तितली है खामोश

वक्त कराता है सदा, सब रिश्तों का बोध। पर्दा उठता झूठ का, होता सच पर शोध।। ●●● लौटा बरसों बाद मैं, उस बचपन के गांव। नहीं बची थी अब जहां, बूढ़ी पीपल छांव।। ●●● मूक हुई किलकारियां, गुम बच्चों की रेल। गूगल में अब खो गये, बचपन के सब खेल।। ●●● धूल आजकल फांकता, दादी का संदूक। बच्चों को अच्छी लगे, अब घर में बंदूक।। ●●● स्याही, कलम, दवात से, सजने थे जो हाथ। कूड़ा-करकट बीनते, नाप रहे फुटपाथ।। ●●● चीरहरण को देखकर, दरबारी सब मौन। प्रश्न करे अँधराज से,…

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