पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता को देश का दिल माना जाता है। कला-संस्कृति से समृद्ध कोलकाता शहर को पूरब का पेरिस भी कहा जाता है।इस शहर को पहले कलकत्ता के नाम से जाना जाता था जो अंग्रेजों के ज़माने से ही हमारे देश का सांस्कृतिक केंद्र रहा है। बंगाल की राजधानी कोलकाता में मुख्य रूप से मां काली की आराधना की जाती है। वैसे तो यहां कई दर्शनीय स्थल हैं लेकिन यहां हुगली नदी (गंगा) के किनारे मां भवतारिणी (काली) का भव्य ऐतिहासिक मंदिर भी है। यह स्थल प्रख्यात दार्शनिक एवं धर्मगुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस की कर्मभूमि रही है, जो हिंदू नवजागरण के प्रमुख सूत्रधारों में से एक है। यह मां काली का सबसे बड़ा मंदिर दक्षिणेश्वर काली मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है।
यह मंदिर माता के 51 शक्तिपीठों में से हैं। मान्यताओं के अनुसार जब विष्णु भगवान ने मां सती के शव के टुकड़े किए थे तब इस स्थान पर माता की दाएं पांव की चार उंगलियां गिरी थीं। इस मंदिर में देवी काली की मूर्ति की जिह्वा खून से सनी है और देवी नरमुंडों की माला पहने हुए हैं। कहा जाता है कि कभी श्री रामकृष्ण परमहंस यहाँ पुजारी थे। कहा जाता है कि इस मंदिर में गुरु रामकृष्ण परमहंस को मां काली ने साक्षात् दर्शन दिए थे। मंदिर परिसर में परमहंस देव का कमरा है। जिसमें उनका पलंग तथा उनके स्मृतिचिह्न उनकी याद में रखे हुए हैं। इस मंदिर को मां काली का दिव्य धाम भी कहा जाता है। भक्तों के लिए यह स्थान किसी सिद्ध स्थान से कम नहीं है। भारत के महानतम देवी तीर्थों में दक्षिणेश्वर काली मंदिर की गणना की जाती हैं। यहां देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु मां काली के दर्शनों के लिए आते हैं।
इस मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है और आज हम आपको इसकी स्थापना से जुड़ी बातें बताने वाले हैं।
मंदिर की स्थापना से जुड़ा किस्सा बहुत ही रोमांचक है। दरअसल इस मंदिर को एक रानी ने बनवाया था जिनका नाम रानी रासमनी था। वैसे तो रासमनी गरीब परिवार से थीं लेकिन उनकी शादी कोलकाता के जानबाजार के राजा राजचंद्र से हुई थी। रासमनी बचपन से ही धार्मिक प्रवृति की थीं और उनका पूजा-पाठ में बहुत मन लगता था। जब राजा की मौत हो गई तो रानी ने तीर्थयात्रा की योजना बनाई और बनारस जाने का सोचा। उन दिनों बनारस और कोलकाता के बीच रेल लाइन की सुविधा नहीं थी। कोलकाता से बनारस लोग नाव से जाया करते थे। रानी रासमनी ने भी गंगा नदी से जाने का रास्ता अपनाया और फिर उनका काफिला बनारस जाने के लिए तैयार हुआ। लेकिन यात्रा पर जाने के ठीक एक रात पहले रानी रासमनी के साथ एक अजीब घटना घटी। ऐसा कहते है कि मां काली ने उनके सपने में आकर उन्हें कहीं नहीं जाने और यही मंदिर बनवाने को कहा।
इसके बाद बनारस जाने का कार्यक्रम रद्द कर रानी ने गंगा के किनारे मां काली का मंदिर बनवाने का निर्णय लिया और मंदिर के लिए जगह की खोज शुरू कर दी। कहते हैं कि जब रानी गंगा के घाट पर जगह की तलाश करते हुए आईं तो उनके दिल से एक आवाज आई कि इसी जगह पर मंदिर का निर्माण होना चाहिए। फिर ये जगह खरीद ली गई और मंदिर बनाने का काम तेजी से कर दिया गया। 1847 में मंदिर का निमार्ण कार्य शुरू हुआ और पूरे आठ सालों बाद इसका काम 1855 को पूरा हुआ । इस मंदिर की भव्यता को देखकर इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है।
काली माँ का मंदिर नवरत्न की तरह निर्मित है और यह 46 फुट चौड़ा तथा 100 फुट ऊँचा है। मंदिर के भीतरी भाग में चाँदी से बनाए गए कमल के फूल जिसकी हजार पंखुड़ियाँ हैं, पर माँ काली शस्त्रों सहित भगवान शिव के ऊपर खड़ी हुई हैं। इस मंदिर में 12 गुंबद हैं। यह मंदिर हरे-भरे, मैदान पर स्थित है। इस विशाल मंदिर के चारों ओर भगवान शिव के बारह मंदिर स्थापित किए गए हैं। दक्षिणेश्वर मंदिर दक्षिण की ओर स्थित यह मंदिर तीन मंजिला है। ऊपर की दो मंजि़लों पर नौ गुंबद समान रूप से फैले हुए हैं। उन पर सुंदर आकृतियां बनाई गई हैं। दक्षिणेश्वर काली मंदिर के बाहर परमहंस की धर्मपत्नी शारदा माता और रानी रासमनी की समाधि बनी हुई है और वो वट वृक्ष है, जिसके नीचे परमहंस देव ध्यान किया करते थे।
मंदिर निमार्ण के बाद राज पूरोहित को यहां पूजा-अर्चना करने का जिम्मा सौपा दिया गया। रामकृष्ण परमहंस के बड़े भाई रानी रासमनी के यहां राज पूरोहित थें और वो अपने भाई परमहंस को यहां अपने साथ लेकर आए थें। इस मंदिर में पुजारी भी पैर रखने से डरते थे। हिन्दुओं की पुरानी जाति व्यवस्था और बंगाल की कुलीन प्रथा की वजह से यहां रहना उस समय काफी जोखिम भरा माना जाता था। स्वामी विवेकानंद और उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस की पहली मुलाकात और फिर भगवान के दर्शन तक के सारे किस्से दक्षिणेश्वर काली मंदिर से ही जुड़े हुए हैं। विश्व को एक नया संदेश देने वाले स्वामी विवेकानंद का आध्यात्म का सफर यही से शुरू हुआ था। कहते हैं कि दक्षिणेश्वर काली मंदिर ही वह मंदिर है जहां रामकृष्ण परमहंस को मां काली ने दर्शन दिया था और स्वामी विवेकानंद को भी भगवान के दर्शन इसी मंदिर में हुए थे।रामकृष्ण परमहंस ने माँ काली के मंदिर में देवी की आध्यात्मिक दृष्टि प्राप्त की थी तथा उन्होंने इसी स्थल पर बैठ कर धर्म-एकता के लिए प्रवचन दिए थे। रामकृष्ण इस मंदिर के पुजारी थे तथा मंदिर में ही रहते थे।
दक्षिणेश्वर माँ काली का मंदिर विश्व में सबसे प्रसिद्ध है। भारत के सांस्कृतिक धार्मिक तीर्थ स्थलों में माँ काली का मंदिर सबसे प्राचीन माना जाता है। सुबह 5.30 बजे से 10.30 तक और शाम 4.30 से 7.30 तक मंदिर में दर्शन कर सकते हैं। रोज़ाना हजारों की संख्या में भक्त दर्शन के लिए आते हैं।