(पंकज ठाकुर, कौशल किशोर ठाकुर और गुंजन वत्स की रिपोर्ट)
जहां पांच राज्यों में चुनावी बिगुल बज चुका है । सभी के घोषणापत्र में किसानों को प्राथमिकता देते हुए अलग-अलग दलों ने अलग-अलग लाभ पहुंचाने का वादा किया है । लेकिन इन किसानों की तकदीर ने अब तक कोई करवट नहीं लिया है । हालांकि यह बात दीगर है कि किसानों का आंदोलन अगर उग्र रूप ले लेता है तो शहर की रफ्तार रुक सी जाती है। इसके बाद सरकार मामले को बिगड़ता देख इनकी मांगों को आनन-फानन में मान लेती है। लेकिन क्या सरकारी बाबुओं को शायद यह पता नहीं होता कि इसे धरातल पर उतारा भी गया या नहीं । अभी हाल में ही केंद्र सरकार ने किसानों की स्थिति को देखते हुए न्यूनतम समर्थन मूल्य धान का 1750 रुपये कर दिया था । लेकिन इन किसानों ने जब सुखाड़ की मार को झेलते हुए भी अनाज उगाए । वह अनाज आज ओने पोने के दाम में बेच रहे हैं । कारण इन किसानों के आगे रवि बुवाई की समस्या सबसे बड़ी समस्या है । जहां सरकार ने न्यूनतम मूल्य ₹1750 प्रति कुंटल कर रखा है। वहीं यह अब आगे और मजबूर किसान अपने धान को व्यापारियों के हाथ 12.30 सौ से 13 सौ प्रति कुंटल बेच रहे हैं। जबकि इधर जिले के सभी हाथों पर ध्यान दें तो कमोबेश 111 प्रखंड की किसानों की यही स्थिति है एक ओर जहां किसान कम कीमत मिलने से परेशान हैं, तो दूसरी ओर सरकारी बाबू पैक्स अभी तक खरीद के आदेश का इंतजार कर रहे है । अब तक पैक्स धान खरीद का इंतजार कर रहा है । जबकि केंद्र के आदेश का कितना पालन हो रहा है। यह भी बताना लाजिमी होगा केंद्र ने सख्त हिदायत देते हुए 15 नवंबर से धान खरीद के आदेश दे रखा है । जबकि इन्हीं कारणों से पिछले साल बांका जिला धान खरीद के लक्ष्य को 30 परसेंट भी नहीं पहुंच पाई थी । अब किसान ऐसे में कितने समृद्ध और कितने खुशहाल होंगे यह किसी से छुपा नहीं।