2019 में गटर में डूबकर मरने वाले सफाईकर्मियों की संख्या में 61 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.
जो लोग हल्ला मचाते हैं कि वे बहुत बड़े देशभक्त हैं वे इन सैकड़ों सरकारी हत्याओं पर क्यों चुप रहते हैं..??
क्योंकि ये लोग गरीब हैं और आपका गटर साफ करना इनकी मजबूरी है क्योंकि इनके पास काम नहीं है?
आप कल्पना कीजिए कि आप सफाई का काम करते हैं, नंगे बदन सीवर साफ करने जाते हैं और आपका दम घुट जाता है, आप मर जाते हैं. या फर्ज कीजिए कि मरने वाला आपका बेटा या भाई या पति है. आपको सोचकर कैसा लगेगा…?
सफाईकर्मी नंगे बदन, बिना मास्क, बिना किसी उपकरण के सीवर टैंक में सफाई के लिए उतरते हैं.
सीवर में डूबने या जहरीली गैस से दम घुटने से उनकी मौत हो जाती है. यह संख्या हर साल दर्जनों में होती है. सफाईकर्मियों के संगठनों का कहना है कि सरकार के आंकड़े फर्जी हैं. असली संख्या सैकड़ों में है.
सरकार ने लोकसभा में यह जानकारी दी है और द हिंदू ने इसे छापा है कि 2018 में 68 लोग सीवर में डूबने या दम घुटने से मरे थे. 2019 में 110 सफाईकर्मी सीवर में डूबने या दम घुटने से मर गए.
इस सूचना के मुताबिक, 2015 में 57, 2016 में 48, 2017 में 93, 2018 में 68 और 2019 में 110 लोगों की मौत सीवर में सफाई करने के दौरान हुई है.
भारत में स्वच्छ भारत अभियान 2014 में लागू हुआ था, लेकिन अब भी गरीब लोग रोजीरोटी के लिए गटर में डूबकर मर रहे हैं.
27 जनवरी को मैंने एक पोस्ट लिखी थी जो द प्रिंट में छपी एक रिपोर्ट पर आधारित थी. उसके आंकड़े ज्यादा भयानक हैं. वह पोस्ट फिर से पढ़ें:
पिछले 4 साल में 283 लोग गटर में डूब कर मर गए. सरकार संसद में बता चुकी है कि 2016 से लेकर नवम्बर 2019 के बीच देश भर में 282 लोग गटर में डूबने से मर चुके हैं.
यह स्वच्छ भारत अभियान और न्यू इंडिया के माथे पर एक ताजा कलंक है. जब गरीब लोग रोटी के लिए नंगे बदन गटर में उतर ही रहे हैं तो वह फोटू खिंचाने वाली नौटंकी किसके लिए की गई थी जिनमें अरबों रुपये फूंके गए?
यह वास्तविक संख्या नहीं है. यह संख्या सिर्फ वह है, जितने मामलों की एफआईआर दर्ज हुई है. यह संख्या और ज्यादा है.
सफाई कर्मचारी आंदोलन का कहना है कि सन 2000 से अब तक 1760 लोग गटर साफ करने के चक्कर मे मारे जा चुके हैं.
सरकारी रिकॉर्ड कहता है कि 2017 के 8 महीने में 123 मौतें हुईं. लेकिन सफाई कर्मचारी आंदोलन का आंकड़ा कहता है कि इस अवधि में सिर्फ राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में 429 मौतें हुईं. यानी लोगों की जान की कोई कीमत नहीं है. उनकी संख्या बताने में भी खेल किया जा रहा है.
मैन्युअल स्केवेंजिंग को लेकर भारत की अदालतें लगातार सुनवाई करती रही हैं लेकिन सरकारों के कान बहरे हैं. अरबों रुपये नाटक करने में उड़ा दिए गए, परंतु लोगों की जान बचाने का कोई ठोस इंतजाम नहीं किया गया.
भारत मे मैन्युअल स्केवेंजिंग 1993 से बैन है लेकिन लोगों का मरना जारी है. 2013 में देश में ऐसे कर्मचारियों की संख्या 13,000 थी, जो 2018 में बढ़कर 42,303 हो गई.
मनमोहन सरकार के दौरान बताया गया था कि देश में 30 करोड़ लोग भुखमरी का शिकार हैं. अब न्यू इंडिया में उनकी कोई चर्चा नहीं होती.