एक तरफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी डिजिटल होने और भारत को डिजिटल इंडिया बनाने पर जोर दे रहे हैं, वहीं बिहार सरकार के आदेश पर पुलिस प्रशासन ने बिहार के मोबाइल उपभोक्ताओं और लैपटॉप पर ख़बरों से रूबरू होने नहीं देना चाहती है।
ताजा मामले में एक पत्रकार यूनियन के द्वारा सभी वेब फॉर्मेट से जुड़े पत्रकारों को फर्जी बताने सम्बन्धी एक पत्र मुख्यमंत्री को दिया जाता है और वह पत्र पुलिस मुख्यालय भेजा जाता है। पत्र मिलते हीं पुलिस मुख्यालय इतना सक्रीय हो जाता है कि वेब फॉर्मेट के पत्रकार फर्जी नहीं बल्कि नेपाल का कोई घुसपैठिया हो. आनन फानन में पुलिस मुख्यालय से सभी जिलों के एसपी को आदेश जारी कर देते हैं कि वेब और यूट्यूब चैनल पर रोक लगाओ।
अफ़सोसजनक, दुखद और हास्यास्पद
अब यहाँ गौर करना है कि आदेश भी निर्गत कर दिया कि जितने चैनल और पोर्टल आरएनआई और पीआईबी से निबंधित नहीं हैं उन पर रोक लगाई जाये और कार्रवाई के सम्बन्ध में पुलिस मुख्यालय को जानकारी दी जाये। अफ़सोसजनक, दुखद और हास्यास्पद यह आदेश काफी चिंताजनक और विचारणीय हैं। अब सवाल यह है कि यह विचारणीय भी और हास्यास्पद भी कैसे ?
विचारणीय इसलिए कि ऐसा आदेश एक डीआईजी स्तर के पदाधिकारी ने जारी किया है। दुखद इसलिए कि आरएनआई या पीआईबी में पोर्टल और यूट्यूब के निबंधन का कोई प्रावधान आज की तिथि तक नहीं आया है, जबकि देश में लाखों की संख्या ऐसे चैनल और पोर्टल कार्यरत है। हास्यास्पद इसलिये कि सम्मानित पदाधिकारी ने बगैर यह जाने कि इनके निबंधन सम्बन्धी कोई भी नियम और कानून आज तक नहीं बना, यह पत्र जारी कर दिया। चिंताजनक इसलिये कि इस आदेश से वर्षों पत्रकारिता कर रहे वरिष्ठ पत्रकारों को भी एक पत्र और उस पत्र के आलोक में जारी एक आदेश ने फर्जी बना दिया।
आदेश देने के पहले सम्बंधित विभागों से पूछ तो लिया होता
कई दशकों से पत्रकारिता कर रहे पत्रकारिता जगत के स्तम्भ और वेब जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन के राष्ट्रीय पदाधिकारी ओम प्रकाश अश्क ने इस आदेश से आहत होकर एक विडियो जारी किया और उसमे अपने दुःख को साझा करते हुए राज्य के मुख्यमंत्री और आदेश जारी करने वाले अधिकारी से पूछा कि “इतने वर्षों तक मै फर्जी नहीं था और आज वेब पत्रकार बना तो फर्जी कैसे हो गया ? उन्होंने आदेश को चुनौती देते हुए कहा कि कम से कम आदेश देने के पहले सम्बंधित विभागों से पूछ तो लिया होता।”
बात उठी है तो दूर तलक जायेगी. अब यहाँ देखना यह है कि वेबसाइटो को अवैध बताने का अर्थ ये कैसे समझायेंगे ? क्या वेबसाइट पर अश्लीलता पडोसी जाती है ? क्या वेबसाइट पर कोई देश द्रोही क्रियकलाप होता है ? अगर नहीं तो क्या सरकार और जनसरोकार से जुडी ख़बरों को पत्रकारों के माध्यम से जनता तक पहुंचाना कैसे अवैध हो गया ? हाँ यदि इसमें निबंधन की कोई प्रक्रिया होती तो यह गलत होता।
किसी साइट को मान्यता देने का अब तक कोई प्रावधान ही नहीं
जब केंद्र सरकार के किसी भी विभागों को किसी साइट को मान्यता देने का अब तक कोई प्रावधान ही नहीं है और इस तरह का कोई दिशा- निर्देश मंत्रालय के किसी वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं है, तब यह आदेश जारी करने का क्या मतलब है ?
जिस पत्रकार संगठन के द्वारा यह पत्र सरकार को लिखा गया है उसे खुद हीं नहीं पता है कि निबंधन की कोई प्रक्रिया नहीं है। हैरत की बात है कि राष्ट्रीय पत्रकार संघ का दावा करने वाले प्रदेश अध्यक्ष को इतनी भी जानकारी नहीं है। महोदय ने नासमझी में पुलिस प्रशासन को पत्र लिख डाला कि ये अवैध है। अधूरी जानकारी के आधार पर आखिर क्यों पत्र जारी कर दहशत पैदा किया गया है ? क्यों वरिष्ठ और सम्मानित पत्रकारों को भी फर्जी बताने का प्रयास किया गया ?
बड़े-बड़े पत्रकार आज वेब फॉर्मेट को अपना चुके हैं
ऐसे में प्रतीत होता है कि तथाकथित पत्रकार या पत्रकार संघ ने किसी से आपसी रंजिश में ऐसा कदम उठाया है। क्योंकि आज के दौर में कई वरिष्ठ पत्रकार चर्चित वेबपोर्टलों या यूट्यूब चैनल का संचालन कर रहे हैं। बिहार की हीं बात करें तो अपने कलम और कैमरे के बल पर सरकार और विपक्ष की नींद उड़ा देने वाले बड़े-बड़े पत्रकार आज वेब फॉर्मेट को अपना चुके हैं। बिहार के टॉप न्यूज़ पोर्टल का संचालन इन्हीं पत्रकारों के द्वारा किया जा रहा है।
यह भी गौरतलब है कि भले ही किसी वेबसाइट को मान्यता प्रदान करने का प्रावधान बिहार सरकार या केंद्र ने नहीं किया हो, इसके बावजूद कोई वेबसाइट, यू ट्यूब चैनल अवैध नहीं होते। क्योंकि वेबसाइट जिस भी सर्वर प्रोवाइडर से लिये / ख़रीदे जाते हैं, वहां संचालकों का पूरा विवरण लिया जाता है और वे वहीं पंजीकृत होते हैं। यू ट्यूब चैनल भी यू ट्यूब पर रजिस्टर्ड होते हैं।
मीडिया का स्वरुप भी बदल रहा है
जैसे जैसे तकनीक आगे बढ़ रही है वैसे वैसे मीडिया का स्वरुप भी बदल रहा है। प्रिंट के बाद मीडिया का स्वरूप बदला और इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने दर्शकों को अपनी ओर रिझाया. समाचारों के शौक़ीन लोगों को ख़बरों के लिए अगले दिन का इन्तजार नहीं करना पड़ता था और पहले हीं ख़बरों की जानकारी हो जाने लगी। उसी प्रकार अब जमाना डिजिटल हो गया है। लोग खबरों को पल भर में चाहते हैं. इस चाहत ने नयी मीडिया को अधिक स्पेस दिया और ख़बरों का डिजिटल मोड सभी को पसंद आया।
चाहे प्रिंट हो या इलेक्ट्रोनिक सभी में अच्छे बुरे लोग होते हीं हैं। उसी प्रकार वेब पत्रकारिता में भी इस प्रकार के लोग होंगे इसमें कोई दो मत नहीं है। वैश्विक स्तर पर बात करें तो लगभग हर देश में डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म मौजूद है।
यहाँ एक और बात सामने आती है कि वेब पत्रकारों में फर्जी को कैसे ढूंढेंगे ? जिस प्रकार प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक में फर्जी खबर चलाने वाले होते हैं, उन पर प्रशासन कार्रवाई करती है। उसी प्रकार किसी पत्रकार द्वार चैनल या पोर्टल चलाना और किसी अपराधी द्वारा चलाना दोनों में फर्क होता है। इतना हीं नहीं पत्र लिखने और आदेश देने वाले अधिकारीयों को यह पता होना चाहिए की किसी पोर्टल और यूट्यूब पर आपतिजनक खबर / विडियो या अन्य तथ्य को डालने पर जबतक स्थानीय प्रशासन के पास खबर पहुँचती है उससे पूर्व गूगल या अन्य के द्वारा नोटिस थमा दिया जाता है।
न्यूज़ पोर्टल सम्बन्धी कोई गाईडलाइन अभी तक नहीं बन पायी
ऐसे आधारहीन पत्र और आदेश से न्यूज़ पोर्टल के पत्रकार काफी नाराज हैं। वेब फॉर्मेट के निबंधन और कायदे कानून के लिए खुद वेब जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया के द्वारा सम्बंधित विभाग के मंत्री से मिले थें, बावजूद इसके न्यूज़ पोर्टल सम्बन्धी कोई गाईडलाइन अभी तक नहीं बन पायी है।
इस आदेश के बाद वेब जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन ने भी इसके विरोध में ज्ञापन / पत्र बिहार के मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री, सुचना मंत्री और पुलिस महानिदेशक को दे दिया है। अब देखना है बिहार में चुनाव पूर्व वेब पत्रकारों की समस्या का स्थायी समाधान निकाल कर सरकार नयी पीढ़ी और नयी मीडिया के भविष्य के लिए इतिहास लिख पाती है या नहीं ?
मधुप मणि “पिक्कू”
(लेखक एक निजी चैनल में बिहार-झारखण्ड के संपादक रह चुके हैं और वेब जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया के राष्ट्रीय संयुक्त सचिव हैं)