(अनुभव की बात, अनुभव के साथ)
फसलों का मुआवजा, सूखा राहत, न्यूनतम समर्थन मूल्य, युवाओं को नौकरी, वनाधिकार कानून और स्वामीनाथन रिपोर्ट लागू करने जैसे मांगों को लेकर महाराष्ट्र के करीब बीस हजार किसान गुरूवार को मुंबई पहुंचे। उनकी मांगों को सरकार ने मानने का वादा किया है।वहीं अखिल भारतीय किसान सभा ने संसद में 21 दिन के विशेष सत्र की मांग की है। अखिल भारतीय किसान संघर्ष समिति के बैनर तले आगामी 29 और 30 नवंबर को दिल्ली के रामलीला मैदान में दो दिवसीय किसान महासम्मेलन का आयोजन होने जा रहा है। यह आंदोलन मुख्य रूप से किसानों के दो मांगों, कर्ज माफी और फसल के उचित मूल्य के लिए है। कुछ माह पूर्व भी भारतीय किसान यूनियन के बैनर तले करीब तीस हजार किसानों ने दिल्ली मार्च किया था। किसानों को बॉर्डर पर ही रोक दिया गया और उनके साथ शर्मनाक व्यवहार किया गया। कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब सहित कुछ अन्य राज्यों के किसान भी अपनी मांगों को लेकर पिछले छह माह से लगातार सरकार के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं।
कमोबेश पूरे देश में किसानों की यही स्थिति है। समय के साथ किसानों के पास जमीन घटती जा रही है। सरकार की उदासीनता की वजह से खेती में खर्च बढ़ गया है। कृषि संबंधित उत्पाद, खाद, बीज के दामों में काफी वृद्धि हो गई है। जबकि दूसरी ओर कृषि उत्पादों की सही कीमत किसानों को नहीं मिल पा रही है। किसान कर्ज में जा रहे हैं और सरकार से सहयोग ना पाकर आत्महत्या कर रहे हैं।अनुमान के मुताबिक हमारे देश की करीब आधी आबादी कृषि और कृषि से संबंधित रोजगार पर निर्भर है। भारत विश्व की सबसे बड़ी कृषि संबंधित अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। बावजूद इसके भारत के किसान सबसे अधिक परेशान हैं। हमारी वर्तमान सरकार ने उद्योगपतियों और पूंजीपतियों पर कर्ज माफी के रूप में अच्छी खासी रकम खर्च की है। कुछ चंद उद्योगपति हमारे देश का कई हजार करोर रुपया लेकर फरार हो चुके हैं।यदि सरकार थोड़ी बहुत मेहरबानी देश के किसानों पर दिखाती जैसा कि वर्तमान केंद्र सरकार ने अपने घोषणा पत्र में किया था तो उससे देश के किसानों का काफी भला हो जाता।
हमारे देश के किसान आज भी मूलभूत समस्याओं से जूझ रहे हैं। ताज्जुब होता है कि इस कृषि प्रधान देश में फसल के रखरखाव की कोई व्यवस्था नहीं है, कृषि संबंधित उत्पादों पर भारी टैक्स है,अच्छे बीज के अभाव में कई किसान परेशान हैं, किसानों को फसल की उचित कीमत नहीं मिलती, ऐसा कई बार होता है जब उन्हें लागत मूल्य भी ऊपर नहीं हो पाता।आजादी के 72 वर्ष के बाद भी किसानों को कृषि के वैज्ञानिक तरीकों के बारे में जानकारी नहीं है।यह सब कुछ सरकार की उदासीनता की वजह से है।आज तक किसी भी सरकार ने किसानों को गंभीरता से नहीं लिया। यही वजह है कि आज नई पीढ़ी कृषि से दूर होती जा रही है। अब भी वक्त है,यदि समय रहते हमारी सरकार नहीं चेतेगी तो निश्चित रूप से आने वाले समय में हम दाने-दाने को मोहताज होंगे।हमारे देश की जितनी बड़ी आबादी कृषि से जुड़ी है और उनकी जो दशा है वो देख कर ऐसा लगता है कि आरक्षण के असल हकदार हमारे यह किसान हैं।चाहे वो किसी भी जाति के हो, किसी भी धर्म के हो। आखिर वह हमारे अन्नदाता हैं। सरकार चाहे केंद्र की हो या राज्य की,किसानों का ख्याल रखना प्राथमिकता होनी चाहिए।बगैर किसानों के विकास के देश कभी तरक्की नहीं कर सकता।