सस्टेनेबल डेवलपमेंट सिद्धांत के तहत बीमारियों के लिए ऐसे उपचार पद्धति को ढ़ूढ़ना, जो पर्यावरण के लिहाज से भी फायदेमंद हो तो ये एक बड़ी बात है।
मच्छरों से फैलने वाली बीमारियां जैसे डेंगू और जीका वायरस को रोकने का अब एक प्राकृतिक उपाय निकाल लिया गया है। सबसे अच्छी बात ये है कि इस बीमारी की रोकथाम में अब एक ऐसी पद्धति का इस्तेमाल किया जा सकता है, जिससे पर्यावरण को कोई हानि नहीं पहुंचेगी। यानी कि अब हम बीमारियों को रोकने में भी एक सस्टेनेबल मेथड का इस्तेमाल करने की ओर बढ़ रहे हैं। बता दें कि आज पूरी दुनिया को सस्टेनेबल डेवलपमेंट सिद्धांत के तहत विकास के कार्यों की जरूरत है और बीमारियों के लिए ऐसे उपचार पद्धति को ढ़ूढ़ना एक बड़ी बात है। दरअसल डेंगू और जीका वायरस जैसे मच्छर जनित बीमारियों के रोकथाम में बैक्टीरिया वल्बाचिया नामक बैक्टीरिया स्ट्रेन का इस्तेमाल किया जाएगा। आइए हम आपको विस्तार से बताते हैं इसके बारे में।
क्या है बैक्टीरिया वल्बाचिया ?
बैक्टीरिया वल्बाचिया (Bacteria Wolbachia) नामक ये बैक्टीरिया स्ट्रेन मच्छरों को मनुष्यों में अपने वायरस को स्थानांतरित करने से रोक सकता है। मेलबोर्न और ग्लासगो विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं और मलेशिया में इंस्टीट्यूट फॉर मेडिकल रिसर्च ने कुआलालंपुर में साइटों पर डेंगू के मामलों को इस तरीके का इस्तेमाल करके कम करने में सफलता प्राप्त की है। उनके द्वारा प्रकाशित डेता की मानें, तो करंट बायोलॉजी दिखाता है कि वल्बाचिया के डब्लूए1बीबी (wAlbB) स्ट्रेन को ले जाने वाले मच्छरों पर जब इसका इस्तेमाल किया गया, तो डेंगू के मामलों में 40 फीसदी तक की कमी आई। इससे पहले मेलबर्न विश्वविद्यालय के प्रोफेसर आर्य हॉफमैन सहित वैज्ञानिकों ने इस बैक्टीरिया के एक अलग स्ट्रेन का उपयोग करके मच्छर पर सफल प्रयोग किया है, लेकिन कुछ स्थितियों में ये असफल भी रहा। वहीं मलेशिया जैसे भूमध्यरेखीय देशों में मचछरों की जंगली आबादी पर ये बैक्टीरिया इन्हें रोकने में सक्षम नहीं दिखे।
36 डिग्री सेल्सियस तापमान वाली जगहों पर सफल-
अब, मेलबोर्न, ग्लासगो और मलेशिया के शोधकर्ताओं की इस अंतरराष्ट्रीय टीम ने दिखाया है कि वल्बाचिया का डब्ल्यूएएलबी स्ट्रेन 36 डिग्री सेल्सियस और उससे अधिक के दैनिक चरम तापमान में भी स्थिर और प्रभावी है, जैसा मलेशिया के डेंगू क्षेत्रों में। मेलबर्न यूनिवर्सिटी के बायो 21 इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर हॉफमैन ने कहा कि निष्कर्ष उन कई देशों में फर्क कर सकते हैं, जहां डेंगू बड़ी मात्रा में लोगों को बीमार कर रही है। उन्होंने कहा, “यह अध्ययन हमें क्षेत्र में सफल शुरुआत के लिए के लिए सही है पर एक घनी शहरी आबादी पर इसके इस्तेमाल को लेकर हम अभी कुछ कह नहीं सकते।”उन्होंने कहा कि हस्तक्षेप कीटनाशक अनुप्रयोगों और अन्य चुनौतियों के बावजूद सफल हुआ, जो कि वल्बाचिया के प्रयोग के लिए अच्छा है।
फॉगिंग भी हुआ कम-
शोधकर्ताओं ने डेंगू वाले कुआलालंपुर में छह अलग-अलग साइटों में वल्बाचिया के डब्ल्यूएएलबीबी स्ट्रेन को एडीज एजिप्टी मच्छरों पर इस्तेमाल किया। वोल्बाचिया नर और मादा दोनों जंगली मच्छरों की आबादी में संभोग करते वक्त अंदर चली गई, जिसके परिणामस्वरूप वायरस-फैलाने वाले बैक्टीरिया का प्रसार हुआ और इसने अपना काम करना शुरू कर दिया। इन साइटों पर डेंगू के मामलों को कम करने की सफलता ने इन क्षेत्रों में कीटनाशक फॉगिंग को समाप्त कर दिया है, जिससे इस पद्धति के पर्यावरणीय और आर्थिक लाभ दोनों उजागर होते हैं। मआरसी-यूनिवर्सिटी ऑफ ग्लासगो सेंटर फॉर वायरस रिसर्च के प्रोफेसर स्टीवन सिंकिन्स ने कहा कि यह सफलता उन देशों के लिए खुशखबरी है, जो मच्छर जनित बीमारियों को सहन कर रहे हैं।
साभार:www.onlymyhealth.com