सुबह – सुबह रोज़ की तरह मैं आज़ भी ऑफिस जाने के लिए अपनी कार से निकल पड़ा था। यह अपना रोज़ का नियम था। रेडियो के एफ एम चैनल पर खुबसूरत एवं कर्ण प्रिय नए पुराने गानों के साथ ही साथ रेडियो जॉकी शहर में हो रहे हलचलों को अपने ही अंदाज में सूना रहा था। कार का शीशा चूंकि बंद था, तो हम बाहरी दुनिया और सड़क के ट्राफ़िक के चिल्ल-पों से बेख़बर गानों और आर जे की कमेन्ट्री का आनन्द लेते हुए अपने गंतव्य यानि अपने ऑफिस…
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