लोगों की जिंदगी से खेलते झोलाछाप चिकित्सक।

(अनुभव की बात, अनुभव के साथ)

प्रदेश में स्वास्थ्य व्यवस्था की स्थिति दयनीय है। प्रदेश में चिकित्सा पूरी तरह निजी नर्सिंग होम पर निर्भर है। सरकारी अस्पतालों की स्थिति बदतर है। लोग मजबूरी में ही सरकारी अस्पताल जाना पसंद करते हैं,समर्थ निजी अस्पतालों में ही इलाज करवाते हैं।शहरों में चिकित्सक हैं, तो चिकित्सा महंगी है।अक्सर मरीजों को बेवकूफ बनाकर विभिन्न नर्सिंग होम के द्वारा इलाज के नाम पर ठगी की सूचना मिलती रहती है। मरीजों को मौत का भय दिखाकर आसानी से डॉक्टर पैसे ठगते हैं। प्रदेश की राजधानी पटना में ऐसी शिकायत सबसे अधिक मिलती है।सरकारी अस्पतालों में बहाल चिकित्सकों के निजी प्रैक्टिस पर रोक होने के बावजूद चिकित्सक निजी प्रैक्टिस में लगे हैं।
ग्रामीण इलाकों में तो स्थिति और भी दयनीय है।लाखों की आबादी के लिए सरकारी प्राथमिक उपचार केंद्र या फिर रेफरल अस्पताल है।जहां गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए कोई व्यवस्था नहीं है।ग्रामीण इलाकों में, यहाँ तक की प्रदेश के कई प्रखंड मुख्यालय तक में किसी भी प्रकार के दुर्घटना या फिर बीमारी के लिए लोग करीब- करीब आरएमपी और झोलाछाप चिकित्सकों पर निर्भर हैं।ग्रामीण इलाकों में ऐसे आरएमपी और झोलाछाप चिकित्सक हर कदम पर नजर आ जाते हैं। झोलाछाप चिकित्सक दिन भर बैग में कुछ दवा, सुई इत्यादि लेकर घर-घर घूमते फिरते हैं।ऐसे कई चिकित्सक हैं जिन्हें अच्छी तरह दवा का नाम लिखना भी नहीं आता, दवा का नाम पढ़ना भी नहीं आता। कई चिकित्सक हैं जिन्हें ना तो दवाओं के बारे में अच्छी जानकारी है, ना दवाओं के खुराक की सही जानकारी है। सरकार विभिन्न माध्यमों से बार-बार एंटीबायोटिक दवाओं के गलत या बेवजह इस्तेमाल से होने वाली समस्याओं के बारे में चेतावनी देती रहती है।बावजूद इसके ग्रामीण इलाकों में झोलाछाप चिकित्सक सर्दी, खांसी,हल्के फुल्के बुखार,पेट दर्द और सर दर्द जैसी परेशानी में भी एंटीबायोटिक्स का धड़ल्ले से इस्तेमाल करते हैं।ये मरीजों को एक-दो खुराक या एक दिन और दो दिन एंटीबायोटिक खिलाते हैं।दवाओं का या तो ओवरडोज देते हैं या फिर कम डोज देते हैं। बेवजह डेकाड्युराबोलीन जैसी सुईयों का इस्तेमाल या फिर मल्टीविटामिन गोलियां और सिरप का इस्तेमाल ये चिकित्सक अपने निजी लाभ के लिए खूब करते हैं।सरकार की गलत नीतियों की वजह से जेनेरिक दवा जो ये बीस से पच्चीस रुपये में खरीदते हैं उस पर एमआरपी सौ-डेढ़ सौ लिखी होती है।जिससे मरीज ठगे जाते हैं।साथ ही साथ दवाओं के सही सेवन ना होने की वजह से दूसरी समस्या उत्पन्न होती है सो अलग।

झोलाछाप चिकित्सक ‘नीम हकीम खतरे जान’ की तरह हैं।सरकार की अनदेखी से शहर हो या ग्रामीण क्षेत्र, चिकित्सा के नाम पर लूट मची हुई है। एक तो लोगों को सही इलाज नहीं मिल पा रहा है,साथ ही साथ वो चिकित्सा और दवा के नाम पर ठगे जाते हैं सो अलग।

यदि सरकार सही रूप से आरएमपी के डिग्री की जांच करें तो प्रदेश में आधे से ज्यादा आरएमपी चिकित्सक फर्जी पाए जाएंगे।लेकिन उन्हें कोई देखने वाला नहीं है। आरएमपी की डिग्री वाले चिकित्सकों के लिए भी इलाज करने की एक सीमा तय है।परन्तु,ये गंभीर रोग का भी इलाज करते हैं और हर प्रकार के एंटीबायोटिक का भी धड़ल्ले से इस्तेमाल करते हैं। कोई व्यवस्था न होने और सरकार की अनदेखी से आम जनता इन आरएमपी और झोलाछाप चिकित्सकों के पास जाने को मजबूर है।जिसका ये खूब नाजायज फायदा उठाते हैं। औषधि नियंत्रण विभाग के कर्मचारियों की मिली भगत से ये नियमों को ताक पर रख, दवाओं की खरीद- विक्री भी धड़ल्ले से करते हैं।सरकार को इस पर कार्रवाई करने की जरूरत है,नहीं तो देश की ग्रामीण जनता “नीम हकीम खतरे जान” झोलाछाप चिकित्सकों का शिकार होते रहेंगे।

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