जब से चुनाव आयोग ने बिहार में समय पर चुनाव कराए जाने की घोषणा की है, सारे राजनीतिक दलों की चुनावी गतिविधियां बढ़ गई हैं। अब तक जो दल कोरोना के कारण उत्पन्न हुए संकट के मद्देनजर चुनाव को आगे टालने की मांग कर रहे थे वो भी अब जोर – शोर से अपनी चुनावी तैयारी में लग गये हैं। सारी पार्टियां हर विधानसभा क्षेत्र में वर्चुअल रैलियां और सम्मेलन आयोजित कर अपने कार्यकर्ताओं में जोश भरने का काम कर रही हैं। नतीजा यह है कि कार्यकर्ता भी चुनावी जंग जीतने के उद्देश्य से अपने दल और उसके शीर्ष नेतृत्व का संदेश घर – घर तक पहुँचाने के लिए जी- जान से जुट गये हैं। बिहार में अमित शाह की वर्चुअल रैली के बाद से भाजपा के कार्यकर्ताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पत्र को हर घर तक पहुँचाने का कार्य भार संभाल लिया था। ऐसा ही प्रयास सभी राजनीतिक दल के कार्यकर्ताओं द्वारा अपनी पार्टी के प्रचार – प्रसार करने के लिए किया जा रहा है।
भले ही सरकार और राजनीतिक पार्टियां चुनाव के लिए तैयार खड़ी हैं पर अभी की परिस्थिति में प्रदेश की जनता बिलकुल लाचार पड़ी है। इस कोरोना काल में जब समूचा विश्व कोविड से जंग लड़ रहा है बिहार प्रदेश में भी कोरोना अपना भयावह स्वरूप धारण कर चुका है। हर रोज कोरोना के नये मामलों की संख्या पिछले दिन का अपना रिकार्ड तोड़ रही है। मौतों के आंकडे बढ़ते जा रहे हैं। प्रशासनिक लापरवाही और सरकारी सुविधाओं की कमी के कारण आम जनता की परेशानी की खबरें प्रतिदिन सुनने को मिल रही हैं। सरकारी अस्पतालों की हालत खस्ती है। वहाँ समुचित स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं। नालंदा मेडिकल कॉलेज अस्पताल और पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल जैसे बडे़ अस्पतालों की खस्ता हालत की खबरें आए दिन मीडिया में चल रही हैं। कोरोना पोजेटिव लोगों को अस्पतालों में भर्ती नहीं लिया जा रहा है और ऐसे मरीज अस्पतालों का चक्कर लगा कर अन्ततः दम तोड़ रहे हैं। विगत दिनों में ऐसे कई मामले प्रकाश में आए हैं। प्रशासनिक चूक के कारण लाॅक डाउन में भी कई स्थानों पर सरकारी नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। आनलाॅक 1 के दौरान सावधानी में आई कमी के कारण कोरोना के मामलों में लगातार वृद्धि हुई जिसके कारण फिर से लाॅक डाउन लगाना पड़ा है। इस दौरान राजनीतिक दलों और इनके नेताओं एवं कार्यकर्ताओं की सक्रियता काफी बढ़ गई थी। इनका लोगों से मिलना जुलना ज्यादा हो गया था जिसका नतीजा यह हुआ कि कई बड़े नेता कोरोना संक्रमण के शिकार हो गये। भाजपा प्रदेश कार्यालय की स्थिति तो इतनी भयावह हो गई कि इसे सील करना पड़ा। चुनाव में पार्टी का टिकट प्राप्त करने की होड़ में अनेकों पार्टी कार्यकर्ताओं के द्वारा सरकारी नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए देखा गया। जिससे कोरोना संक्रमण का खतरा बढ़ा है। प्रदेश की सरकार तमाम कोशिशों के बावजूद इन सब परेशानियों का हल निकालने में असमर्थ दिख रही है। कोरोना की मार से कराहता बिहार के सामने बाढ एक और बड़ी आफ़त बन कर आ चुकी है। प्रदेश की अधिकांश नदियों का जल स्तर बढ गया है जिसके कारण कई इलाकों में बाढ का पानी फैल गया है। इससे एक बड़ी आबादी प्रभावित हुई है और बेघर होकर बाढ का कहर झेल रही है। कोरोना संकट के साथ – साथ बरसात और बाढ़ के कारण कई मौसमी बीमारियों का भी खतरा बना हुआ है। कोरोना के कारण पनपी बेरोजगारी में आम लोगों का जीवन अभावग्रस्त हो चुका है। बिहार एक ऐसा प्रदेश है जहां कोरोना संकट में वापस आने वाले प्रवासी मजदूरों की एक बड़ी संख्या है। इन मजदूरों के सामने रोजगार का संकट है। प्रधानमंत्री गरीब रोजगार अभियान जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से केन्द्र सरकार इन मजदूरों को रोजगार मुहैया कराने की कोशिश कर रही है परंतु ये कोशिश पर्याप्त नहीं है। आज भी इन मजदूरों की एक बड़ी संख्या रोजगार पाने की आस देख रही है। इस परिस्थिति में बिहार की जनता पर चुनाव का बोझ डालना जले पर नमक छिड़कने जैसा होगा। सरकार को यह समझना चाहिए कि बिहार के जख्मों को अभी चुनाव रूपी नमक की नहीं बल्कि सरकारी मदद रूपी मरहम की जरूरत है। इन परिस्थितियों में जब रोज कोरोना के नये मामले बढ़ रहे हैं, इस बात की गारांटी नहीं दी जा सकती कि आने वाले दिनों में कोरोना पर नियंत्रण कर लिया जाएगा। यदि बिहार में चुनाव समय पर ( अक्टूबर – नवम्बर में) हुए तो चुनावी गतिविधियों के कारण कोरोना संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है। चुनाव प्रचार से लेकर मतदाम केन्द्रों तक शारीरिक दूरी बरतने के नियम का पालन कराना एक बड़ी चुनौती साबित हो सकती हैं। मतदान प्रतिशत भी कम हो जाने की पूरी उम्मीद है क्योंकि कोरोना संकट के कारण मतदान केन्द्रों तक जा कर अपना वोट डालने से लोगों को संक्रमण का खतरा महसूस हो सकता है। ऐसी स्थिति में चुनाव कराना जनता के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करने जैसा है और उसके हित के विरूद्ध है। जनता के हितों को ध्यान में रखते हुए चुनाव को आगे बढ़ाए जाने की जरूरत है। वर्तमान की परिस्थिति में बिहार में चुनाव कराने की बात पर नीचे की चार पंक्तियाँ बिलकुल सटीक जान पड़ती हैं।
” रोती है ज़िन्दगीऔर सिसकता इन्सान है।
कोरोना के कहर से हर शख़्स परेशान है।
शहर, गाँव मुहल्ला तक भी बन रहा श्मशान है।
ऐसे में चुनाव एक सरकारी फ़रमान है। “
ये बात सही है कि लोकतंत्र में चुनाव एक जरूरी और संविधानिक प्रक्रिया है लेकिन जब इसे आगे बढाए जाने का विकल्प मौजूद हो और यह विकल्प जनता के हित की रक्षा के लिए आवश्यक हो तो इस विकल्प का चयन करना सरकार की जिम्मेदारी होनी चाहिए क्योंकि लोकतंत्र में हर तंत्र जनकल्याण के लिए होता है। अभी सरकार को सारी ताकत प्रदेश की जनता को कोरोना महामारी और बाढ एवं वज्रपात जैसी प्राकृतिक आपदाओं से निजात दिलाने में लगानी चाहिए ताकि फिर से बिहार नई ऊर्जा के साथ लोकतंत्र के पावन पर्व ‘चुनाव’ का स्वागत कर सके और लोकतंत्र में अपना विश्वास बढ़ा सके।
” रोक दो चुनाव और बचा लो चंद ज़िन्दगियां।
बच जाएंगी जानें तो फिर मिलेंगी कुर्सियां।
आफ़त काल में जब मिलनी है मुश्किल रोटियां।
पक्ष और विपक्ष खेल रहे चुनावी गोटियां। “
सुनिता कुमारी ‘गुंजन’
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं)