भारत के साथ अब फ्रांस भी लड़ाकू जेट इंजन बनाने को तैयार

भारत के साथ अमेरिका के बाद अब फ्रांस भी लड़ाकू जेट इंजन बनाने को तैयार है। ज्ञात हो, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिका दौरे के बीच लड़ाकू जेट इंजन बनाने के लिए भारत में प्लांट लगाने की डील फाइनल होने के बाद अब फ्रांसीसी कंपनी ‘सफ्रान’ (SAFRAN)  भारत के साथ 110 किलो न्यूटन थ्रस्ट मिलिट्री इंजन विकसित करने के लिए तैयार हो गई है।

5वीं पीढ़ी के विमान के लिए तैयार करेंगे ‘न्यूटन थ्रस्ट इंजन’

गौरतलब हो, फ्रांसीसी कंपनी रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) के गैस टर्बाइन रिसर्च एस्टेब्लिशमेंट (जीटीआरई) के साथ एक नया अत्याधुनिक 110 किलो न्यूटन थ्रस्ट इंजन विकसित करने के लिए तैयार है।

इन विमानों के लिए इंजन किया जाएगा विकसित

इस प्रस्ताव में कहा गया है कि पूर्ण प्रौद्योगिकी हस्तांतरण (टीओटी) के तहत एडवांस मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एएमसीए) और लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एलसीए) मार्क-2 के लिए इंजन विकसित किया जाएगा।

फ्रांसीसी कंपनी अपनी ऑफसेट प्रतिबद्धताओं के हिस्से के रूप में भारत में विमान इंजनों के लिए रख-रखाव मरम्मत और ओवरहाल (एमआरओ) सुविधा की घोषणा करने के लिए पूरी तरह तैयार है।

मिलेगी यह सेवा

यह एमआरओ सुविधा 100% भारतीय सहयोग से स्थापित की जाएगी, जो न केवल भारतीय वाणिज्यिक विमानों के लगभग 330 इंजनों को सेवा प्रदान करेगी, बल्कि दक्षिण एशिया के अन्य देशों के सफ्रान-जीई संयुक्त उद्यम इंजनों को भी सेवा प्रदान करेगी।

स्वदेशी जेट इंजन को लेकर इन विदेशी कंपनियों से की गई बात  

भारत के सबसे महत्वाकांक्षी पांचवीं पीढ़ी के विमान के लिए कोई स्वदेशी जेट इंजन नहीं है। इसलिए भारत ने विदेशी कंपनियों पर निर्भरता कम करने के साथ ही ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘मेक इन इंडिया’ मिशन को बढ़ावा देते हुए एएमसीए के इंजन का निर्माण भी खुद ही करने का फैसला लिया है। 5.5 जनरेशन के विमान को शक्ति देने के लिए 120 किलो न्यूटन के इंजन का विकास किया जाना है। इसके लिए कई विदेशी कंपनियों से बातचीत की गई, जिनमें फ्रांसीसी कंपनी सफ्रान, अमेरिकी कंपनी जनरल इलेक्ट्रिक और ब्रिटिश फर्म रोल्स रॉयस हैं।

2 साल पहले फ्रांस ने भारत के साथ किया था करार

ज्ञात हो, फ्रांसीसी कंपनी ने दो साल पहले जेट इंजनों की प्रौद्योगिकी हस्तांतरण करने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन इसके लिए 1 बिलियन यूरो से अधिक की मांग करने से यह मामला अधर में लटका था। दरअसल, भारत के साथ 2016 में 7.8 बिलियन यूरो के राफेल सौदे पर हस्ताक्षर करते समय फ्रांस ने भारतीय ऑफसेट पॉलिसी के तहत भारत में 50% या 3.9 बिलियन यूरो का निवेश करने का करार किया था।

इसके बावजूद ऑफसेट अनुबंध के हिस्से के रूप में इंजन बनाने की तकनीक स्थानांतरित नहीं की गई, बल्कि फ्रांसीसी इंजन कंपनी सफ्रान 1 बिलियन यूरो से अधिक की मांग करने लगी। इसलिए जेट इंजनों की प्रौद्योगिकी हस्तांतरण का मामला लटक गया। इसी तरह ब्रिटिश फर्म रोल्स रॉयस से सौदे को अंतिम रूप देने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को लंदन जाना था, लेकिन भारत ने प्रोटोकॉल संबंधित मुद्दों को देखते हुए अंतिम समय में उनका दौरा रद्द कर दिया।

उल्लेखनीय है कि पीएम मोदी के हालिया अमेरिका दौरे में लड़ाकू जेट इंजन बनाने के लिए भारत में प्लांट लगाने की डील फाइनल हो गई। अमेरिकी कंपनी जीई एयरोस्पेस ने खुद घोषणा की कि उसके सहयोग से हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) भारत में ही लड़ाकू विमानों के लिए जीई-एफ 414 इंजन बनाएगा, जिससे भारत के फाइटर जेट्स को आधुनिक इंजन मिल जाएंगे। बाद में अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन के साथ प्रधानमंत्री मोदी की द्विपक्षीय वार्ता के बाद भारत को जेट इंजन निर्माण तकनीक हस्तांतरित करने के इस ऐतिहासिक रक्षा सौदे की घोषणा भी की गई।

वहीं अब फ्रांस भी भारत के साथ लड़ाकू जेट इंजन बनाने को तैयार हो गया है। वहीं भारत भी कमर कस चुका है और अपनी सेनाओं को मजबूत बनाने के लिए हर मुमकिन कोशिश कर रहा है। या फिर ये कहें कि ‘मेक इन इंडिया’ पहल को महत्वपूर्ण बढ़ावा देते हुए, भारत अपनी सेना को अधिक उन्नत और विशिष्ट बनाने के लिए भरपूर कोशिश कर रहा है। ऐसे में इन इंजनों को स्थानीय स्तर पर विकसित करने की क्षमता देश की आत्मनिर्भरता की राह के लिए सबसे महत्वपूर्ण प्रेरणा साबित होगी।

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