पटना, 13 नवम्बर 2021 : बज्जिकान्चल की समृद्ध संस्कृति एवं विरासत को उसकी पहचान दिलाने, भारत की जनगणना में उपयोग एवं बज्जिका को राज्य सरकार द्वारा पहचान दिलाने के उद्देश्य से चल रहे बज्जिका बचाओ आंदोलन का संवाददाता सम्मेलन आज पटना में स्थित बिहार इंडस्ट्रीज़ एसोसिएशन के कार्यालय सभागार में सम्पन्न हो गया, जिसमें आंदोलन के संयोजक गंगा कुमार, बज्जिका की प्रख्यात कलाकार कंचन प्रकाश, सामाजिक कार्यकर्ता राम नरेश शर्मा, बज्जिका पुरातत्व विशेषज्ञ विद्या चौधरी और आईएएस डा० रंजीत कुमार सिंह, सामाजिक कार्यकर्ता श्री अभय कुमार और डी आलिया ने भाग लिया।
इस मौके पर गंगा कुमार ने कहा कि बज्जिका भाषा बज्जिकांचल की सभ्यता, संस्कृति, विरासत, कला की संवाहिका है। विश्व के इतिहास से भारत के इतिहास को भारत के इतिहास से बिहार के इतिहास को और बिहार के इतिहास से वैशाली, बज्जिकांचल के इतिहास को निकाल दिया जाए तो इन सबों की सभ्यता, संस्कृति का इतिहास अधूरा रह जाएगा।
वहीं कंचन प्रकाश ने कहा कि वे अपनी मिट्टी से अत्यधिक प्रेम करती है और इससे उन्हें बहुत लगाव है। वें बज्जिका कला को पुरे विश्व पटल पर दर्शाना चाहती है जिसके लिए वें पूर्ण रूप से समर्पित है। उन्होनें आगे कहा कि बज्जिका कला एक बहुत ही पौराणिक कला है जिसे सहज कर रखना आवश्यक है। राम नरेश शर्मा ने यह जानकारी दी कि बज्जिका बोलनेवाले लोग बज्जिकांचल के बाहर बिहार के अन्य जगहों में और देश-दुनिया में भी फैले हुए हैं। लिंग्विस्टिक सर्वे के प्रतिवेदन में एक-दो जगहों पर बज्जिका का उल्लेख मात्र है और जनगणना प्रतिवेदन तो इस संबंध में पूरी तरह मौन है। ऐसा पता चलता है कि जनगणना प्रतिवेदन तैयार करनेवाले बज्जिका बोलनेवालों की भाषा के रूप में हिन्दी अंकित करते आये हैं अथवा उन्हें किसी अन्य समीपस्थ भाषा की चादर से ढ़कते आये हैं। ऐसा होने से बज्जिका भाषा और बज्जिकाभाषी के साथ घोर अन्याय होता आया है।
पत्रकारों से बातचीत में बज्जिका की पुरातत्व विशेषज्ञ विद्या चौधरी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि किसी भी राष्ट्र की पहचान उस राष्ट्र की भाषा और संस्कृति से होती है। उन्होंने आगे कहा कि मातृभाषाओं को हमोलोगों ने या किसी व्यक्ति विशेष ने नहीं बनाया है। उसने समाज, संसार के विकास में अपनी उपयोगिता की बदौलत स्वयं अपनी उपस्थिती दर्ज कराई है। यह सोचने की बात है की बिना भाषा के समाज का निर्माण, और उसकी व्यवस्था नहीं हो सकती। अतः बज्जिकांचल में इसकी भाषा आज से लगभग दस-बारह हजार वर्ष पहले ही अपनी उपस्थिती दर्ज करा चुकी है, जिसका कोई नाम नहीं रहा होगा। संविधान के अनुसार राज्य और नागरिकों कि ज़िम्मेदारी है कि वे लोगों कि विशिष्ट (मातृभाषा) भाषा, लिपि और संस्कृति का संरक्षण करें।
डा० रंजीत कुमार सिंह, आईएएस, बज्जिकावासी ने भाषा की उत्पत्ति पर प्रकाश डालते हुए कहा कि बज्जिका भाषा का उद्भव और विकास उस भू-सांस्कृतिक परिवेश में हुआ हैं जो लोकतंत्र के शैशव काल का साक्षी रहा हैं। बिहार को भाषाई समृद्धि प्रदान करने में बज्जिका की एक महनीय भूमिका रही हैं। बज्जिका भाषा के साथ साथ एक संस्कृति भी हैं जिसके केंद्र में समता, लोकतंत्र और सहिष्णुता जैसे उद्दात मानवीय मूल्य जुड़े हैं। असंख्य लोग बज्जिका को नवजीवन प्रदान के ऋषि स्वप्न को साकार करने के लिए भगीरथ प्रयास कर रहे हैं।
अभय कुमार ने कहा कि बज्जिका के सभी विधा में किताब लिखे गए हैं। वर्तमान में 300 से ऊपर पुस्तक अब तक लिखी जा चुकी हैं। इसकी अकादेमी हो पढ़ाई हो तो असंख्य लोगों की रोजी-रोटी का माध्यम बन सकती हैं। बज्जिका भाषा में ऐसे अपार अवसर हैं।
डी आलिया ने बज्जिका भाषा के इतिहास एवं विरासत पर प्रकाश डालते हुए कहा कि बज्जिका विश्व के प्रथम गणराज्य वैशाली की भाषा रही है। इस आठ कुलों वाले बज्जि गणराज्य की राजधानी वैशाली थी। पूरा विश्व अपने विरासत के संरक्षण के लिए सजग है। वहीं बज्जिका हमारी ही उपेक्षा का दंश झेल रही है। वैशाली के जिस गणतंत्र को लेकर बिहार ही नहीं पूरा भारत गौरवान्वित है, वहीं की भाषा बज्जिका अपनी रक्षा के लिए अपनी संतानों पर टकटकी लगाये बैठी है।
अंत में संयोजक गंगा कुमार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में उपस्थित सभी सदस्यों एवं मीडिया बंधु का धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कहा कि “बज्जिका बचाओ आंदोलन” बज्जिका भाषा के गौरवपूर्ण विरासत का पुनः स्थापित करने की एक मुहिम है जिसमें कई बिहारी एवं भाषाविद् जुड़ रहें है तथा इस मुहिम को सफल बनाने के लिए कटिबद्ध है।