कलमजीवी समाज के भीष्म पितामह शोभाकांत दास जी 20 नवंबर 2021 की सुबह 9:00 इस संसार को छोड़ स्वर्ग सिधार गए। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अनुयायी, लोकनायक जयप्रकाश नारायण के अनन्य सहयोगी शोभा बाबू जीवन पर्यंत समाज और राष्ट्र की सेवा में तल्लीन रहे। चित्रगुप्त सामाजिक संस्थान के संरक्षक के रूप में उनकी सेवा और मार्गदर्शन को हम कभी भुला नहीं सकते।
दक्षिण भारत में बिहारी और कलमजीवी समाज को सम्मान के साथ स्थापित कराने वाले शोभा बाबू प्रचार-प्रसार से दूर रहें। मैं उनसे कभी मिला नहीं लेकिन दूरभाष पर बराबर घंटों की वार्ता में उनसे प्राप्त मार्गदर्शन और स्नेह आशीष की ऊर्जा पाकर समाज की सेवा करने का सौभाग्य मुझे मिला है।
नोआखाली में बापू के संपर्क में आए और तन -मन- धन से मां भारती की सेवा में अपना सर्वस्व सर्मपण कर दिया। लोकनायक जयप्रकाश नीत जन आंदोलन के दौरान कर्पूरी जी सहित हजारों भूमिगत सेनानियों को अपने संरक्षण में फरारी के दिनों में आश्रय दिए।
चेन्नई का राजेंद्र भवन, प्रभावती जयप्रकाश सेवा केंद्र आज भी सेवा की मिसाल है। शंकर नेत्रालय, चेन्नई में नेत्र चिकित्सा हेतु चेन्नई जाने वाले बिहारियों की उनके द्वारा की गई सेवा व सहयोग लंबे अर्से तक लोग याद रखेंगे।
राज्यपाल पद तथा राज्यसभा की सदस्यता के प्रस्ताव इन्हें गैबिहारी जी के नेताओं द्वारा अनेकों बार प्राप्त हुए, पर उन्होंने विनम्रता पूर्वक अस्वीकार कर दिया। आज तो कलमजीवी समाज राज्यपाल पद, राज्यसभा की सदस्यता के अपने पुत्रों को प्रोजेक्ट करने में कोई कसर नहीं उठा रखता।
आज तो लोग नेताओं के साथ की अपनी तस्वीर को ड्राइंग रूम में लगाकर उसकी भी मार्केटिंग करते हैं। शोभा बाबू ने संबंधों की मार्केटिंग कभी नहीं की।
एक बार मैंने उनसे उनके जीवन तथा उनके आदर्शों को आम जन तक पहुंचाने के लिए उसे प्रकाशित कराने का आग्रह किया। उन्होंने यह कहते हुए कि उनके जैसे लाखों लोगों ने बहुत सारे कार्य किए हैं जिसमें उनका योगदान तुच्छ है। लोग किए गए कार्यों से प्रेरित हो आगे भी यह जारी रखें, यह क्रम अनवरत चलता रहे। वे प्रचार-प्रसार से कोसों दूर रहते थे। कायस्थ रत्न कृष्ण नंदन सहाय, शिव कुमार सिन्हा, जटा शंकर दास, पदम श्री डॉक्टर शैलेंद्र नाथ श्रीवास्तव, कैलाश नारायण सारंग और अब शोभाकांत दास जी के निधन से हुई रिक्तता की भरपाई होना असंभव है। कलमजीवी समाज आज अनाथ – सा महसूस कर रहा है।
देश के किसी भी कोने में सामाजिक कार्य करने वालों आम कार्यकर्ता की वे बेहिचक हौसला अफजाई करते थे। स्मारिका हो, पुस्तक लेखन हो बिना मांगे उनका अंशदान संस्था के खाते में पहुंच जाता था। आज के हमारे शिरोमणिओ द्वारा पत्रिकाओं में विज्ञापन का आदेश देने के बाद भी उसका भुगतान नहीं किया जाता। चित्रगुप्त सामाजिक संस्थान को वर्ष 1974 से ही उनका संरक्षण, मार्गदर्शन, सहयोग प्राप्त होने का गौरव प्राप्त है। जटाशंकर दास पर मुझ द्वारा संपादित ‘जस की तस धर दीनी चदरिया’ और ‘बिहार का अख्यात गांधी-पंडित राजकुमार शुक्ल’ की दो-दो सौ प्रतियां मंगवा कर बिना मांगे उसकी कीमत संस्था के खातों में जमा करा देना और और उसकी प्रतियां निःशुल्क वितरित करा देना उनके अभिभावकत्व का उदाहरण है। जब भी वे पटना आते मेरी खोज अवश्य करते हैं। आभाग्वश उनका दिव्य दर्शन मेरी किस्मत में नहीं था, मिल ना सका।
समाज की सेवा में जुटे 94 वर्षीय शोभा बाबू पिछले दिनों हुए अपने पुत्र प्रदीप के निधन के बाद भीतर से टूट गए, लेकिन समाज और राष्ट्र की सेवा में लगे रहे।
आज जबकि हमारा समाज व्यक्तिवादी बन अपने आप में मस्त है, हमारे शिरोमणि पद, प्रतिष्ठा और अपने प्रचार-प्रसार में लगे हैं। लोग सिर्फ पंगत पर का संगत कर रहे हैं। आपने बात की संततियो को स्थापित करने हेतु समाज को बेवकूफ बनाकर अपना उल्लू सीधा करने में जुटे हुए हैं। हम अपने असली नायकों को विस्मृत करते जा रहे हैं, जो एक सांस्कृतिक अपराध है। इसके लिए भावी पीढ़ी हमें कभी माफ नहीं करेगी।
शोभा बाबू की स्मृति में एक शोक सभा तक का आयोजन नहीं किया जाना और छुटभैय्ये बयान बहादुरों का कोई बयान तक नहीं जारी होना निश्चय ही शर्मनाक है।
सोशल मीडिया के बयान बहादुर भी उतना ही अपना इतिहास जान पा रहे हैं जितना उनके शिरोमणि अपना लाभ – हानि देखकर उन्हें बता रहे हैं।
भगवान श्री चित्रगुप्त हमें साहस, सद्बुद्धि प्रदान करें ताकि हम अपने पूर्वजों के रास्ते पर चलकर समाज और राष्ट्र के नवनिर्माण में अपनी नि:स्वार्थ सेवा दे सकें।
कलमजीवी समाज के पितामह, बिहार और राष्ट्र के गौरव शोभाकांत बाबू को सादर नमन।