(पंकज कुमार ठाकुर की स्पेशल रिपोर्ट बांका लोकसभा से लौटकर)
बिहार के राजनीति का वह चर्चित कहानी शायद यह पटकथा थी , उस सिनेमा की जिसके लिए बिहार के बांका जिला के जनता जनार्दन के आगे खुद बिहार के राजा नीतीश कुमार का सिंहासन हिल गया था । यह बात उस दौर का है जब जॉर्ज फर्नांडिस को हाशिए पर भेज दिया गया और नीतीश शरद की गुट लगातार जदयू पर अपना पकड़ मजबूत बनाने में लगे हुए थे । कहते हैं ना सत्ता में कौन कब यार बन जाए किसी को यह पता नहीं एक संभावना होती है । और उसी के सहारे समीकरण को तौलकर दोस्ती दुश्मनी या पक्ष विपक्ष की शुरुआत होती है । जॉर्ज भूलने की बीमारी से ग्रसित हो चुके थे और इधर नीतीश तैयार थे पार्टी पर अपनी पकड़ मजबूत बनाने को लेकर उत्सुक दिखने लगे थे । लेकिन नीतीश कुमार को दिग्विजय सिंह रूपी चट्टान का मुकाबला करना अभी बाकी था इसी बीच इधर अफवाहों का बाजार गर्म होने लगा कि मुजफ्फरपुर से जॉर्ज और बांका लोकसभा सीट से दिग्विजय सिंह का टिकट काट दिया जाएगा । बस क्या था, हालांकि उस समय दिग्विजय सिंह खुद राज सभा के सदस्य थे । और इधर जॉर्ज की टिकट तो कट ही गई जबकि दिग्विजय सिंह को भी टिकट से वंचित रख दिया गया। हालांकि इस बार भी यह पटकथा दोहरा दिया जाए तो कोई हैरत की बात नहीं । लेकिन बात अगर पुतुल देवी की करें तो सूत्र बताते हैं । अगर इस बार भी पुतुल देवी को दरकिनार कर दिया जाए तो निर्दलीय से इस चुनाव रूपी गंगा में जरूर उतरेंगी। हालांकि इस बार गहराई कुछ ज्यादा होगी । और यह कहना लाजमी होगा कि अगर इस बार पुतुल देवी का टिकट काट दिया जाए तो भाजपा ने जो बांका लोकसभा कि दिवास्वप्न देख रखी हैं वो सिर्फ एक स्वप्न भर ही रह जाएगा ।