डॉ. भीमराव आंबेडकर ने समाज के पीड़ित, उपेक्षित एवं दबे कुचले लोगों को बराबरी का दर्जा दिलाने के लिए संघर्ष किया

डॉ. भीमराव आंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को हुआ था। भीमराव आम्बेडकर के पूर्वज लंबे समय से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में कार्यरत रहे थे और उनके पिता रामजी सकपाल, भारतीय सेना की महू छावनी में सेवारत थे।अपनी जाति के कारण बालक भीम को सामाजिक प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा था। विद्यालयी पढ़ाई में सक्षम होने के बावजूद छात्र भीमराव को छुआछूत के कारण अनेक प्रकार की कठनाइयों का सामना करना पड़ता था।

दलितों, कमजोर वर्ग की महिलाओं के लिए बाबा साहेब न बहुत संघर्ष किया।जाति व्यवस्था का दंश झेल चुके बाबा साहेब अंबेडकर ने समाज में हर तबके को समानता दिलाने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी। डॉ. भीमराव आंबेडकर ने हमेशा समाज के पीड़ित, उपेक्षित एवं दबे कुचले लोगों को बराबरी का दर्जा दिलाने के लिए संघर्ष किया। उन्होंने संविधान के माध्यम से गरीब समाज को अधिकार और सम्मान दिया है। जिसकी बदौलत आज समाज में ऊंच-नीच की खाई मिट रही है।
बाबा साहब आम्बेडकर की प्रतिष्ठा एक अद्वितीय विद्वान और विधिवेत्ता की थी। जिसके कारण जब, 15 अगस्त 1947 को भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद, कांग्रेस के नेतृत्व वाली नई सरकार अस्तित्व में आई तो उसने आम्बेडकर को देश के पहले क़ानून एवं न्याय मंत्री के रूप में सेवा करने के लिए आमंत्रित किया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया स्वतंत्र भारत के नए संविधान की रचना के लिए बनी संविधान की मसौदा समिति के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया।

बाबा साहेब अंबेडकर न्यायविद, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ और समाज सुधारक के रूप में अपनी पहचाने बनायी।बाबासाहेब ने आधुनिक भारत की नींव रखी।बाबासाहेब समाज सुधारक होने के साथ-साथ लेखक भी थे। लेखन में रूचि होने के कारण उन्होंने कई पुस्तकें लिखी। 06 दिसंबर 1956 को बाबा साहेब अंबेडकर का निधन हो गया। डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर का संघर्ष, दलितों के उत्थान के लिए उनके प्रयास और आज़ाद भारत के संविधान के निर्माण में उनका योगदान बहुत से लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत रहा है।

1990 में उन्हें मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया है।भारत रत्न से सम्मानित बाबा साहेब अंबेडकर के अनमोल विचार आज भी युवाओं को प्रेरित करते हैं। बाबा साहब अंबेडकर जयंती को समानता दिवस के रूप में मनाया जाता है। वह 32 डिग्रियों के साथ 9 भाषाओं के सबसे बेहतर जानकार थे। वह लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से ‘डॉक्टर ऑल साइंस’ नामक एक दुर्लभ डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त करने वाले भारत के ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के पहले और एकमात्र व्यक्ति हैं।

(डा. नम्रता आनंद)

Related posts

Leave a Comment