के रूप में सरकार ने राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन और शहद मिशन (एनबीएचएम) के लिए तीन साल (2020-21 से 2022-23) की अवधि हेतु 500 करोड़ रुपये के आवंटन को मंजूरी दी है। इसके जरिए मीठी क्रांति योजना के तहत किसानों को एक लाख रुपए तक वित्तीय सहायता दी जाती है। इसमें राज्य सरकार द्वारा 80,000 रुपए तक का अनुदान दिया जाता है। 20,000 रुपए का राशि का निवेश किसानों द्वारा खुद से करना होता है। मीठी क्रांति योजना के जरिए राज्य के किसान सालाना एक लाख रुपए तक की कमाई कर सकेंगे। योजना के तहत मधुमक्खी पालन करने वाले किसानों को वित्तीय सहायता के साथ-साथ मधुमक्खी पालन विषय में प्रशिक्षण देने का भी प्रावधान है।
किन देशों में हुआ शहद निर्यात
इसमें अमेरिका ने 59,262 मीट्रिक टन का एक बड़ा हिस्सा लिया है। संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, नेपाल, मोरक्को, बांग्लादेश और कतर भारतीय शहद के अन्य शीर्ष गंतव्य थे।
प्रमुख शहद उत्पादक क्षेत्र
देश का पूर्वोत्तर क्षेत्र और महाराष्ट्र भारत में शहद के प्रमुख प्राकृतिक उत्पादक क्षेत्र हैं। देश में उत्पादित किए गए शहद का लगभग 50 प्रतिशत घरेलू स्तर पर खप जाता है जबकि शेष का दुनिया भर में निर्यात किया जाता है।