मुजफ्फरपुर में बीते 15 दिनों में मस्तिष्क ज्वर के साथ-साथ एक्यूट इनसेफ़िलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) से 120 से ज़्यादा बच्चों की मौत हो चुकी है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने रविवार को मुज़फ़्फ़रपुर मेडिकल कॉलेज का दौरा किया और बच्चों की मौत पर संवेदना ज़ाहिर की। इसके साथ ही हर्षवर्धन ने आने वाले समय में ऐसी बीमारियों के प्रकोप से निपटने के लिए ज़रूरी इंतज़ाम करने का आश्वासन भी दिया। हालांकि इसके बाद भी कई ऐसे सवाल हैं। जिनके जवाब अब तक नहीं मिले हैं।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने बच्चों की जान बचाने के लिए कुछ सुझाव दिए हैं और उन वजहों की ओर भी इशारा किया जिनसे बच्चों की जान जाती है।
हर्षवर्धन ने कहा, “साल 2014 में जब मैंने यहां का दौरा किया था तो मैंने कहा था कि सभी सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों में ग्लूकोमीटर होना चाहिए जो कि अब उपलब्ध है।
इससे बीमार बच्चों के शरीर में ग्लूकोज़ की स्थिति का पता लगाया जा सकता है।अगर ग्लूकोज़ कम है तो उन्हें उसका डोज दिया जाना चाहिए. मैंने मंत्री जी से निवेदन किया है कि आने वाले समय में ‘इन तीन महीनों में’ पीएचसी में डॉक्टर मौजूद रहने चाहिए ताकि ऐसी स्थितियों से निपटा जा सके।”
हर्षवर्धन ने इसके साथ ही कहा कि कभी-कभी ऐसा होता है कि पीएचसी में बच्चों को मदद न मिलने पर उनके अस्पताल तक पहुंचने से पहले ही उनका ब्रेन डैमेज़ हो जाता है। ऐसे में एक सवाल उठता है कि अगर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के स्तर पर सभी स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध होतीं तो क्या बच्चों को बचाया जा सकता था?
कुछ चिकित्सा विशेषज्ञ मानते हैं कि खाली पेट लीची खाने से शरीर में ग्लूकोज़ की कमी हो जाती है जिससे बच्चे इस बीमारी की चपेट में आ जाते हैं।
साल 2014 में भी बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर में 122 बच्चों की मौत हुई थी। इसके बाद संयुक्त शोध में सामने आया था कि खाली पेट ज़्यादा लीची खाने के कारण ये बीमारी हुई है।
वैज्ञानिकों के मुताबिक, लीची में हाइपोग्लिसीन ए और मिथाइल एन्साइक्लोप्रोपाइल्गिसीन नाम का ज़हरीला तत्व होता है।
ज़्यादातर बच्चों ने शाम का भोजन नहीं किया था और सुबह ज़्यादा मात्रा में लीची खाई थी। ऐसी स्थिति में इन तत्वों का असर ज़्यादा घातक होता है। बच्चों में कुपोषण और पहले से बीमार होने की वजह भी ज़्यादा लीची खाने पर इस बीमारी का खतरा बढ़ा देती है। डॉक्टरों ने इलाक़े के बच्चों को सीमित मात्रा में लीची खाने और उसके पहले संतुलित भोजन लेने की सलाह दी थी. भारत सरकार ने इस बारे में एक निर्देश भी जारी किया था।
“कच्चे लीची फल से निकलने वाले टॉक्सिन, बच्चों में कुपोषण, उनके शरीर में शुगर के साथ-साथ सोडियम का कम स्तर, शरीर में इलेक्ट्रोलाइट स्तर का बिगड़ जाना इत्यादि।
जब बच्चे रात को भूखे पेट सो जाते हैं और सुबह उठकर लीची खा लेते हैं
तो ग्लूकोज़ का स्तर कम होने की वजह से आसानी से इस बुखार का शिकार हो जाते हैं। लेकिन लीची इकलौती वजह नहीं है। मुज़फ़्फ़रपुर में इनसेफ़िलाइटिस से हो रही मौतें के पीछे एक नहीं, कई कारण हो सकते हैं।”