चुनाव और रैलिया हो रही है तो सरकारी भर्तियां क्यों नहीं.?

(जारी आंकड़ों में देश भर में हरियाणा बेरोज़गारी में नम्बर एक पर है. यहाँ कि सरकार ने सभी भर्तियों को पंचवर्षीय योजना बनाकर रख दिया है. हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग कोर्ट की आड़ लेकर कोई भी भर्ती पूरी नहीं करना चाहता. नई भर्तियां तो दूर जिन नौकरियों के परीक्षा परिणाम आ चुके, उनके डॉक्युमेंट्स वेरिफिकेशन भी बहाना बनाकर लटकाये हुए है. आई.टी.आई. अनुदेशकों की लगभग ३००० पदों के लिए भर्ती पिछले दस सालों से लटकी हुई है. आखिर सरकार क्यों इन बेरोजगार आवेदकों के साथ भद्दा मजाक कर रही है. जे.बी.टी. की भर्ती किये आठ साल होने को आये. शिक्षा विभाग में लगभग ४०००० पद खाली पड़े है फिर भी सरकार कह रही कि हमने नौकरियां दी.)

          प्रियंका सौरभ

हरियाणा सरकार ने पिछले एक साल से नई भर्तियों पर रोक लगा रखी है, बहाना है कोरोना. जबकि इस दौरान चुनाव, रैलियां और आंदोलन खुलेआम जारी है. यही नहीं बेरोजगार युवाओं को लूटने के लिए प्रदेश की सबसे महंगी परीक्षा एचटेट सरकार ने मात्र पंद्रह दिनों में करवाकर अरबों रूपये एकत्रित कर लिए. जब बात इन एचटेट पास युवाओं के लिए शिक्षक भर्ती परीक्षा की आती है तो सरकार का सीधा-सा जवाब होता है कि हमारे पास शिक्षक पहले से ही सरप्लस है. अगर ऐसा है तो सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई सूचना में हरियाणा शिक्षा विभाग में चालीस हज़ार अलग-अलग शिक्षकों के पद खाली क्यों है?

यदि शिक्षक भर्ती करनी ही नहीं तो बार-बार एचटेट परीक्षा लेकर आवेदकों को क्यों लूटा जाता है. राज्यभर में सरकारी आई.टी.आई. में लगभग चार हज़ार आई.टी.आई. अनुदेशकों के पद सालों से खाली है. इन अनुदेशकों के लिए प्रदेश के लाखों बी.टेक. एवं एम.टेक. युवाओं ने परीक्षा दी. परिणाम भी जारी हुआ लेकिन पिछले एक साल से आयोग ने कोर्ट का बहाना लेकर डॉक्युमेंट्स वेरिफिकेशन रोक रखी है. बात साफ़ है कि सरकार की मंशा भर्ती करने और युवाओं को रोजगार देने की नहीं है. या फिर सरकार इन भर्तियों को चुनाव तक खींचना चाहती है ताकि तब इनका वोट बैंक मजबूत हो सके. लेकिन उन युवाओं का क्या जो रोजगार के अभाव में भूख मर रहें है?

साल 2010 में हरियाणा सरकार ने पहली बार राज्य की आई.टी.आई. में अनुदेशकों के पदों के लिए आवेदन मांगे थे. इसके बाद सात बार ये पद री-ऐडवरटाइज़ किये गए. आखिर 2019 में राज्य के लाखों बीटेक युवाओं ने परीक्षा दी. हर केटेगरी की अलग-अलग परीक्षा लगभग एक माह चली. आंदोलन कर परीक्षा परिणाम जारी करवाया. पांच बार डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन पोस्ट पोंड हुआ जो अभी तक है. आखिर सरकार कोर्ट का नाम लेकर भर्ती क्यों नहीं करना चाहती? क्या ये अंदर खाते भ्रष्टाचार की दस्तक तो नहीं है. अगर ऐसा नहीं तो फिर क्यों सरकार भर्ती नहीं कर रही है. और दूसरी बात सरकार कॉन्ट्रैक्ट पर कर्मचारी क्यों रखती है. रखती है तो शर्ते साफ़-साफ़ क्यों नहीं है? आखिर क्यों ये कॉन्ट्रक्ट के कर्मचारी हर बार रेगुलर भर्ती में बाधा डालते है. इस सांठ-गांठ के राज उजागर होने चाहिए और सरकार को रेगुलर भर्ती नियमित अंतराल पर करनी चाहिए.

हरियाणा के कर्मचारी चयन आयोग के चेयरमैन भारत भूषण ने बताया की कोर्ट केस की वजह से इस भर्ती को थोड़े समय से रोका गया है. जैसे ही आदेश होंगे तुरंत भर्ती परिणाम जारी कर दिए जायँगे. मगर सवाल ये है कि दस सालों तक सरकार क्यों पैरवी नहीं कर रही थी. क्या सरकार की मंशा ठीक नहीं है. ठेके के कर्मचारी ऐसे तो हर भर्ती को कोर्ट के नाम पर रोकते रहेंगे और किसी भी विभाग में तय समय पर भर्ती नहीं होगी. स्किल डेवलपमेंट एवं औद्योगिक विभाग वर्तमान दौर में नयी आशा की किरण है. इस विभाग में आईटीआई इंस्ट्रक्टर जैसे पदों का खाली रहना अपने आप में एक बड़ा प्रश्न है. हमारे प्रधानम्नत्री जी को इस विषय को गम्भीरता से लेना चाहिए अन्यथा उनकी आत्मनिर्भर भारत की योजना अपने शिशुकाल में ही दम तोड़ देगी. जिस देश और राज्य में पिछले दस सालों से ऐसे महत्वपूर्ण पद रिक्त पड़े होंगे वहां कैसा प्रशिक्षण और कैसी आत्मनिर्भरता सोचिये?

हरियाणा जैसे प्रगतिशील राज्य में पिछले दस सालों से आईटीआई इंस्ट्रक्टर के पदों का खाली होना आत्मनिर्भर भारत की योजना का शिशुकाल में ही दम तोड़ देना है. कोरोना काल में इस विभाग में आईटीआई इंस्ट्रक्टर जैसे पदों का खाली रहना अपने आप में एक बड़ा प्रश्न है. अगर राज्य एवं केंद्र सरकार इनको अपने विभागों और कंपिनयों में रोजागर नहीं दिला सकती तो इनको ये बीटेक एवं एम् टेक कोर्स बंद कर देने चाहिए.

सरकार कह रही है हमने सबसे ज्यादा भर्तियां की लेकिन वास्तविक स्थिति तो ये है कि यहाँ अब तक जो भर्तियां आई है उनके फॉर्म भरवा लिए जाते है और कैंसिल कर दिए जाते है या दोबारा फार्म मांगकर एग्जाम नहीं होता. पुरानी भर्ती जो सालों पहले निकली उन पर कोई ध्यान ही नहीं है. जिनके रिजल्ट आ गए है उनका डॉक्यूमेंट वेरिफकशन पेंडिंग हैं .कई भर्तियों की जोइनिंग ही पेंडिंग हैं. ऐसे में प्रदेश के पढ़े-लिखे युवाओं का का क्या हश्र रहेगा, सोचने की बात है. बड़ी कठिन परिस्तिथियों से गुज़र रहा है हरियाणा का युवा. सरकार अब ये तक नहीं सोच रही कि यदि कोई इस दौरान कोई ओवर-ऐज हुआ तो उन्हें एक एक्स्ट्रा मौका मिलेगा या नहीं. आवेदक डर के साये में है कि भर्तियां विज्ञापित हो सकती हैं लेकिन एग्जाम होगा या नहीं वो पक्का नहीं.

जिनकी जोइनिंग पेंडिंग है पिछले काफ़ी समय से जैसे पी.जी.टी.संस्कृत, एक्साइज टैक्सेशन इंस्पेक्टर, फोरेस्टर उनको जोइनिंग का इंतज़ार है. आई.टी.आई.अनुदेशकों के डॉक्यूमेंशन को रोका हुआ है, आयोग नींद ले रहा है. वास्तव में सरकार राज्य संस्थाओं को खत्म कर निजीकरण की राह पर चल पड़ी है. सरकारी स्कूलों में बच्चे नहीं हैं या शिक्षक नहीं हैं ? मगर सरकार अब इनका निजीकरण कर रही है. स्कूलों की जर्जर व्यवस्था पर तो कोई सवाल उठाता नहीं. जो उठा दे उसे विभिन्न तर्क दे कर बताया जाता है कि कैसे प्राइवेट व्यवस्था बेहतर है, सुधार नहीं करेंगे, केवल बात करेंगे.

हरियाणा के बेरोजगार युवाओं की आवाज सरकार को सुननी चाहिए. युवाओं को रोजगार कि सख्त जरूरत है. जारी आंकड़ों में हरियाणा बेरोज़गारी में नम्बर एक पर है. यहाँ कि सरकार ने सभी भर्तियों को पंचवर्षीय योजना बनाकर रख दिया है. कुछ तो पांच साल से ज्यादा भी लटकी पड़ी है. बहुत-सी भर्तियों में जमकर धांधली हुई है. हरियाणा स्टाफ सिलेक्शन का ना कोई सलेब्स ,ना कोई टाइम टेबल. प्रश्न पत्रों में गलतियां ,उतर कुंजी में गलतियां. आर.टी.आई का कोई जबाब नही. इन सब अत्याचारों को बंद कर सरकार को युवाओं की पुकार सुननी चाहिए.

हरियाणा में पिछले सात सालों में 91% युवा यहाँ की सरकारी भर्ती प्रक्रिया से नाखुश रहे जबकि 9% संतुष्ट हुए. जो भर्तियां हुई भी वो सेक्शन भी काफ़ी रोषपूर्ण रहा. ऐसे में युवाओं को गंभीरता से न लेना व बेरोज़गारी को समस्या ही न समझना व उस पर एक्शन_मोड में काम न करना यहाँ की मौजूदा सरकार पर भारी पड़ सकता है. केंद्र सरकार को नोटिफिकेशन के साथ-साथ राज्य सरकारों को भी निर्देश देना चाहिए कि जल्द से जल्द भर्तियों से जुड़े सभी इश्यूज सॉल्व करें व बेरोज़गारी कम करने हेतु ठोस कदम उठाये जाएं. अन्यथा भारत को बेरोजगारों का देश बनते देर नहीं लगेगी.

प्रियंका सौरभ
रिसर्च स्कॉलर, कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार

(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी और मौलिक हैं)

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