कमल की कलम से- आइये आज आपको दिल्ली के कुछ बावलियों के बारे में बताते हैं

हेमन्दु कमल
चलिए आज से हम आपको दिल्ली के कुछ बावलियों की सैर कराते हैं। बावली का मतलब होता है कुआँ।शुरुआत करते हैं कनॉट प्लेस के पास स्थित और एक कथित भूतिया जगह अग्रसेन की बावली से।

साल 2012 में अग्रसेन की बावली पर भारतीय डाक ने डाक टिकट भी जारी किया था। हेली रोड में स्थित यह बावली नई दिल्ली स्टेशन से 7 किलोमीटर , जंतर मंतर से डेढ़ किलोमीटर या इंडिया गेट से 2 किलोमीटर की दूरी पर है।

बावली 60 मीटर लम्बी और 15 मीटर चौड़ी

बताया गया है कि अग्रसेन की बावली का निर्माण 14वीं शताब्दी में शौर्य वंश के राजा महाराज अग्रसेन ने कराया था। परन्तु अभी तक इसका कोई प्रमाण नही मिला है, जिससे ये साबित हो सके कि इस अदभुत वास्तुकला का निर्माण वास्तव में किसने करवाया था।

अग्रसेन की बावली’ जो पुरानी दिल्ली का सबसे पुराना स्मारक है। इसे अपने प्रकार के स्मारकों में से सबसे अच्छे संरक्षित नमूने के तौर पर देखा जा सकता है।

यह बावली 60 मीटर लम्बी और 15 मीटर चौड़ी है। बावली में नीचे जाने के लिए 108 सीढियां बनी हुई है।इसकी संरचना सीढ़ीनुमा कुएँ की तरह है। बावली के पश्चिम में तीन द्वार हैं। यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित है।

सरकारी तौर पर इस संरचना को अग्रसेन की बावली कहा जाता है। क्योंकि बावली के बाहर लगी पट्टिका – जो कि लाल बलुए पत्थर से बनी है , यही बताती है। पिछले कई वर्षों से ‘अग्रसेन की बावली’ को इस नाम के अलावा कई अन्य नामों से भी जाना जाता रहा है।

प्राचीन समय में यह बावली काले रंग के पानी से पूरी भरी हुई थी

भारत के राष्ट्रीय अभिलेखागार के नक्शे के अनुसार -1868 में, इस स्मारक का निर्माण ब्रिटिश सरकार द्वारा किया गया था। इस स्मारक को ‘ओजर सेन की बोवली’ के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।

इस बावली का नक्शा इसके ढाँचे के उत्तर-पश्चिमी दिशा की ओर एक और इसी के समान संरचना दिखाता है। यह संरचना 1911 में दिल्ली में शुरू हुए शहरी विस्तार के बाद धीरे-धीरे गायब हो गई।

अग्रसेन की बावली’ की बनावट और वास्तु संबंधी विशेषताओं को देखकर ऐसा प्रतीत होता है, जैसे कि यह लोदी युग के दौरान या फिर तुगलक वंश के दौरान बनाई गई होगी।  इतिहासकार बताते हैं कि महाराजा अग्रसेन (कुछ सम्राटों के अनुसार) के द्वारा ‘अग्रसेन की बावली’ का निर्माण करवाया गया था।  ऐसा कहा जाता है कि महाराजा अग्रसेन महाभारत काल के दौरान अमरोहा शहर में रहते थे।

वर्तमान समय में हरियाणा राज्य के एक प्राचीन शहर के नाम से जाना जाता है

जो वर्तमान समय में हरियाणा राज्य के एक प्राचीन शहर के नाम से जाना जाता है। अग्रसेन का जन्म संभवतः 3124 ईसा पूर्व हुआ था या भगवान कृष्ण के जन्म के समकालीन माना जाता है। बावली के पश्चिमी कोने में एक छोटी मस्जिद भी बनी हुई है जिसकी छत ही नहीं है।

अग्रसेन की बावली के बारे में लोगों की मान्यता है कि प्राचीन समय में यह बावली काले रंग के पानी से पूरी भरी हुई थी। और यह काला पानी लोगो को अपनी और आकर्षित करता है। तथा कुएँ में कूदने को विवश करता है।

कुछ दशक पहले पुरानी दिल्ली और नई दिल्ली के लोग यहाँ तैरने आते थे। अब यद्यपि इस कुएँ का पानी सूख चुका है और इसकी दीवारों पर चमगादड़ों का बसेरा हो गया है। लेकिन हाल के कुछ समय पहले तक यहाँ लोगों ने कूदकर आत्महत्याएं किया है। 2005 में मीडिया में ऐसी खबरें आई थी।

इस जगह को भूतिया माना जाता है। परन्तु आप यहाँ की सीढ़ियों और कोनों पर पचासों की संख्या में जोड़ों को बैठ कर प्रणय निवेदन करते देख सकते हैं।

यद्यपि आज भी ये ऊंची ऊंची इमारतों के मध्य छुपा हुआ है, पर यहाँ पहुँचना बहुत आसान है। नजदीकी मेट्रो स्टेशन बाराखम्बा या जनपथ है जहाँ से आप पैदल या 30 रुपये खर्च कर औटो से पहुँच सकते है। बस स्टैंड पालिका केंद्र , जनपथ , कैलाश भवन या हेली रोड है। 781 , 729 , RL 77 , 79 , 604 , 405 जैसे कई बस हैं जिनसे आप यहाँ आ सकते हैं.

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