स्पेशल स्टोरी: कोई नया रिस्क लेना नहीं चाहती भाजपा !

 

(आनंद कौशल, प्रधान संपादक, बिहार ब्रेकिंग)

भाजपा और जदयू दोनों फिफ्टी-फिफ्टी के फार्मूले पर लोकसभा के चुनाव में बिहार में अपने उम्मीदवारों को उतारेंगे । दिल्ली में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और जदयू अध्यक्ष नीतीश कुमार के साझा प्रेस कांन्फ्रेंस में इस बावत आधिकारिक ऐलान कर दिया गया । इस ऐलान ने कई अनुमानों को ध्वस्त करते हुए ये साफ कर दिया कि नीतीश फिलहाल भाजपा के लिए हॉट केक हैं । दरअसल पिछले कुछ महीनों से जिस तरह से सीट शेयरिंग को लेकर कयासों का दौर चल रहा था और कभी बड़ा भाई तो कभी जदयू को दरकिनार किए जाने की चर्चाएं हो रही थीं उसे अब विराम लग गया है । अगले दो तीन दिनों में किस सीट से कौन लड़ेंगे इसका फैसला भी हो जाएगा । लोक जनशक्ति पार्टी और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी को भी इस गठबंधन में बरक़रार रखने की मजबूत चर्चा है लेकिन अब एक बड़ा सवाल यह हो गया है कि क्या इस फैसले से सभी खुश होंगे, क्योंकि जदयू के आने से पहले रालोसपा और लोजपा की हैसियत पहले वाली नहीं है । स्वाभाविक है और जैसा कि भाजपा अध्यक्ष ने भी साफ कर दिया है कि नए दोस्त के आने से पुराने दोस्तों को कंप्रोमाइज करना पड़ेगा । सीटों को लेकर कंप्रोमाइज कौन करेगा ये फिलहाल स्पष्ट नहीं है लेकिन कहा जा सकता है कि रालोसपा और लोजपा को बराबर का नुकसान होगा । भाजपा की इस घोषणा के बाद रालोसपा और लोजपा के लिए विकल्प खुले हुए हैं हालांकि दोनों की तरफ से बार बार कहा जा रहा है कि किसी भी कीमत पर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ा जाएगा और वो एनडीए की जीत के हिमायती हैं लेकिन अंदरखाने की चर्चा कुछ और ही संकेत दे रही है । वहीं, जदयू के लिए सबसे फायदे का सौदा साबित होने वाला सीट शेयरिंग का मामला अब विरोधियों को मजबूत रणनीति बनाने के लिए प्रेरीत करेगा । भाजपा जानती है कि पिछली बार की तरह मोदी लहर नहीं है और खासकर बिहार में जदयू वास्तव में बड़े भाई की भूमिका में ही है क्योंकि नीतीश के नेतृत्व में हुए कामों को लेकर ही चुनावों में जाया जाएगा । केंद्र की कई योजनाओं की वास्तविक हक़ीकत चाहे जो हो लेकिन बिहार में मुख्यमंत्री का काम लोगों के सिर चढ़कर बोलता है । नीतीश कुमार की दूरदर्शी सोच और हर जाति धर्म के प्रति समान नज़र उन्हें सबसे अलग करता है । अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा, अति पिछड़ा, दलित अल्पसंख्यक, महिला, युवा सबके लिए उनकी नीतियों ने बड़ी आबादी में विकास के प्रति बेहतर ललक पैदा की है और यही कारण है कि आज सुशासन और न्याय के साथ विकास के उनके नज़रिये को पूरे देश में सराहा जा रहा है । भाजपा ये जानती है कि फिलहाल जदयू को नज़रअंदाज करने से जहां बिहार में उसे भारी नुकसान उठाना पड़ेगा वहीं, विपक्ष को नीतीश के रूप में एक बड़ा चेहरा मिल गया तो बाकि की जीत भी मुसीबत बन जाएगी । राजनीति के जानकारों की मानें तो बिहार में बड़े तबके में नीतीश की स्वीकार्यता के चलते ही भाजपा को कदम पीछे हटाने पड़े । लगातार उठ रहे विवादों और विरोधियों द्वारा उठाये जा रहे नए मुद्दों से दो चार हो रही भाजपा नीतीश को नाराज़ ना कर बड़े डैमेज से बचना चाहती है । वहीं, कहा जा सकता है कि जदूय के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और बड़े रणनीतिकार प्रशांत किशोर के सुलझे हुए प्रयासों का भी ये परिणाम है । अब ये बिल्कुल साफ है कि भाजपा और जदयू का गठबंधन अटूट है और नीतीश कुमार फिलहाल भाजपा की बड़ी जरूरत हैं । अब एक नई चुनौती से भी दोनों दलों को दो चार होना होगा अगर रालोसपा और लोजपा इस फैसले से सहमत नहीं होंगे। कुल मिलाकर कहें तो भाजपा और जदयू के इस फुल प्रूफ गठबंधन ने अब विपक्षी एकता की जरूरत को भी बढ़ा दिया है । अब तक तो राजद और कांग्रेस ये मानकर चल रही थी कि गाहे-बगाहे भाजपा और जदयू की दूरियां सीटों के तालमेल में सामने आ जाएंगी लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा । अब सीटों पर सहमति की बड़ी चिंता राजद खेमे में होगी जब कांग्रेस, हम और बांकी अन्य पार्टियां अपने अपने दावे पेश करेगी । जानकारों की मानें तो भाजपा और जदयू सोलह-सोलह सीटों पर जबकि लोजपा पांच से छह और रालोसपा दो सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार सकेगी। हालांकि एक अग्निपरीक्षा से भाजपा को अभी और गुजरना है वो है अपने पुराने उम्मीदवारों को मना लेने की परीक्षा । क्योंकि भाजपा बड़ी पार्टी है और सीटिंग सांसदों के पत्ते काटकर उसे जदयू को देने के बाद विरोध के सुर भी सुनाई दे सकते हैं । सवाल ये भी है कि क्या जिन सीटों पर जदयू ने अपने उम्मीदवारों को उतारने का मन बनाया है क्या वैसी सभी सीटें भाजपा छोड़ने को तैयार होगी और क्या जिन सीटों पर भाजपा ने पहले से अपने उम्मीदवार तय किये होंगे वहां वो जदयू को वह सीट देने को राजी होगी । इन सवालों के जवाब के लिए कुछ दिनों का इंतज़ार करना होगा । वैसे नीतीश के प्रति भाजपा की इस रणनीति या यों कहें नीतीश की बढ़ती स्वीकार्यता ने आज राजद, कांग्रेस और बांकि विपक्षी पार्टियों को हैरान किया है । अब ये साफ हो गया है कि एनडीए में फिलहाल ऑल इज़ वेल है और भाजपा कोई नया रिस्क लेने के मूड में भी नहीं है ।

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