पटना। बिहार सामाजिक अंकेक्षण द्वारा स्थानीय पटना युवा आवास में बिहार में उर्वरकों की किल्लत और कालाबाजारी को लेकर एक प्रेस वार्ता किया गया। इस प्रेस वार्ता को बिहार के पूर्व डीजीपी अभ्यानंद, बिहार सामाजिक अंकेक्षण के संजीव श्रीवास्तव, किसान दीपक कुमार, विकास दीपक, मनीष पांडेय व राजेश मांझी ने संबोधित किया। प्रेस वार्ता कर दावा किया गया कि बिहार के किसानों को उर्वरक खरीदने के लिए अधिकतम कीमत से अधिक मूल्य चुकाने पर मजबूर होना पड़ रहा है। यूरिया का 45 किलोग्राम के बाग के लिए अधिकतम कीमत 266.50 है जबकि किसान इसे 290 से 325 रुपए में खरीदने को मजबूर है। अभ्यानंद ने कहा कि बिहार में सरकारी कागजों में राष्ट्रीय औसत से ज्यादा खपत है यूरिया की, राष्ट्रीय औसत यदि 141.2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है तो बिहार 225 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर का आंकड़ा दिखा रहा है। कागज पे बिहार का किसान राष्ट्रीय औसत से लगभग 50 प्रतिशत ज्यादा खाद प्रति हेक्टेयर इस्तेमाल करता हैं, बिहार में किसानों की प्रति हेक्टेयर कागज पे लगभग 249 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर दिखती हैं जो राष्ट्रीय औसत यानी 199 को प्रति हेक्टेयर से 50 को अधिक हैं, पर सवाल हैं की क्या बिहार के किसानों को खाद मिल भी रहा हैं, कागज पे खपा हुआ खाद जा कहां रहा है। संजीव श्रीवास्तव ने बताया कि उर्वरकों का कालाबाजारी भी जारी है, उर्वरकों की तस्करी कर बांग्लादेश और नेपाल जैसे देशों में इसे बेचा जा रहा है। खासकर बिहार के सीमावर्ती इलाकों में आए दिन तस्करी की खबरें मिलती रहती है लेकिन राज्य सरकार की ओर से उन पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं होने की वजह से यह संकट बरकरार है। पूर्णिया, सहरसा, दरभंगा, मधुबनी, मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, किशनगंज, पश्चिम चंपारण, पूर्वी चंपारण, शिवहर, सुपौल, आदि जिलों में खाद पैडलर बड़ी संख्या में सक्रिय हैं। लेकिन सरकार उस लगाम कसने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है। जबकि राज्य सरकारों को उर्वरकों की कालाबाजारी और तस्करी रोकने के अतिरिक्त अधिकतम खुदरा मूल्य पर उर्वरकों की बिक्री सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त पावर प्रदान की गई है। संजीव श्रीवास्तव ने कहा कि राज्य सरकार के उदासीन रवैया से बिहार के किसानों के बीच उर्वरक संकट की स्थिति है। यह स्थिति बिहार के किसानों के लिए हितकर नहीं है। कृषि विभाग के अधिकारी और उर्वरक वितरक यूरिया का कृत्रिम संकट पैदा करने के लिए आपस में मिले हुए हैं उर्वरक पैडलरों को कहीं ना कहीं उर्वरक इन्हीं लोगों के मिली भगत से प्राप्त हो रहा है। उन्होंने बताया कि यूरिया की बिक्री सरकार के नियंत्रण में होती है। यूरिया का रेट और कमीशन भी केंद्र सरकार तय करती है। तो सरकार की जिम्मेदारी ये भी होना चाहिए कि सेल प्वाइंट तक मैटेरियल कैसे पहुंचे। लेकिन सरकार रैक प्वाइंट से विक्रय केंद्र तक का जो भाड़ा देती है वो सिर्फ एक चौथाई होता है। पर फिर भी सरकार चाहती है कि हम उसे एमआरपी पर बेचे, किसी भी व्यापारी के लिए ये कैसे संभव हैं।
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