भारतीय टीम के लिए टेस्ट पदार्पण सीधे ‘क्रिकेट का मक्का’ कहे जाने वाले लॉर्ड्स पर आगाज इतना बेहतरीन कि पहले टेस्ट में शतक के बाद अगले टेस्ट में भी शतक जड़ दिया और जब कप्तानी मिली तो देश को जीतने की आदत डाल दी, वो भी ऐसी ‘दादागीरी‘ के साथ कि जिसे देख क्रिकेट की दुनिया दंग रह गई. जी हां! बात हो रही है ‘प्रिंस ऑफ कोलकाता’, ‘बंगाल टाइगर’, ‘ऑफ साइड के भगवान’ जैसे नामों से पहचाने जाने वाले सौरव गांगुली की. भारतीय प्रशंसकों के चहते ‘दादा’ आज (8 जुलाई) 49 साल के हो गए.
बात उन दिनों की है, जब 13 जुलाई 2002 को इंग्लैंड के ऐतिहासिक लॉर्ड्स मैदान पर भारत और इंग्लैंड के बीच नेटवेस्ट सीरीज का फाइनल खेला गया. खचाखच भरे स्टेडियम में जैसे ही जहीर खान और मोहम्मद कैफ ने जीत का रन पूरा किया, मैदान में मानो बिजली-सी दौड़ गई. एंड्रयू फ्लिंटॉफ तो हताश होकर पिच पर ही बैठ गए. उधर, लॉर्ड्स की बालकनी में इंडियन कैप्टन ने अपनी टी-शर्ट उतारी और ऐसे लहराई कि यह वाकया इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया. ये जवाब था एंड्रयू फ्लिंटॉफ को. इस इंग्लिश ऑलराउंडर ने उसी साल फरवरी (3 फरवरी 2002) में मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में भारत पर जीत के बाद अपनी शर्ट निकालकर मैदान में दौड़ लगाई थी. और अब दादा की बारी थी. बदला चुकाने का लॉर्ड्स से बड़ी जगह और कुछ नहीं हो सकती थी. और उन्होंने बालकनी से शर्ट लहराकर वानखेड़े का बदला लिया था.
सौरव गांगुली की अगुवाई में टीम इंडिया ने इंग्लैंड को एक रोमांचक मुकाबले में उसी धरती पर हराकर फाइनल के खिताब पर कब्जा जमाया था. इंग्लैंड ने भारत के सामने जीत के लिए 326 रनों का विशाल लक्ष्य रखा था. भारत के पांच विकेट महज 146 रन पर ही गिर गए थे. लेकिन युवराज सिंह (69) और मोहम्मद कैफ (नाबाद 87) ने शानदार बल्लेबाज कर टीम इंडिया को तीन गेंदें शेष रहते दो विकेट से रोमांचक जीत दिलाने में बेहद हम रोल निभाया था.
हालांकि सौरव गांगुली ने 2018 में प्रकाशित अपनी किताब (ए सेंचुरी इज नॉट एनफ) में लिखा, ‘फाइनल मैच में जीत को लेकर टीम काफी उत्साहित थी और जहीर खान के विनिंग शॉट लगाते ही मैं अपने आपको रोक नहीं सका.’ गांगुली ने माना कि जीतने के बाद शर्ट उतारकर सेलिब्रेट करना सही नहीं था. जीत का जश्न मनाने के लिए और भी कई तरीके थे.
ये वो मैच था, जब भारत ने दिखाया कि वो न सिर्फ विदेशों में खेल सकता है, बल्कि जीत भी सकता है. अगर कहें कि वर्ल्ड क्रिकेट में भारत की ‘दादागीरी’ इसी मैच से शुरू हुई, तो गलत नहीं होगा. दरअसल, सौरव गांगुली वह नाम है, जिसने भारतीय क्रिकेट को लड़ना सिखाया, टीम जब मैच फिक्सिंग जैसे गंभीर आरोपों से घिरी हुई थी तब कप्तानी संभाली और खिलाड़ियों में नया जोश भरा. टीममेट्स पर भरोसा जताने जैसी खासियतों ने भारतीय क्रिकेट को कई बड़े खिलाड़ी दिए.
युवाओं को आगे बढ़ाने और मौका देने वाले सौरव गांगुली अपने एक इंटरव्यू में कह चुके हैं कि उन्होंने लोअर ऑर्डर बल्लेबाज सहवाग को पहचाना और ओपनिंग के लिए तैयार किया. विदेशी दौरे पर वीरेंद्र सहवाग के चयन को लेकर गांगुली एक बार अड़ गए थे. कहा जा रहा था कि वह (सहवाग) बाउंसर्स नहीं झेल पाएंगे. तब गांगुली ने कहा था कि बिना मौका दिए किसी को जज नहीं कर सकते.. और इसी के बाद अपनी पहली ही विदेशी दौरे में सहवाग ने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ शतक लगा दिया. दरअसल, सहवाग का वह टेस्ट डेब्यू में शतक था.
महेंद्र सिंह धोनी का करियर संवारने में भी सौरव गांगुली का बड़ा हाथ रहा. उन्होंने न सिर्फ धोनी की प्रतिभा को पहचाना, बल्कि निचले क्रम क्रम पर बल्लेबाजी करने वाले रांची के इस क्रिकेटर को तीसरे क्रम पर उतारा और टीम इंडिया को नया विकेटकीपर बल्लेबाज दे दिया.
सौरव गांगुली बता चुके हैं- ‘ दिसंबर 2004 में जब धोनी टीम में आए, तो शुरुआती चार मैचों में नंबर 7 पर खेले थे. हम विशाखापत्तनम में पाकिस्तान के खिलाफ खेल रहे थे, टीम घोषित हो चुकी थी. धोनी एक बार फिर नंबर 7 पर थे. मैंने उनसे कहा कि एमएस आपको नंबर 3 पर उतरना है.’ फिर क्या था तो धोनी ने पाकिस्तान के खिलाफ 148 नों की धुआंधार पारी खेली थी और स्टार बनकर उभरे.