आरोपितों को पैरों में हथकड़ी लगाने के मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग,नई दिल्ली ने कड़ा एक्शन लिया है। मानवाधिकार कार्यकर्ता विशाल रंजन दफ्तुआर के 28 जून के ईमेल पर त्वरित कारवाई करते हुये आयोग ने आज गया के एसएसपी को नोटिस जारी करते हुये 10 अगस्त तक मानवाधिकार हनन के इस गंभीर मामले पर जवाब माँगा है अन्यथा मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 की धारा 13 के तहत आयोग के दिल्ली मुख्यालय में एसएसपी को व्यक्तिगत तौर पर उपस्थित होकर जवाब देना होगा।
गौरतलब है कि गया के विष्णुपद थाना में आरोपितों को हाथों की बजाय पैरों में हथकड़ी लगाया जाता है। स्थापना के इतने दिनों के बाद भी वहाँ हाजत नहीं है।
इस गंभीर मानवाधिकार हनन मामले पर संज्ञान लेते हुये प्रख्यात मानवाधिकार कार्यकर्ता विशाल रंजन दफ्तुआर ने 28 जून की शाम में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष को ईमेल किया था। अगले दिन 29 जून को शनिवार की छुट्टी के बावजूद इस गंभीर मामले पर आयोग ने इसे डायरी किया और 2 जुलाई को इसे केस के तौर पर स्वीकार कर लिया जिसका केस नम्बर 1846/4/11/2019 और आज इस पर नोटिस जारी हो गया।मात्र तीन कार्य दिवस में इस पर एक्शन हो गया।
मानवाधिकार हनन के इस गंभीर मामले में आयोग की सक्रियता से इस केस की गंभीरता का पता चलता है।
श्री दफ्तुआर ने कहा कि “इंसान के सम्मानपूर्वक जीने का प्राकृतिक सोपान है मानवाधिकार।किसी सिविलियन को पैरों में हथकड़ी लगाना दरअसल एक ‘अपमानजनक’ परिस्थितियों से उन्हें गुजारना होता है और यह कुप्रक्रिया ऐसे आरोपितों को जिन्दगी भर का एक गंभीर मानसिक अवसाद का दंश दे देता है।दरअसल एक सामान्य नागरिक की मनोदशा को मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझने की जरूरत है।”
गौरतलब है कि पूर्व में एनजीटी के बिहार में बालू रोक मामले में इनके पत्र को सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस जस्टिस टीएस ठाकुर ने जनहित याचिका में बदल दिया था।राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी मधेपुरा और गया पुलिस पिटाई मामले में संज्ञान लेते हुये बिहार के चीफ सेक्रेटरी और डीजीपी को सम्मन जारी कर चुका है।
श्री दफ्तुआर ने जनहित में अपना ईमेल आई डी humanrights.vishal@gmail.com और व्हाट्सएप नंबर 8434443339 जारी किया है।पुलिस थानों ऐसे अपमानजनक हालातों को झेल चुके पीड़ित अपनी जानकारी इस पर शेयर कर सकते हैं।
मानवाधिकार कार्यकर्ता श्री दफ्तुआर ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से गया मामले पर कारवाई करने के साथ-साथ बिहार के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे तमाम बिना “हाजत” वाले थानों को चिन्हित करने का अनुरोध किया है और यह भी जाँचने की माँग की है कि क्या वहाँ भी आरोपितों को हाथों की बजाय पैरों में हथकड़ी लगाई जाती है ?

