पटना। राजद के प्रदेश प्रवक्ता चित्तरंजन गगन ने कहा है कि आरक्षण के नाम पर धरना देकर भाजपा घडयि़ाली आंसू बहा रही है।
राजद प्रवक्ता ने कहा कि आरक्षण का विरोध तो भाजपा के डीएनए में है। जब जब आरक्षण का मामला सामने आया भाजपा और उसके पूर्व जनसंघ का रवैया हमेशा उसके खिलाफ रहा है। पिछड़ी जातियों की स्थिति का अध्ययन करने के लिए जब 1953 में काका कालेलकर आयोग का गठन किया गया था तो तत्कालीन जनसंघ ने इसका विरोध किया था।
इसी प्रकार 1971 में जब तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर ने पिछड़ों की स्थिति का अध्ययन करने के लिए जब मुंगेरी लाल आयोग का गठन किया था तो तत्कालीन जनसंघ ने समर्थन वापस लेकर कर्पूरी जी की सरकार को गिरा दिया था। कर्पूरी जी जब दूसरी बार जनता पार्टी की सरकार में बिहार के मुख्यमंत्री बने और 1978 में बिहार में पहली बार पिछड़ों के लिए आरक्षण व्यवस्था लागू किए तो जनता पार्टी में शामिल जनसंघ के लोगों ने कर्पूरी जी की सरकार को अपदस्थ कर दिया था।
इसी प्रकार 1978 में हीं केन्द्र की तत्कालीन मोरारजी देशाई की सरकार द्वारा पिछड़ों की स्थिति का अध्ययन करने के लिए जब मंडल आयोग का गठन किया गया तो केन्द्र की मोरारजी देशाई की सरकार को अपदस्थ कर दिया गया और बाद में जनसंघ के लोगों ने जनता पार्टी से अलग होकर भारतीय जनता पार्टी का गठन कर लिया। 1990 में जब केन्द्र की वीपी सिंह की सरकार ने मंडल आयोग की अनुशंसा को लागू करने का निर्णय लिया तो भाजपा ने न केवल वीपी सिंह की सरकार से समर्थन वापस लिया बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से उसके विरोध में भाजपा द्वारा कमंडल यात्रा निकाला गया।
राजद प्रवक्ता ने कहा कि पिछड़ों का हितैषी होने का स्वांग रचने वाली भाजपा को जब बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाना था तो उस पद के स्वाभाविक दावेदार पिछड़ी जाति से आने वाले पूर्व उप मुख्यमंत्री रेणु देवी और पार्टी के वरिष्ठतम नेता प्रेम कुमार को दरकिनार कर दिया गया। राजद प्रवक्ता ने कहा कि भाजपा नहीं चाहती कि नगर निकायों के चुनाव में अतिपिछड़ों को आरक्षण मिले इसलिए एक सुनियोजित रणनीति के तहत आरक्षण के मामले को अपने समर्थकों के माध्यम से न्यायायिक प्रक्रिया में उलझाने का काम किया है जबकि आरक्षण के उसी आधार पर पहले भी चुनाव हो चुके हैं।