स्पेशल स्टोरी: चुनाव में महत्वपूर्ण होते किसान।

(अनुभव की बात, अनुभव के साथ)

पांच राज्य, खासकर तीन राज्यों के चुनाव परिणाम के बाद अचानक से राष्ट्रीय राजनीति में किसान महत्वपूर्ण हो गए हैं।वो किसान जो पहले राजनेताओं और राजनीतिक दलों के लिए कभी भी महत्वपूर्ण नहीं रहे। वो किसान जिनके ताकत का अंदाजा कभी भी राजनीतिक दलों को नहीं रहा।यह हकीकत है कि देश की आजादी के बाद किसी भी सरकार ने गंभीरता से किसानों को नहीं लिया। यह भी हकीकत है कि आज तक किसी भी सरकार ने हमारे अन्नदाता ओं की सुध नहीं ली।किसानों की समस्याओं को दूर करने के लिए किसी भी सरकार ने गंभीरता पूर्वक प्रयास नहीं किया। आज भी हमारे देश की सत्तर फीसदी आबादी कृषि या फिर कृषि से जुड़े व्यवसाय पर निर्भर है। बावजूद इसके जहां एक ओर हमारे देश के राजनेता और व्यवसायी दिन दूनी,रात चौगुनी तरक्की कर रहे हैं, वहीं देश के विभिन्न प्रांतों में हमारे अन्नदाता आर्थिक संकट में फंस कर लगातार आत्महत्या कर रहे हैं।

पिछले कुछ वर्षो में हमारे किसान भाई संगठित हुए और एक संगठन के रूप में विभिन्न प्रांतों में उन्होंने अपना विरोध प्रदर्शन किया। ऐसा नहीं है कि यह किसी एक प्रांत की बात है। पूरे देश में किसान तबाह हो रहे हैं। उन्नत बीज, खाद, कृषि यंत्र, सिंचाई की समुचित व्यवस्था, वैज्ञानिक और आधुनिक तरीके से खेती करने के तरीके की जानकारी का भाव, कृषि उत्पाद के रखरखाव की समस्या, सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य न मिलना और कृषि उत्पाद खरीदने में सरकार की उदासीनता,यह एक आम समस्या है। जिससे पूरे देश के किसान जूझ रहे हैं।

सरकार चाहे केंद्र की हो या राज्य की, कोई भी सरकार उनके लिए गंभीर नजर नहीं आती। बम्पर फसल उत्पादन के बाद भी किसानों को उसकी उचित कीमत नहीं मिलती है।आज हमारे समाज में यदि कोई वर्ग सबसे अभावग्रस्त है तो वो हैं,हमारे अन्नदाता।आर्थिक संकट में फंसे हमारे अन्नदाता न तो अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दे पा रहे हैं,न ही सुख- सुविधा से स्वयं रह पा रहे हैं।

हाल में हुए पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव में जहां कांग्रेस ने केंद्र के प्रति किसानों के विरोध को गंभीरता से लिया और अपने घोषणापत्र में किसानों को प्राथमिकता दी।वहीं चुनाव परिणाम के तुरंत बाद किसानों का कर्ज माफ कर अपना वादा भी निभाया।लोकसभा चुनाव नजदीक है और ऐसे में कांग्रेस लगातार किसानों की समस्याओं के प्रति गंभीरता दिखा रही है।वहीं दूसरी ओर तीन राज्यों में सरकार गंवाने के बाद भारतीय जनता पार्टी और उसके घटक दल सकते में हैं।चार वर्ष तक किसानों को दरकिनार कर चल रही राजग सरकार को तीन राज्यों में सत्ता गंवाने के बाद किसानों की ताकत का अंदाजा हो गया है। भारतीय जनता पार्टी समझ रही है कि यदि समय रहते किसानों को नहीं मनाया गया तो लोकसभा चुनाव में मामला बिगड़ सकता है।इसी का परिणाम है कि केंद्र सरकार देश के किसानों को मनाने के लिए लॉलीपॉप की तलाश कर रही है। पिछले दो हफ्तों में इस संबंध में सरकार ने दस बैठक कर अपने बेचैनी दिखा दी है। इसकी पूरी संभावना नजर आ रही है कि नए वर्ष में किसानों को ढेर सारे लॉलीपॉप दिए जाएं। जिसमें ऋण माफी, ऋण चुकाने वाले किसानों को ब्याज में माफी, फसल बीमा में राहत, सहित कई मुद्दे हैं।

लेकिन क्या कृषि ऋण माफ कर देने से या ब्याज माफ कर देने से ही किसानों की समस्या का समाधान हो जाएगा ? शायद नहीं।बेहतर हो कि सरकार किसानों के साथ-साथ कृषि के प्रति गंभीर हो। बेहतर हो कि सरकार कृषि को भी उद्योग के रूप में ले।उन्नत बीज, खेती में वैज्ञानिक और आधुनिक तरीके, मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाने, जैविक खाद, सिंचाई की उन्नत व्यवस्था, कृषि यंत्रों की व्यवस्था, कृषि उत्पाद के रखरखाव की व्यवस्था,उत्पादों की खरीद के लिए केंद्र की स्थापना सहित तमाम तरह की व्यवस्था करें।जिससे कृषि से जुड़े हमारे देश की अधिकांश आबादी खुशहाल हो सके। तभी सही मायने में हमारा देश विकास करेगा और यहां की आम जनता खुशहाल होगी। चंद लोगों के विकास करने से कभी भी हमारा देश विकसित नहीं हो पाएगा।

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