चुनावी अपडेट- अनुकूल परिस्थितियां बन रही है बीजेपी के लिए, वार के लिए तैयार हैं सभी दल

बिहार चुनाव की घोषणा होते हीं राजनितिक दलों में घमासान शुरू हो गया है। वर्तमान समय में कोई भी दल बिहार में इस स्थिति में नहीं है कि वह अकेले अपने दम पर चुनावी समर में उतर कर सके। सबसे बड़े दल बीजेपी की भी बिहार में वही हालात बनी हुई है। पिछले तीन दशक से बीजेपी बिहार में नंबर दो की भूमिका रही है। उनसे छोटे-छोटे और क्षेत्रीय दल भी नम्बर एक पर पहुँच चुके पर भाजपा को नंबर एक का दर्जा आज तक नहीं मिल सका।


इस चुनाव में भी सीटों के बंटवारे को देखा कर लगता हीं नहीं है कि बीजेपी नंबर एक के लिए चुनाव लड़ती है। हालांकि इसका एक पहलु यह भी हो सकता है कि वह बिहार में किसी भी सूरत में लालू की वापसी नहीं चाहती हो इसलिये वह किसी भी हद तक समझौता करती है, ताकि लालू विरोधी मत का विभाजन नहीं हो।
इस बार का चुनाव अन्य चुनावों से भिन्न होगा। वैश्विक महामारी कोरोना को देखते हुए चुनाव आयोग ने कई दिशा-निर्देश जारी किये हैं जिसमे सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाला निर्देश वर्चुअल प्रचार का है, और इसमें कहीं से दो मत नहीं कि वर्चुअल प्रचार में बीजेपी रेस में सबसे आगे रहेगी।
चुनाव के पूर्व से हीं बीजेपी ने अपनी टीम को काफी हाईटेक बना कर रखा है। वर्चुअल रैली और वर्चुअल सभाओं का काफी अनुभव बीजेपी की टीम को है जो अन्य दलों की अपेक्षा अधिक फायदा दे सकता है।
बीजेपी इस चुनाव में अलग रणनीति के तहत कार्य कर रही है। बीजेपी के नेता वर्तमान परिस्थिति में सोशल मीडिया की ताकत से अच्छी तरह से वाकिफ हैं। इसलिये पार्टी ने संगठन में अलग से एक मजबूत सोशल मीडिया और आईटी सेल बनाया है। ये सोशल मीडिया के माध्यम से बीजेपी के द्वारा किये जा रहे कार्यों को लोगों तक पहुँचाने का कार्य कर रही है।


इस रणनीति को कितनी महत्त्व दी जा रही है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एक अत्यंत महत्वपूर्ण केन्द्रीय मंत्री भी इस पर लगातार चर्चा में हैं। आईटी सेल और सोशल मीडिया सेल भारत सरकार के द्वारा किये जा रहे कार्यों को न्यूज़ पोर्टल्स और सोशल मीडिया के बड़े-बड़े पेज के माध्यम से ग्रामीण स्तर तक पहुँचाने का प्रयास लगातार जारी है।
बीजेपी ने अपनी सोशल मीडिया टीम को इतनी मजबूत बना रखी है कि उसके इर्दगिर्द अन्य दलों का फटकना भी बहुत मुश्किल है।
सोशल मीडिया और अन्य डिजिटल माध्यमों के प्रचार की तह में जाने का प्रयास करने पर यह पता चलता है कि बिहार में कुछ केन्द्रीय मंत्री और कुछ विधायकों और विधान पार्षदों के द्वारा सक्रीय रूप से इस पर पैनी नजर रखा जा रहा है।
अब बार करते हैं ग्रामीण वोटरों की, ग्रामीण मतदाताओं तक पहुँचने के लिए केंद्र सरकार के द्वारा इतनी योजनाओं का क्रियान्वयन हो रहा है कि इसका फायदा सीधे तौर पर उन्हें मिल रहा है। पीएम मोदी की दुदर्शी योजना “आयुष्मान भारत” ग्रामीणों को लिए बहुत बड़ी सौगात रही। जहाँ इलाज में लाखों रूपये खर्च होते थे वहीँ इस योजना को लागू कर के सरकार ने ग्रामीणों के एक बड़े तबके को अपना मुरीद बना लिया है। शुरुआत दौर से हीं बिहार पर केन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद की खास नजर रही है। इन्हीं के विभाग के द्वारा संचालित सीएससी के द्वारा टेलीमेडिसिन एक ऐसे सेवा शुरू की गयी जिससे कोई भी व्यक्ति अपने गाँव से हीं देश के बड़े-बड़े अस्पताओं के चिकित्सकों मात्र एक रूपये में कंसल्टेंसी कर सकता है। हालाँकि सेवा देने वाले शारीरिक रूप से कमजोर व्यक्ति को घर बैठे भी इसके सुविधा देने का कार्य किये हैं। विभागीय सूत्रों के मुताबिक लॉकडाउन के दौरान सरकार की यह सेवा ने रिकॉर्ड काम किया।

अभी हाल हीं में पीएम मोदी ने बिहार के हर गाँव तक इन्टरनेट पहुँचाने का वादा किया है। पीएम मोदी की एक खास विशेषता यह है कि ये आश्वासन के साथ काम भी शुरू कर देते हैं, जो दिखने लगता है। हर गाँव में इन्टरनेट देने की घोषणा के तुरंत बाद यह देखा जा रहा है कि इन्टरनेट के लिये फाइबर को खींचने का काम आरम्भ भी हो गया। यदि गांवों में फाइबर के माध्यम से इन्टरनेट पहुँचता है तो यहाँ के लोगों को तेज स्पीड का इन्टरनेट मिलना शुरू हो जायेगा जिससे गाँव को लोग भी सोशल मीडिया के माध्यम से सरकार से सीधा संवाद कर सकेंगे और देश की मुख्य धारा में जुड़ सकेंगे।

किसान बिल को लेकर हालांकि विपक्ष के तेवर विरोधाभासी है पर तमाम आरोपों और कुछ कमियों के बाद भी अगर इस बिल के बारे में जाना जाये तो निश्चित तौर पर यह किसानों के लिए फायदेमंद होगा। इस बिल से जहाँ किसान सीधे अपने सामान को अच्छी कीमत में बेच सकते हैं वहीँ मंडी में भी कॉम्पिटिशन आएगा और किसान फायदे में रहेंगे। ये सारी योजनायें इस चुनाव में बीजेपी को फायदा पहुंचा सकती है।

बीजेपी का एक गुट शुरू से हीं नीतीश कुमार की खिलाफत करता आया है। बड़े दल होने के बावजूद भी बीजेपी का नीतीश कुमार के सामने घुटने टेकना एक रणनीति का हिस्सा है। बीजेपी अच्छी तरह से जानती है कि भले हीं नीतीश कुमार अकेले कुछ नहीं कर पाएंगे पर यदि वह दुबारा लालू प्रसाद के पास गए तो “एक और एक ग्यारह” का फार्मूला उनके विपक्ष में चला जायेगा। इसलिए समय का इन्तजार कर रही बीजेपी इस बार कुछ नया गुल खिला सकती है।
दूसरी ओर तेजस्वी का खुद अकेले चुनावी कमान संभालना भी बीजेपी को फायदा पहुंचाएगा। आपको बताते चलें कि तेजस्वी ने जो बिहार चुनाव को लेकर पोस्टर जारी किया है उसमे वो खुद अकेले दिखाई दे रहे हैं। इन पोस्टरों में न तो लालू प्रसाद हैं और न हीं राबड़ी देवी। बिहार में लालू प्रसाद का अपना कद है और उनके अंधभक्त वोटर भी जो हैं शायद तेजस्वी को बगैर लालू स्वीकार नहीं करेंगे। यह राजद की लड़ाई को कमजोर कर सकता है।
एक सही और बेहतर संगठन को लेकर चल रही लाखों कार्यकर्ताओं की पार्टी बीजेपी इस चुनाव में यदि सिर्फ अपने सरकार के द्वारा किये गए कार्यों को भी सही तरीके से जन-जन तक पहुँचाने में सफल होती है तो निश्चित तौर पर इस बार स्थिति बहुत बदली नजर आ सकती है।

मधुप मणि “पिक्कू”

मुख्य सम्पादक, रेस मीडिया ग्रुप।
पूर्व सम्पादक पीटीएन न्यूज।
संयुक्त सचिव, डब्ल्यूजेएआई।

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