दिल्ली डायरी : अभिशप्त महल

कमल की कलम से

दिल्ली के भूतिया महलों को खोजने के क्रम में हम पहुँच गये शालीमार बाग स्थित शीश महल को.

तो हम आज आपकी सैर एक और कथित भूतिया महल की करवाने लिये चलते हैं.

पता चला कि यह खंडहर नुमा महल एक पार्क में है. और जब बादली सराय के पास शालीमार बाग में पहुँचे तो लोगों ने तुरन्त पता बता दिया.
एक टेढ़े मेढ़े सँकरे रास्ते से होते हुए आखिर पहुँच ही गया डी डी ए का सी डी यह पार्क जिसके अंदर यह शीश महल अपनी बर्वादी पर आँसू बहाता खंडहर के रूप में मिला.
गार्डन के भीतर कुछ दूर जाने पर शहर का शोरशराबा का बिल्कुल पता नहीं चला. ऐसा लगा मानों वह दिल्ली का हिस्सा ही नहीं है.भीतर जाने पर दो आदमी खटिया पर आराम करता हुआ मिला जो पता चला कि माली और गार्ड है.
गार्ड ने सख्ती से आगे जाने से मना कर दिया. बोला कि यह भूतिया जगह है और सरकारी आदेश है कि किसी को घूमने नहीं दिया जाय यहाँ.
मैंने उतनी ही सख्ती से उस से सरकारी आदेश दिखाने कहा और डाँटा भी कि पत्रकार को कौन रोक सकता है वहाँ आने से. साथ ही कहा कि मैं ये बात अपने पत्र में तुम्हारे नाम के साथ लिखूंगा.
तब घबड़ा कर दोनों नरम हुए और मुझे घूमने की इजाजत दे दी.
पर सही में डरावनी जगह थी. जैसे जैसे आगे बढ़ता गया वातावरण में डरावनापन बढ़ता गया. वातावरण में और आसपास एक अजीब सी सरसराहट मौजूद थी.
आप तो जानते ही हैं कि भूतों संग किल्लोल करने में मुझे कितना मजा आता है.
पर बता दूं आपको कि पूरा घूम लिया पर भूत तो क्या एक भूतनी या भागते भूत की एक लंगोटी भी नहीं मिली.

अब आपको इस महल की इतिहास की तरफ ले चलता हूँ.

लाहौर का ‘शालीमार गार्डन’ और कश्मीर का ‘रॉयल गार्डन’, का मेल है इस गार्डन के बीचोबीच 17वीं शताब्दी में बना सफेद व लाल पत्थरों व ईंटों से बना ये महल.
कहते हैं यहाँ शाहजहां के बेटे औरंगजेब की ताजपोशी हुई थी.
इसका निर्माण शाहजहां ने 1653 में करवाया था.औरंगज़ेब को इस बगीचे की खूबसूरती बहुत भा गई थी इसलिए सम्राट ने इस तब के “ऐजाबाद-बाग” के नाम से जानेवाले जगह को
1658 में अपना राज्यभिषेक करवाया था.
इस महल को शाहजहां ने अपनी बेगम अइज्जुन्निसा के लिए बनवाया था. 1658 में इस महल को औरंगजेब ने देहाती गृह के रूप में प्रयोग करते थे. इस बात का उल्लेख यूरोपीय यात्री बरनियर और काट्रो ने किया है.
यह ऐतिहासिक इमारत 350 साल पुरानी है और इसका एक हिस्सा आज भी मौजूद है.

इसका एक और ऐतिहासिक महत्व है कि
इसी जगह पर पंजाब के महाराजा रंजीत सिंह को कैद करके रखा गया था. मुगल शासकों का अस्तित्व समाप्त होने के बाद दिल्ली में ब्रिटिश सरकार के रेजिडेंट कमिश्नर सर डेविड ऑचर्लोनी यहीं रहा करते थे.

कर्मचारियों ने बताया कि इस महल के बीचोंबीच पानी की नहर हुआ करती थी.
यह जलाशय एक बड़े से कुएं से जुड़ा हुआ था.
महल के इस हिस्से से पानी नीचे के कुएं में तेजी से जाता था, जिससे यहां के करीब 27 छोटे-छोटे कुएं में लगे फव्वारे चलते थे.
25 कुओं का अस्तित्व तो साफ नजर आ रहा जिसे आप मेरे द्वारा लिए गए तस्वीरों में देख सकते हैं.

महल से थोड़ी ही दूर में बाग और झूला बांधने के लिए बड़े-बड़े पत्थर देख सकते हैं. बड़े फव्वारे के दोनों ओर एक-एक कमरा है, जिसमें खूबसूरत हस्त पेंटिंग देख सकते है.
बेल बूटियों को लाल-हरे रंगों में खूबसूरती से गढ़ा गया है, लेकिन पेंटिंग का काफी हिस्सा तो अब खराब हो गया है.
शीश महल के ऊपर पानी के झरने के दोनों तरफ एक एक कमरा भी बना हुआ है.

इसी के पास छोटे-छोटे कमरे बने हुए हैं, जिसमें कभी हाथियों के ठहरने का इंतजाम किया जाता था.
कहा जाता है कि यहां एक सुरंग भी होती थी, जो लालकिले तक जाती थी.
इस स्मारक के बाहर इसके इतिहास की जानकारी देने के लिए एक बोर्ड तक नहीं है.

शीशमहल तक पहुंचने के कई रास्ते हैं.अपनी गाड़ी से जाने पर गाड़ी बाहर सड़क पर ही पार्क करना उचित होगा.
मेट्रो से जाने के लिए जहांगीरपुरी या फिर आदर्श नगर मेट्रो स्टेशन नजदीक है.
सुभाष नगर मेट्रो स्टेशन से भी जा सकते हैं.
ट्रेन से जाने के लिए आजादपुर रेलवे स्टेशन नजदीक है.
कनॉट प्लेस, पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन, नई दिल्ली रेलवे स्टेशन और कश्मीरी आईएसबीटी से बस द्वाराभी जाया जा सकता है.

801 और 861 नम्बर की बस यहाँ जाती है.
बस स्टैंड का नाम हैदरपुर , सराय पिपलथला है.

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