अमेरिका ने चीन को कोरोना महामारी के लिए उत्तरदायी घोषित किया है और भारत ने इसका समर्थन किया है, इसलिए भारत और अमेरिका के घनिष्ठ संबंध हो गए हैं । इसके साथ ही अमेरिका ने वैश्विक स्तर पर भारत को चीन केे विकल्प के रूप में सामने लाने का प्रयत्न आरंभ किया है । इस पूरी स्थिति से होनेवाली आर्थिक हानि के प्रतिशोध स्वरूप चीन ने अब भारत के विरुद्ध खुला युद्ध छेड दिया है । इसके लिए वह भारत को चारों ओर से घेरने का प्रयत्न करने लगा है । वह भारत के पुराने शत्रु पाकिस्तान को भारतविरोधी गतिविधियां करने के लिए उकसा रहा है, इसके साथ ही भारत के पारंपरिक मित्र नेपाल को भी वह भारत के विरुद्ध भडकाकर भारत के भूभाग पर दावा करने के लिए उद्युक्त कर रहा है । दूसरी ओर बांग्लादेश में उपनिवेश कर बांग्लादेश को भी अपने शिकंजे में रखने का प्रयत्न कर रहा है । इस प्रकार भारत पर चारों ओर से एक ही समय पर आक्रमण करने का चीन का षड्यंत्र सामने आ रहा है । कुल मिलाकर वैश्विक स्तर पर 2 गुट बन गए हैं – चीन और उसकी कठपुतली बने राष्ट्र एक ओर और चीन के विरुद्ध भूमिका लेनेवाले राष्ट्र दूसरी ओर । यह पूरी परिस्थिति तृतीय विश्वयुद्ध की पूर्वपीठिका बन रही है, यही इससे स्पष्ट हो रहा है ।
इस काल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व को कसौटी पर परखा जाएगा । चीन को हराने के लिए अमेरिका से संबंध दृढ करना, यूरोपीय राष्ट्रों की सहायता पाने का प्रयत्न करना, ऐसे प्रयास सरकार कर रही है । विदेशनीति के रूप में ऐसा करना योग्य है । वर्तमान में भारत द्वारा ली जा रही आक्रमक भूमिका प्रधानमंत्री मोदी की नीतियों का मूर्त रूप है । तथापि देश के समक्ष उत्पन्न विकट स्थिति को देेखते हुए, इन प्रयत्नों में और अधिक गति आना अपेक्षित है । अमेरिका और यूरोपीय राष्ट्रों का भारतद्वेष छिपा नहीं है । गत अनेक दशकों से भारतद्वेष के कारण उन्होंने पाक की आर्थिक सहायता की है । इस आर्थिक सहायता का दुरुपयोग करते हुए पाक ने यह पैसा जिहादी आतंकवाद के पोषण में लगाया । यह पाक समर्थित आतंकवाद और उसका छिपा समर्थन करनेवाले चीन अब अमेरिका और यूरोपीय राष्ट्रों के लिए सिरदर्द बन चुके हैं । इसलिए ये राष्ट्र अब भारत के पक्ष में खडे हैं; परंतु यह समर्थन मित्रता के कारण निर्माण नहीं हुआ है । अपितु भारत, चीन अथवा पाक के विरुद्ध कुछ तो कर रहा है, इसलिए अब उसके कंधे पर बंदूक रखकर अपना हित साधने का प्रयत्न ये राष्ट्र कर रहे हैं । इसलिए जब सचमुच युद्ध का समय आएगा, तब ये राष्ट्र भारत की कितनी सहायता करेंगे, यह प्रश्न है । इसके लिए ‘स्वयं ही युद्धसज्ज और स्वयंपूर्ण होना’ इसके अतिरिक्त भारत के समक्ष अन्य कोई पर्याय नहीं । इसे देखते हुए अब मोदी चीन, पाक और अब नेपाल को कैसे संभालेंगे, इस पर भारत का भविष्य निर्भर है ।
कूटनीतिक अथवा अन्य प्रयत्नों सहित शत्रु से श्रेष्ठ बनना हो अथवा आगे बढना हो, तो उसके लिए धर्माधारित राज्यव्यवस्था आवश्यक होती है । इतिहास इसका साक्षी है । काल की कसौटी पर यदि हमें वास्तव में सफल होना हो, तो छत्रपति शिवाजी महाराज का आदर्श अपने सामने रखना होगा । केवल सैद्धांतिक स्तर पर नहीं, अपितु वह आदर्श भारतीय नेतृत्व को अपनाना काल की आवश्यकता है । आज जैसी परिस्थिति 400 वर्ष पूर्व भी थी । उस समय छत्रपति शिवाजी महाराज जैसे सर्व गुणसंपन्न राजा ने पांच मुगल साम्राज्यों को धूल चटाई थी । ऐसा राज्यकर्ता धर्माधिष्ठित होता है । इसलिए आज की परिस्थिति पर विजय प्राप्त करने के लिए धर्माधारित राज्यव्यवस्था निर्माण करना आवश्यक है । जब तक हमारा देश तथाकथित धर्मनिरपेक्षता के घेरे में रहेगा, तब तक इस देश का भविष्य अधर में ही है ।
इस अवधारणा का एक और छोर है । आज जिहादी आतंकवाद और चीन–नेपाल का साम्यवाद इन बाहरी चुनौतियों के साथ ही भारत को आंतरिक असुरक्षा की समस्या ने भी ग्रसित कर लिया है । 30 वर्षों पूर्व ‘जिहादी आतंकवाद’ नामक रक्त से सने हुए ‘कश्मीरी हिन्दुआें के वंशविच्छेद’ तक जाने की आवश्यकता नहीं है । गत वर्षभर की घटनाएं भी भारत की आंतरिक कानून और न्याय व्यवस्था के लिए चुनौती सिद्ध हो रही हैं । गत दिसंबर महीने में मानवता के हित में पारित ‘नागरिकता सुधार कानून’ का तीव्र विरोध करनेवालों ने देशभर में दंगे करवाए, आगजनी की, देश की संपत्ति की असीमित हानि की । राजधानी देहली से लेकर कानपुर, मुंबई तथा दक्षिण भारत में भी राष्ट्रद्रोही घटनाआें की लपटें फैली थीं । यह राष्ट्र घातक षड्यंत्र भारत को तोडने के लिए प्रयासरत है । यह उदाहरण अभी का है । वास्तव में हमने गत 7 दशकों से इस पर रोक लगाने के भरसक प्रयास किए हैं; परंतु दिन प्रतिदिन आंतरिक सुरक्षा की समस्या हाथ से निकलती जा रही है । इस समस्या पर वास्तव में देखें तो हिन्दुआें को अब सभी स्तरों पर आध्यात्मिक बल बढाना आवश्यक हो गया है । क्योंकि आध्यात्मिक स्तर को छोडकर भारत ने सभी स्तरों पर प्रयत्न करके देखा है; परंतु भारतीय व्यवस्था इस समस्याआें पर उपाय योजना करने में पूर्णतः असफल सिद्ध हुई है । यह हमें मानना ही होगा । समस्या की तीव्रता कम न होकर वह अनेक गुना बढती ही जा रही है, इससे स्पष्ट होता है कि आज की व्यवस्था व्यर्थ है ।
इसके लिए अब एक ही विकल्प बचा है, भारत को आध्यात्मिक स्तर का ‘हिन्दू राष्ट्र’ घोषित करना । यह साध्य होने के लिए हिन्दुआें को ही संगठित होकर राष्ट्र और धर्म के उत्थान हेतु सक्रिय होना चाहिए । इसी कार्य के लिए हिन्दू जनजागृति समिति पिछले 8 वर्ष से गोवा में अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशन का सफल आयोजन करती आ रही है । इस बार कोरोना महामारी के कारण 30 जुलाई से आरंभ होनेवाला नौवा अधिवेशन ऑनलाइन होगा । इस निमित्त देश–विदेश के हिन्दुत्वनिष्ठ अपने–अपने निवासस्थान में रहकर, इस अधिवेशन में ऑनलाइन सम्मिलित होंगे । इसी प्रकार, एक ही समय हजारों हिन्दुत्वनिष्ठ, राष्ट्राभिमानी, धर्माभिमानी, जिज्ञासु यह अधिवेशन देख सकेंगे । इस अधिवेशन में व्यक्त होनेवाले विचारों से ‘हिन्दू राष्ट्र की आवश्यकता’, ‘राष्ट्र और हिन्दू धर्म पर बार–बार होनेवाले आघातों के मूल कारणों का विश्लेषण और उनका उचित निवारण’ आदि विषयों पर व्यापक विचारमंथन होगा । यह अधिवेशन 30 जुलाई से 2 अगस्त और 6 अगस्त से 9 अगस्त 2020 के बीच होनेवाला है । यह अधिवेशन हिन्दू जनजागृति समिति के अधिकृत ‘फेसबुक पेज’ और ‘यू–ट्यूब चैनल’ पर देखा जा सकेगा । समस्त राष्ट्रप्रेमी और धर्मप्रेमी यह अधिवेशन अवश्य देखें, यह मैं विनती करता हूं ।