(भागलपुर से पंकज ठाकुर के साथ पीयूष सिंह )
बहुत जलन है इस ज्वाला में.. शायद हर नेता जी के जुबां पर यही बात रहती है कि आज की राजनीति में बहुत पीड़ा है । फिर भी खेल चालू है । वर्चस्व की इस राजनीति का परिदृश्य कमोवेश भागलपुर में भी देखने को मिला । कुर्सी की इस लड़ाई में कोई परहेज नहीं सिंहासन अवलोकन के लिए एक दूसरे के विरुद्ध प्रतिस्पर्धा ने स्थान ले लिया है । जिस कारण आने वाले 2019 के चुनाव के असमय जलन से पहले विस्फोट रूप ले रहा है। हालांकि भागलपुर की जनता के गले से यह बात नहीं उतर रही है की आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत द्वारा शहर में 3 दिन समागम किया गया । बावजूद इसके भाजपा को अर्श से फर्श पर पहुंचाने वाले कद्दावर नेता अश्विनी कुमार चौबे की झलक पाने को भागलपुर की जनता बेताब रही ।
हालांकि यह बात दीगर है कि मंत्री जी अपने काम में व्यस्त होंगे वहीं अगर सूत्रों पर यकीन करें तो भीतर घाट से ही भाजपा अछूता नहीं रहा है । और भागलपुर में भी भाजपा दो गुटों में बैठ कर काम कर रही है । और यही कारण है कि दोनों के नेता जी अपने-अपने कार्यकर्ताओं को फरमान जारी कर आदेश देते हैं । हालांकि सूत्र यहां तक बताते हैं कि भाजपा को पिछले लोकसभा चुनाव में मामूली अंतर से हार का मुंह बिठूर घाट से ही देखना पड़ा था । उसके बाद एक बड़े कद्दावर नेता जी द्वारा दोनो गुटों को जोड़ने का भरपूर प्रयास किया गया । लेकिन यह निरर्थक साबित हुआ और अगले ही विधानसभा चुनाव में भाजपा को पुनः भीतर घाट का सामना करना पड़ा हालांकि यह बात दीगर है कि इस बार भाजपा का पलड़ा भारी दिख रहा है । क्योंकि पिछले चुनाव में भाजपा ने जदयू से अलग होकर चुनाव लड़ा था । लेकिन वोटों का अंतर अगर निकाले तो भाजपा का पलड़ा भारी नजर आ रहा है । हालांकि इन सब के बावजूद भाजपा को गुटबाजी से निपटना अभी टेढ़ी खीर नजर आ रही है । वहीं कहीं नेताजी दबी जुबान से स्वीकार करते हैं कि कुछ तो चल रहा है लेकिन चिंता बेचारी कुर्सी की अब ऐसे में देखना होगा कि भाजपा अपनी खोई हुई भागलपुर लोकसभा क्या वापस ले पाएगी लेकिन भाजपा के सामने कई सवाल सुरसा की तरह मुंह बाए खड़ी ।