महिलाएं परिवार बनाती है, घर बनाती हैं, समाज बनाती हैं यहां तक की देश भी चला रही हैं, तो महिलाएं हमारे लिए रास्ते भी तो बना सकती हैं। जी हां बीआरओ की महिलाएं आज देश के सीमावर्ती इलाकों में पत्थरों, पहाड़ों, बर्फों के बीच 24 घंटे खड़ी हो कर हमारे लिए रास्ता बना रही हैं।
चाहे आप लद्दाख के सुदूर और दूर-दराज के इलाकों में हों या उत्तराखंड या उत्तर पूर्व के ऊपरी इलाकों में हों, प्राकृतिक सुंदरता और चुनौतीपूर्ण इलाके के अलावा, एक सामान्य कारक जो आपको मिलेगा वह है बीआरओ यानी बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन। सीमावर्ती इलाकों के टेढ़े- मेढ़े रास्तों और गड्ढों को समतल करने का काम करने वाली बीआरओ की महिलाएं आज समाज के के उन विचारों को भी समतल कर रही हैं, और एक बार फिर साबित कर रही हैं कि अगर इच्छाशक्ति और जुनून है तो जेंडर कोई बाधा नहीं है।
बढ़ रही महिलाओं की जिम्मेदारी
भारत आजादी के अमृत महोत्सव के 75वें वर्ष का समारोह मना रहा है, यह महिला सशक्तिकरण की दिशा में हमारे देश में जारी प्रयासों का भी उत्सव है। ऐसे में बीआरओ ने पिछले कुछ वर्षों में अधिकारियों से लेकर वाणिज्यिक पायलट लाइसेंस धारकों के स्तर तक बड़ी संख्या में महिलाओं को अपने कार्यबल में शामिल किया है। अधिकार, जिम्मेदारी और सम्मान के साधनों के माध्यम से उन्हें सशक्त बनाते हुए बीआरओ का दृढ़ विश्वास है कि राष्ट्र निर्माण के प्रयास में महिलाएं हमेशा सक्रिय भागीदार रहेंगी।
बीआरओ में महिला ब्रिगेड
अब बीआरओ के साथ काम करने वाली महिलाओं की संख्या 400 से अधिक है, और खास बात यह है कि उनमें से 200 से अधिक महिलाएं देश के दूरदराज के इलाकों में काम करते हुए अपनी योग्यता साबित कर रही हैं। भारतीय सेना और जनरल रिजर्व इंजीनियरिंग फोर्स (GREF) दोनों की महिला अधिकारियों को अब कमांड असाइनमेंट में तैनात किया जा रहा है। ये महिलाएं – अधिकारी, अधीनस्थ कर्मचारी और कैजुअल पेड मजदूर (सीपीएल) – अपने पुरुष समकक्षों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करती हैं।
आइए आज उनमें से कुछ महिलाओं को जानते हैं, जिन्हें हाल ही में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर अभूतपूर्व कार्य के लिए सम्मानित किया गया। इन्होंने प्रेरणादायक नेतृत्व कर अनुकरणीय मानक स्थापित किए हैं।
कार्यकारी अभियंता वैशाली एस. हिवासे
सड़क निर्माण कंपनी (आरसीसी) की कमान संभालने वाली पहली जनरल रिजर्व इंजीनियर फोर्स (जीआरईएफ) महिला अधिकारी बनीं। उत्तराखंड के कठिन क्षेत्र में काम करते हुए उन पर बहुत ही प्रमुख जिम्मेदारी है। चुनौतीपूर्ण क्षेत्र और विपरीत मौसम वाले इस इलाके में मुनिसैरी-बगदियार-मिलम को जोड़ने वाली महत्वपूर्ण भारत-तिब्बत सड़क निर्माण की जिम्मेदारी उन्हीं पर है।
मेजर आइना राणा
वह न केवल आरसीसी की कमान संभालने वाली पहली भारतीय सेना की महिला अधिकारी बनीं बल्कि पहली ऑल वुमन आरसीसी की स्थापना भी की। इसमें उनके सभी प्लाटून कमांडर भी महिला अधिकारी हैं। उनके अधीन तीनों पलाटून कमांडर, कैप्टन अंजना, एईई (सिविल) भावना जोशी और एईई (सिविल) विष्णुमाया के. भी महिला अधिकारी हैं। सीमा सड़क के माध्यम से इस प्रकार के सभी महिला नेतृत्व वाले दलों के द्वारा चार आरसीसी बनाने की योजना है, जिनमें से प्रत्येक में दो-दो पूर्वोत्तर और पश्चिमी क्षेत्रों से हैं। मेजर राणा जिस इलाके में काम करती हैं, वहां मौसम काफी कठोर है, जिससे अक्सर कार्य प्रभावित होता है। मेजर आइना राणा कहती हैं कि, कई बार उनकी टीम को हिमस्खलन, भूस्खलन और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के दौरान फंसे हुए नागरिकों के लिए बचाव अभियान चलाने की आवश्यकता होती है।
कार्यकारी अभियंता -ओबिंग टाकी
वह उत्तर-पूर्व क्षेत्र में एक अन्य आरसीसी की कमान संभाल रही हैं। उन्हें एक सर्व-महिला कार्यबल का गठन करने और बेली ब्रिज को डी-लॉन्च करने का कार्य सफलतापूर्वक करने का श्रेय दिया जाता है, यह काम अब तक केवल पुरुषों द्वारा ही किया गया है।
इलेक्ट्रिकल और मैकेनिकल इंजीनियर्स कोर की कर्नल नवनीत दुग्गल-
वह बीआरओ में सबसे वरिष्ठ महिला अधिकारी हैं, जिन्हें हाल ही में कर्नल के पद पर पदोन्नत किया गया है। कर्नल नवनीत दुग्गल श्रीनगर में स्थित एक स्वतंत्र फील्ड वर्कशॉप का नेतृत्व कर रही हैं और उन पर भारी उपकरणों के रखरखाव की जिम्मेदारी है।
महिला मजदूरों के लिए पहल
इन महिला अधिकारों के अलावा कई अन्य महिलाएं भी बीआरओ से जुड़ी हुई हैं, जो विषम परिस्थितियों में भी सड़क निर्माण के कार्य से लेकर कई अन्य जिम्मेदारी संभाल रही हैं। इसके अलावा महिला मजदूरों की बेहतरी के लिए भी बीआरओ द्वारा कई पहल की जा रही है, जो अपने जीवन की गुणवत्ता में सुधार करके कठिन परिस्थितियों में काम करती हैं। सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों के तहत उनकी बालिकाओं को शिक्षा देने और उनके स्वयं की आमदनी व दस्तावेजीकरण (प्रलेखीकरण) प्रबंधन में सहायता करती हैं।