कोरोना वायरस से पूरी दुनिया लड़ रही है। कोरोना से छुटकारा पाने के लिए कई देश इसकी वैक्सीन बनाने पर रिसर्च कर रहे हैं लेकिन अभी तक कोरोना की वैक्सीन तैयार नहीं हो पाई हैं। ऐसे में कोरोना को लेकर तमाम तरह की अफवाहें, अंधविश्वास और भ्रम भी फैलाए जा रहे हैं।कोविड-19 महामारी का कारण बने कोरोनावायरस ने देश में धीरे-धीरे भगवान का रूप ले लिया है. अंधविश्वास में लोग इसे ‘कोरोना माई’ बुला रहे हैं.
वायरस को ये नया नाम देने वाले, देवी मानकर देश के कई हिस्सों में इसकी पूजा कर रहे हैं. पूजा के दौरान ‘कोरोना माई’ को लौंग, लड्डू और फ़ूल चढ़ाए जा रहे हैं. महिलाएं कोरोना को माई मानकर पूजा कर रहीं हैं। जिसकी पूजा करने से उसका प्रकोप खत्म हो जाएगा।
पूजा करते समय महिलाओं के इस झुण्ड ने ना तो मास्क पहना है, ना सोशल डिस्टेंसिंग की है। जो कोरोना को रोकने लिए सबसे जरूरी और कारगार कदम हैं। पूरब के गांवों से आए ‘कोरोना माई’ की पूजा के विडियो वायरल हो रहे हैं।
अन्धविश्वास की इंतेहा बताने वाली ये घटना इस दौर में हो रही है
गांव की स्त्रियों का शाम के वक्त सिवान (गांव की सीमा) में झाड़-झंखाड़ वाली किसी जगह पर छोटे-छोटे गड्ढे खोदकर उनकी तली को समतल करना, उसकी अच्छे से लिपाई करना, दिया जलाना और वहीं एक कतार में नौ लड्डू रखना।
हर लड्डू से सटा एक-एक गुड़हल का फूल रखना और हर फूल के पास एक-एक सिंदूर का टीका लगाकर, हाथ जोड़कर मन ही मन घर-परिवार सुरक्षित रखने की विनती करना।
फिर थाली, घंटी, घंटा बजाकर थोड़ी-थोड़ी बदली हुई पारंपरिक धुनों में ‘बिदेसवा से आई’ इस देवी का एक सामूहिक भजन और आयोजन खत्म होते ही गड्ढों को फूल-मिठाई समेत पाटकर पूजा स्थल से विदाई लेना, किसी उत्सव से कम नहीं लगता, जैसे हम सामान्य दिनों में मंदिरों और पूजा स्थलों में चाव से बिना किसी डर और संकोच के जाते है।
अन्धविश्वास की इंतेहा बताने वाली ये घटना इस दौर में हो रही है, ये सोचकर मन सहम जाता हैं, जो स्वाभाविक है। मजे की बात यह कि ऐसा कहने वालों में वे संभ्रांत जन अधिक हैं जिन्होंने कुछ दिन पहले कोरोना के ही संदर्भ में इससे मिलते-जुलते कर्मकांड अपने शहरी आवासों में संपन्न किए हैं।
देखने में ये भी आया है कि जैसे ही लॉक डाउन से छूट मिली है। धार्मिक संस्थाओं में भीड़ जुटना शुरू हो गई है। ग्रामीण इलाकों में महिलाएं मंदिरों में झुण्ड बनाकर जा रही है।
ये कैसी आस्था है, कैसे अन्धविश्वास है? जब महामारी का एकदम डर आया तो इन सभी संस्थाओं के दरवाजे बंद थे। पुलिसवाले और स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी ही एकमात्र आस बचे थे, जो लोगों के जीवन को अपनी जान दांव पर लगाकर बचा रहे थे।
और अब अन्धविश्वास में डूबे लोगों को पत्थरों में भगवान नज़र आ रहा है। जो इनको इस महामारी से बचाएगा। ये घटनाएं अज्ञानता और तथाकतित धार्मिक ठेकेदारों की घिनौनी करतूत है, जिनकी दुकानें लॉक डाउन में बंद हो गई है।
मेरा मानना है कि आज हम जिन लोगों को देवी-देवता बनाकर पूजा-अर्चना कर रहे है, वो अपने दौर के अच्छे और सामाजिक लोग थे, जिन्होंने समाज कि भलाई में अपनी ज़िंदगी लगा दी। उनमें दिव्यशक्ति और भगवान जैसा कुछ नहीं था। वो अपने समय के अच्छे लोग थे और अच्छे कार्यों के फलस्वरूप समाज में मान्यता प्राप्त थे। उद्धरण के लिए दशरथ पुत्र राम, ये भी तो एक आम मानव थे जो अपने सद्कर्मों से श्रीराम हो गए।
वक्त के साथ ढोंगी लोगों ने उनके नाम पर संस्थाएं बनाकर लोगों को लूटना शुरू कर दिया और धर्म को व्यवसाय बना दिया। प्रचलित देवी-देवताओं को प्रसन्नचित करने के लिए अन्धविश्वास में अंधे होकर ऐसे वरदान प्राप्ति की पूजा-पाठ के बजाये हमें उन व्यक्तित्वों की अच्छी शिक्षा को अपनाने की जरूरत है।
कोरोना के बढ़ते आंकड़ों के बीच दूर दराज के गांवों में इस बीमारी को लेकर फैल रहे अंधविश्वास से जुड़े किस्से सामने आना चिंतनीय हैं। यह वाकई तकलीफदेह और इस बीमारी को विस्तार देने वाली बात है कि महिलाओं ने अंधविश्वास के चलते कोरोना वायरस की वैश्विक महामारी को देवी मान लिया है और इन महिलाओं का मानना है कि कोरोना माई की पूजा करने से इस महामारी से बचा जा सकता है।
सोशल डिस्टेंसिंग की पालना और मास्क लगाने जैसी जरूरी गाइडलाइंस की अनदेखी करते हुए महिलाएं समूह में एकत्रित होकर कोरोना वायरस को भगाने के लिए पूजा अर्चना कर रही हैं।
इन महिलाओं का मानना है कि कोरोना बीमारी नहीं, देवी के क्रोध का कहर है जिसको पूजा करने पर कोरोना माई प्रसन्न होकर अपना क्रोध शांत कर लेंगी। जिससे यह महामारी खत्म हो जाएगी।
आज जब ये बीमारी गांवों-कस्बों तक पहुंच चुकी है तब महिलाओं का जागरूक और सजग होने के बजाय अंधविश्वास की जद्दोजहद में फंसना बेहद खतरनाक है।
कोरोना वायरस के संक्रमण को दैवीय आपदा मानकर पूज रही स्त्रियां यह भी नहीं समझ रहीं कि वे इस महामारी को और विस्तार देने का माध्यम बन रही हैं। नासमझी की हद ही है कि अंधविश्वास के फंदे में फंसी ग्रामीण इलाकों की महिलाएं खुद अपने और अपने परिवार के लिए खतरा मोल ले रही हैं।
इस बीमारी की गंभीरता को समझने के बजाय इससे मुक्ति पाने का रास्ता ऐसे अन्धविश्वास में ढूंढ रही हैं।
दरअसल, कोरोना से जुड़ा यह अन्धविश्वास भय और अशिक्षा का मेल है। आस्था के नाम पर उपजा महिलाओं का यह अजब-गजब व्यवहार जागरूकता की कमी और इस त्रासदी से जुड़ी भयावह स्थितियों को न समझ पाने का नतीजा है। जो वाकई अशिक्षा और जागरूकता की कमी की स्थितियों को सामने लाता है।
अगर ऐसे ही होता रहा तो भविष्य में अंधविश्वास की ऐसी खबरें और उनसे जुड़ी अफवाहें अंधानुकरण और विवेकहीन सोच को बढ़ावा देने वाली साबित होंगी।
आज जब भारत में संक्रमण के मामले दुनिया में सबसे ज्यादा होने के नजदीक है, ऐसे में यह अंधविश्वासी सोच इस लड़ाई को और मुश्किल बना देगी।
इतना ही नहीं अंधविश्वास के चलते की जा रही पूजा-अर्चना की खबरें यूं ही आती रहीं तो यह अंधविश्वास भी व्यवसाय बन जाएगा।
हमारे यहां पहले से भी कई बीमारियों के मामले में लोग झाड़-फूंक जैसे इलाज के तरीकों में उलझे हुए हैं। कोई हैरानी नहीं कारोबारी सोच के चलते इस फेहरिस्त में कोरोना जैसे भयावह संक्रमण को भी शामिल कर लिया जाए।
आपदा के इस दौर में ऐसे अंधविश्वास हालतों को भयावह बना देंगे।
कोरोना महामारी से लड़ने के लिए आशंकाएं नहीं बल्कि जागरूकता और विश्वास जरूरी है। ऐसे में दैवीय आपदा मानकर कोरोना भगाने के अंधविश्वास के नाम पर हो रहे ऐसे जमावड़े कोरोना जैसी संक्रामक बीमारी को बढ़ावा देंगे। अफसोसनाक ही है कि महिलाएं आज भी अंधविश्वास के फेर में फंसी हैं।
इस महामारी से हम विज्ञान का हाथ थामकर ही निकल सकते हैं। किसी भी महिला या पुरुष को अंधविश्वास में नहीं पड़ना चाहिए क्योंकि कोरोना एक वायरस है।
इसको लेकर जो साइंटिफिक फैक्ट है उसके अनुसार सतर्कता बरतने की सलाह मानना बेहद जरूरी है। शासन-प्रशासन के निर्देश का पालन करके ही कोरोना से बचा जा सकता है, जरूरी है कि प्रशासनिक अमला भी ऐसे अन्धविश्वास को मानने और इससे जुड़ी अफवाहें फैलाने वालों के साथ सख्ती बरते। ताकि रूढ़ीवादी सोच ही नहीं इस बीमारी के विस्तार पाने पर भी लगाम लग सके।
—-प्रियंका सौरभ
रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,
कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार