(अनुभव की बात, अनुभव के साथ)
2 और 3 दिसंबर 1984 को कोई कैसे भूल सकता है ?जी हां,आखिर भोपाल गैस त्रासदी को कोई कैसे भूल सकता है ?विश्व के इतिहास में इस घटना को सबसे बड़ी औद्योगिक प्रदूषण आपदा के रूप में जाना जाता है।इस घटना से करीब 25000 लोगों की मौत हुई,जबकि लाखों लोग विभिन्न रूप से इसके शिकार हुए।उन मृतकों को याद करने के लिए प्रत्येक वर्ष 2 दिसंबर को राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस मनाया जाता है।इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य औद्योगिक आपदा के प्रबंधन और नियंत्रण के लिए जागरूकता फैलाना और प्रदूषण रोकने के लिए प्रयास करना है।यह घटना जिस फैक्ट्री में हुई उस फैक्ट्री का जहरीला कचरा आज 34 वर्ष के बाद भी स्थानीय लोगों के की जिंदगी और स्वास्थ्य के लिए खतरा बना हुआ है।आज भी वहां का जहर लोगों के शरीर में धीरे-धीरे विभिन्न माध्यमों से प्रवेश कर रहा है। आज भी वहां की हवा और वहां का पानी सुरक्षित नहीं माना जाता है। यूनियन कार्बाइड के 27 हजार टन कचरे को वहीं जमीन में दफन कर दिया गया था।जिस वजह से मिट्टी और जमीन के भीतर का जल आज भी प्रदूषित है।यहां के लोग आज भी कई गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं।
एक अध्ययन के मुताबिक भारत में लोगों के औसत उम्र में जो कमी आई है उसमें 73 फ़ीसदी वजह वायु प्रदूषण है।भारत में वायु प्रदूषण से लोगों के उम्र पर पड़ने वाला प्रभाव धूम्रपान से भी अधिक है।विभिन्न प्रकार के प्रदूषण की वजह से सिर्फ औसत आयु ही नहीं,बल्कि शरीर में और भी कई प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हो रही है।एक शोध में बताया गया है कि वायु प्रदूषण मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा है।सबसे ताज्जुब यह कि हम सब इस खतरे को जान रहे हैं।वायु प्रदूषण के मामले में भारत के इन 14 शहर की स्थिति बेहद खतरनाक है,कानपुर, फरीदाबाद,वाराणसी,गया,पटना, दिल्ली,लखनऊ,आगरा,मुजफ्फरपुर, श्रीनगर,गुड़गांव,जयपुर,पटियाला और जोधपुर।ये वे शहर हैं,जहां की हवा सामान्य से काफी अधिक जहरीली हो चुकी है।इस राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस के अवसर पर हम बैठक करेंगे, सेमिनार करेंगे, लंबे लंबे भाषण देंगे और फिर सब भूल जाएंगे।अगले साल फिर वही सब।
इतना सब जानने के बावजूद भी हम सचेत नहीं हुए हैं।शौकिया और बेवजह मोटर गाड़ियों का इस्तेमाल हम हमेशा करते रहते हैं।हमारी नई पीढ़ी साइकिल और पैदल चलना भूल गई है।जिम में घंटों पसीना बहाना पसंद करती है,परंतु पैदल चलने में अपनी तौहीन समझती है।हम धड़ल्ले से पेड़ काटते जा रहे हैं,लकड़ियों के फर्नीचर हम बड़े शौक से खरीदते और बनाते हैं।एक बार भी यह नहीं सोचते कि फर्नीचर को बनाने में कितने पेड़ काटे गए हैं।
अभी भी वक्त है,हमें सचेत होना होगा।हम अपनी आने वाली पीढ़ी को विरासत में करोड़ों- अरबों की संपत्ति तो दे सकते हैं,परंतु उसका क्या फायदा जब वो इस जहरीली हवा में घुट-घुट कर सांस लेंगे।निश्चित रूप से तब हमारी अगली पीढ़ी अपनी इस जहरीली विरासत के लिए अपने पुरखों को कोसेगी। लेकिन तब हम मजबूर होंगे और कुछ नहीं कर पाएंगे।हमें खुद के लिए नहीं,अपने आने वाली पीढ़ी के लिए सोंचना होगा।हमें सोचना होगा कि हम अपनी आने वाली पीढ़ी को विरासत में क्या दे रहे हैं।प्रकृति ने तो हमें शुद्धता दी थी, इसे जहरीला तो हमने किया है।हमें तो ऐसी विरासत नहीं मिली थी, फिर हम क्यूँ जहरीली विरासत छोड़ कर जाएं।तीन सबसे आसान तरीका है,अधिक से अधिक पेड़ लगाएँ,पेड़ लगाएं और पेड़ लगाएं।
