(अनुभव की बात, अनुभव के साथ)
गुरुवार को पटना के प्रसिद्ध व्यवसाई और भाजपा नेता गुंजन खेमका की हत्या के बाद शनिवार को दरभंगा के पास एनएच 57 पर रोड कंस्ट्रक्शन कंपनी के मालिक कुशेष प्रसाद शाही की दिनदहाड़े गोलियों से भूनकर हत्या कर दी गई। प्रदेश के सुशासन बाबू की सरकार पर हर ओर से उंगलियां उठ रही है और यह स्वभाविक भी है। जितनी आसानी से दोनों घटनाओं में शूटर ने व्यवसायियों को गोली मारी और भागने में सफल रहे,वह यह साबित करते हैं कि प्रदेश में अपराधी बेलगाम हो चुके हैं।अपराधियों में पुलिस का कोई खौफ हो नहीं है। अभी कुछ दिन पूर्व ही प्रदेश की राजधानी में अपराधियों ने एक पुलिसकर्मी की गोली मारकर हत्या कर दी थी। ऐसा लग रहा है, जैसे प्रदेश में पुलिस- प्रशासन नाम की कोई चीज ही नहीं रह गई। अपराधी बेखौफ हैं।पिछले एक वर्ष में जिस रफ्तार से प्रदेश में अपराध बढ़ा है,वह चिंता का विषय है। जिस जंगलराज की याद दिला कर एनडीए ने प्रदेश की सत्ता हासिल की, जिस जंगलराज की दुहाई देकर नीतीश कुमार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, वह जंगलराज अभी नजर आ रहा है।राज्य में लगातार हो रही हत्या, लूट, बलात्कार की घटना सुशासन तो नहीं हो सकती।
एक के बाद एक हो रही हत्या से पूरे प्रदेश के लोगों में भय का माहौल है।आम लोगों की कौन पूछे,जब प्रदेश के प्रतिष्ठित व्यवसायियों के साथ-साथ पुलिसकर्मी भी अपराधियों का शिकार हो रहे हैं। अपराधी उनकी हत्या करने में भी संकोच नहीं कर रहे।कुछ महीनों के अंतराल पर दो पुलिसकर्मी की हत्या हो चुकी है,जबकि कुछ पुलिसकर्मी घायल हुए हैं। ऐसे में सुशासन बाबू की प्रशासनिक क्षमता पर उंगली उठना स्वभाविक है। विपक्ष के अनुसार सरकार पूरी तरह फेल साबित हो रही है। हर और अपराधियों ने तांडव मचा रखा है।
ऐसे में विपक्ष का यह आरोप बेबुनियाद नजर नहीं आता।जिस तरह शुरुआती दस वर्षों में सुशासन बाबू ने प्रदेश के लोगों में सुशासन की आस जगाई, ऐसे में उनका यह कार्यकाल काफी शर्मनाक नजर आता है। सबसे अफसोस की बात ये कि सरकार की ओर से इसके लिए कोई सार्थक प्रयास होता भी नजर नहीं आ रहा।एक के बाद एक लगातार आपराधिक घटना हो रही है।
अपराधियों का मनोबल बढ़ने का सबसे प्रमुख कारण जो नजर आ रहा है वो ये कि बिहार पुलिस में सिपाही से लेकर अधिकारी स्तर के हजारों पद वर्षों से रिक्त हैं। उपलब्ध पुलिसकर्मियों में हजारों की संख्या में पुलिसकर्मी वीआईपी और वीवीआईपी की सुरक्षा में तैनात हैं। इन रिक्त पदों को भरने के लिए सरकार गंभीर नजर नहीं आ रही। बिहार पुलिस में बल की भारी कमी की वजह से जो पुलिसकर्मी हैं, उनके ऊपर काम का बोझ काफी अधिक है। ऐसे में उनसे यह उम्मीद करना कि वह हर मोर्चे पर चुस्त-दुरुस्त रहेंगे,यह मुमकिन नहीं है। बिहार पुलिस के पास विभिन्न प्रकार के संसाधनों की भी भारी कमी है। बल की कमी और संसाधनों के अभाव में जब बिहार पुलिस खुद सुरक्षित नहीं है तो वो हमें कैसे सुरक्षा दे सकती है ? उनका मनोबल ऐसे ही गिरा रहता है।सुशासन बाबू को शीघ्र ही इसके लिए कोई सार्थक प्रयास करना होगा,नहीं तो उनका यह कार्यकाल जंगलराज ही कहलाएगा। क्योंकि प्रदेश की जो वर्तमान स्थिति है,वो सुशासन तो नहीं कहा जा सकता है।