स्पेशल स्टोरी: ये कैसा लोकतंत्र ?

(अनुभव की बात,अनुभव के साथ)

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में पेश एक रिपोर्ट भारतीय लोकतंत्र की भयावह स्थिति को दर्शाता है। रिपोर्ट के अनुसार देश भर में कुल 2324 सांसदों और विधायकों के खिलाफ अदालत में आपराधिक मामले चल रहे हैं। इनमें बिहार विधानसभा के कुल 243 सदस्यों में 133 सदस्य ऐसे हैं जिनके खिलाफ हत्या, अपहरण, लूट, और रंगदारी जैसे गंभीर आपराधिक मामले लंबित हैं।सबसे अधिक 46 राष्ट्रीय जनता दल के हैं,जबकि सुशासन का दंभ भरने वाली जनता दल यू के 34 और भाजपा के 34, कांग्रेस के 16, लोजपा और रालोसपा के एक-एक विधायक हैं, जबकि एक निर्दलीय हैं।निश्चित रूप से अपराधी राजनेताओं पर इनमें वो मामले शामिल नहीं हैं,जो अदालत तक नहीं पहुंच पाए। व्यवहारिक रूप से हम समझ सकते हैं कि कितने लोग हैं जो ऐसे दबंग जनप्रतिनिधियों के खिलाफ थाने जाने की हिम्मत जुटा पाते हैं। इसी प्रकार बिहार के कुल 40 लोकसभा सदस्यों में 28 के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं।यह आंकड़े लोकतंत्र को शर्मसार करने वाले हैं। यह कहना बेहतर होगा कि हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था खतरे में है।आज शायद ही कोई विधायक या सांसद है, जिन्हें चुनाव में 50 फीसदी मत मिला हो।जबकि हमारे विधानसभा के आधे से अधिक 59 फ़ीसदी विधायक, अपराधिक मामलों में संलिप्त हैं, और वो भी गंभीर आपराधिक मामलों में। इतना ही नहीं उसमें भी शर्मनाक यह कि प्रदेश के मुख्यमंत्री का नाम भी एक हत्याकांड में शामिल है।जब विधानसभा के आधे से अधिक सदस्यों पर आपराधिक मामले लंबित हो तो फिर यह कैसा लोकतंत्र है ?

भारतीय राजनीति जैसी अभी है, पहले वैसी नहीं थी। राजनीति पहले पेशा नहीं हुआ करता था, राजनीति समाज सेवा हुआ करती थी।लोग समाज सेवा के लिए राजनीति किया करते थे।हमारे संविधान ने उन्हें काफी अधिकार दिए और फिर हमारे राजनेता आम से खास हो गए। खास बनने की हवस ने हमारे राजनेताओं को भ्रष्ट से भ्रष्टतम तक पहुंचा दिया। कुर्सी की चाह में राजनेताओं ने समय के साथ अपराधिक तत्वों से सांठगांठ की। चुनाव जीतने के लिए अपराधियों का सहारा लिया। जनता से आग्रह किया, उन्हें लोभ दिया और फिर धमकी पर उतर आए। राजनीति में ऐसा वक्त भी आ गया जब राजनीतिक दलों ने अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए सीधे-सीधे अपराधियों को टिकट देना शुरू कर दिया।नाम बताने की जरूरत नहीं, पाठक अच्छी तरह समझ रहे होंगे। और, फिर यह सिलसिला चल पड़ा,जो अब रुकने का नाम नहीं ले रहा।कोई भी राजनीतिक दल इनसे अछूता नहीं है।उन्हें बस जीत चाहिए, सत्ता चाहिए, एट एनी कॉस्ट।

ऐसी स्थिति में हम अपने जनप्रतिनिधियों से आखिर क्या उम्मीद कर सकते हैं? क्या हम यह उम्मीद करें कि हमारे जनप्रतिनिधि विधानसभा में बैठकर आमजन से जुड़ी समस्याओं पर विचार करेंगे ? क्या हम ऐसे जनप्रतिनिधियों से उम्मीद करें कि ये विधानसभा और लोकसभा में बैठकर देश और प्रदेश के कल्याण की बात करेंगे ? क्या ऐसे जनप्रतिनिधियों के पास आम जनता पहुंच सकती है ? उनका दहशत ही कुछ ऐसा होता है कि यदि आम जनता किसी तरह वहाँ तक पहुंच भी गई तो खुलकर अपनी बात नहीं कर सकती है। सर्वोच्च न्यायालय में पेश रिपोर्ट ने भारतीय लोकतंत्र की पोल खोल दी है। आखिर भारतीय लोकतंत्र का क्या भविष्य होगा,जब हमारा सदन ही कलंकित है।जब देश की सर्वोच्च जांच एजेंसी ही सवालों के घेरे में है।उस लोकतंत्र का क्या होगा जहां अपराधियों को बचाने के लिए सत्ताधारी दल लगा हो।उस लोकतंत्र का क्या होगा,जहां अपराधिक घटनाओं की जांच कर रहे अधिकारी आरोपी के मन मुताबिक हो।निश्चित रूप से यह चिंता का विषय है।यह लोकतंत्र के लिए शर्मनाक है कि जिन्हें जेल के सलाखों के पीछे होना चाहिए, वो सदन में बैठकर देश और प्रदेश का भविष्य लिख रहे हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *