(डा. नम्रता आनंद)
पटना, 22 अप्रैल हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर भगवान परशुराम का जन्मोत्सव बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस पावन दिन को अक्षय तृतीया कहा जाता है।परशुराम सदा अपने से बड़ो एवं माता पिता का सम्मान करते थे तथा उनकी आज्ञा का पालन करते थे।
माना जाता है कि इस दिन किया गया दान-पुण्य कभी क्षय नहीं होता। अक्षय तृतीया के दिन जन्म लेने के कारण ही भगवान परशुराम की शक्ति भी अक्षय थी।इस दिन भगवान विष्णु के परशुराम अवतार की पूजा करने से शौर्य, कांति एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है और शत्रुओं का नाश होता है। भगवान परशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं! उनके पिता का नाम जमदग्नि और माता का नाम रेणुका था।श्रीविष्णु अवतार भगवान परशुराम पराक्रम के प्रतीक माने जाते हैं।
उनके नामकरण के पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है। जन्म के बाद इनके माता-पिता ने इनका नाम राम रखा था। बालक राम बचपन से ही भगवान शिव के परम भक्त थे। वे हमेशा ही भगवान की तपस्या में लीन रहा करते थे। तब भगवान शिव ने इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर इन्हें कई तरह के शस्त्र दिए थे जिसमें एक फरसा भी था । फरसा को परशु भी कहते हैं इस कारण से इनका नाम परशुराम पड़ा उन्हें ऋषि जमगग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य भी कहा जाता है।
परशुराम जगत में वैदिक संस्कृति का प्रचार प्रसार करना चाहते थे. उन्होंने स्वयं ब्राह्मण होते हुए भी शस्त्र धारण करके क्षत्रियोचित व्यवहार कर वर्ण व्यवस्था की इस धारणा को मिथ्या साबित किया कि मनुष्य का वर्ण जन्म से निर्धारित होता है कर्म से नहीं।परशुराम दानवीर भी थे। वह दान करना अपना परम धर्म मानते थे. भगवान परशुराम ने अश्वमेघ यज्ञ करके पूरी दुनिया को जीत लिया था. लेकिन बाद में उन्होंने सबकुछ दान कर दिया।धार्मिक पुराणों में बताया गया है कि भगवान परशुराम के लिए सबसे ऊपर न्याय था और उन्हें न्याय का देवता कहा जाता है।