संडे का दिन था। वैसे तो इस दिन स्कूल बंद रहते हैं, पर अगर कोई परीक्षा होती है, तो परीक्षा केंद्र बनाए जाने की वजह से स्कूल खुले
रहते हैं। आज़ भी एक स्कूल के सामने युवाओं की भीड़ लगी थी। ये सभी किसी प्रोफेशनल कोर्स के लिए परीक्षा देने आए हुए थे। यह दृश्य देखकर मुझे अपने समय की याद आ गई। मन अनायास ही फ्लैशबैक में चला गया, पुरानी यादों में खो गया। ऐसा लगा जैसे किसी फिल्म की रील चल रही हो ।
हमारे समय में परीक्षा को लेकर उत्सुकता और तैयारी का एक अलग ही माहौल हुआ करता था। जैसे ही परीक्षा केंद्र तय होता, हम एक दिन पहले ही जाकर अपने सेंटर को देख आते थे। यह इसलिए कि परीक्षा वाले दिन किसी भी तरह का संशय न रहे। गार्जियन भी इस बात पर जोर देते थे कि परीक्षा केंद्र का पता पहले ही साफ कर लिया जाए। सेंटर चाहे स्थानीय हो या किसी दूसरे शहर में, किसी तरह का जोखिम लेने का सवाल ही नहीं उठता था।
उस समय का युग तकनीकी तौर पर इतना समृद्ध नहीं हुआ करता था। गुगल बाबा थे ही नहीं तो गूगल मैप जैसी सुविधाएं कहां से आतीं।
हम तो लोगों से पूछताछ करते हुए अपने गंतव्य तक पहुंचते थे। मैट्रिक, इंटरमीडिएट, या ग्रेजुएशन की परीक्षा हो, मुझे याद नहीं कि कभी कोई गार्जियन हमारे साथ परीक्षा दिलवाने आया हो। हालांकि हम कुछ वैसे भी गार्जियन को देखते थे, जो बच्चों के साथ आते परीक्षा केंद्र तक आते थे। यदि परीक्षा दो सिटिंग में होती, तो उनके प्रेम और देखभाल का अद्भुत नज़ारा देखने को मिलता। साफ-सुथरे टिफिन बॉक्स में पैक किया हुआ खाना, लंच के बाद फल और कभी-कभी मीठे की व्यवस्था, यह सब उनकी चिंता और स्नेह को दर्शाता था।
लेकिन, हमारे लिए यह सब कभी न होने का मलाल नहीं था। बस बात निकली तो जुबां पर आ गई।
वो दौर ही कुछ अलग था। साधन सीमित थे, पर उत्साह और आत्मविश्वास भरपूर। तमाम तरह की चिंता और फ़िक्र से दूर।अधिकांश लोग साइकिल से सफर करते थे। स्कूटर और मोटरसाइकिल तो गिने-चुने लोगों के पास ही होते थे। कार का तो शायद ही कभी खयाल आता था। बड़ी दूर की कौड़ी थी।
आज का दौर एकदम अलग है। बच्चों के आत्मविश्वास और उनकी तैयारियों का स्तर कहीं अधिक ऊंचा है। आज वे किसी भी विषय या परिस्थिति का 360° विश्लेषण कर सकते हैं। तकनीक ने उनकी सोच, समझ और संसाधनों को अद्भुत ऊंचाई दी है।
हमारे समय में यह सब कहां था! परंतु, हर दौर की अपनी विशेषताएं और चुनौतियां होती हैं। आज़ का समय सुविधाओं और अवसरों से भरपूर है, तो हमारा दौर सीमित संसाधनों में आत्मनिर्भरता सिखाने वाला था। दोनों का अपना महत्व है, और दोनों ही यादगार हैं।
हमारे समय में परीक्षाओं का स्वरूप काफी अलग था। परीक्षाएं ऑफलाइन मोड में हुआ करती थीं, और उनकी तैयारियां भी एक अलग ही अनुभव थीं। कौन सा पेन ले जाना है, कौन सी पेंसिल सबसे बेहतर काम करेगी, शार्पनर और रबर भूलना नहीं है—इन छोटी-छोटी बातों का भी ध्यान रखा जाता था। एक दिन पहले ही सभी कुछ तैयार कर लेना, एडमिट कार्ड बार-बार जांचना, कहीं भूल ना जाएं और परीक्षा केंद्र तक पहुंचने की योजना बनाना—ये सब उस समय की सामान्य प्रक्रिया का हिस्सा था।
आज के समय में, अधिकतर परीक्षाएं ऑनलाइन मोड में होती हैं, खासकर प्रोफेशनल कोर्सेज और नौकरियों से संबंधित परीक्षाऐं । परीक्षा के इस डिजिटल स्वरूप ने पूरी प्रक्रिया को बदलकर रख दिया है। अब न तो पेन और पेंसिल की चिंता होती है, न ही शार्पनर और रबर की। इसकी जगह अब इंटरनेट कनेक्शन की स्थिरता, लैपटॉप या कंप्यूटर की कार्यक्षमता, और परीक्षा सॉफ्टवेयर की समझ महत्वपूर्ण हो गई है।
बदलाव इतनी तेजी से हुआ है कि कभी-कभी यह सोचकर आश्चर्य होता है कि अगर हमें आज के समय में परीक्षा देनी होती, तो क्या हम इस नए प्रारूप के साथ सामंजस्य बिठा पाते। परीक्षा हॉल की पारंपरिक घबराहट अब ऑनलाइन परीक्षा में लॉगिन की चिंता में बदल गई है।
डिजिटल परीक्षाओं ने छात्रों को नई तरह की चुनौतियों का सामना करने के लिए मजबूर किया है। तकनीकी ज्ञान अब उतना ही जरूरी हो गया है जितना विषय का ज्ञान। इससे एक नई तरह की तैयारी का दौर शुरू हुआ है, जहां छात्रों को न केवल विषयवस्तु पर ध्यान देना पड़ता है, बल्कि परीक्षा के तकनीकी पहलुओं पर भी महारत हासिल करनी होती है।
हालांकि, डिजिटल परीक्षाओं ने कई चीजों को आसान भी बनाया है। अब छात्रों को लंबी दूरी तय कर परीक्षा केंद्र तक जाने की जरूरत नहीं होती। कई बार ऑनलाइन परीक्षाएं घर से ही दी जा सकती हैं, जो समय और संसाधनों की बचत करता है। लेकिन इसके साथ ही, तकनीकी मुद्दों, जैसे बिजली कटौती या नेटवर्क समस्या, की चिंता भी बढ़ गई है।
समय के साथ परीक्षा प्रणाली में हुए इस बदलाव ने यह स्पष्ट कर दिया है कि हर पीढ़ी को नई परिस्थितियों के अनुसार खुद को ढालना पड़ता है। तकनीकी विकास ने जहां एक ओर जीवन को सरल बनाया है, वहीं यह भी सिखाया है कि नए कौशल सीखना और बदलाव को अपनाना समय की मांग है।
✒️ मनीश वर्मा’मनु’