(अनुभव की बात, अनुभव के साथ)
मध्यप्रदेश के नवनियुक्त मुख्यमंत्री कमलनाथ के द्वारा दिया गया एक बयान अभी बिहार में राजनीति का केंद्र बना हुआ है।एक ओर जहां एनडीए के घटक उस बयान के लिए कांग्रेस सहित महागठबंधन के दलों पर हमलावर हैं, तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के नेता कमलनाथ के बचाव में लगे हैं।लोकसभा चुनाव निकट है और ऐसे में कोई भी दल मौका नहीं चूकना चाहता।हर कोई अपने-अपने तरीके से मतदाताओं को लुभाने में, उन्हें बर्गलाने में लगा हुआ है।
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपने शपथ ग्रहण के तुरंत बाद मध्यप्रदेश के अंदर रोजगार के संबंध में कहा कि,मध्य प्रदेश के लोगों को पूरा रोजगार नहीं मिल पा रहा है।क्योंकि बिहार और यूपी के लोग बड़ी संख्या में रोजगार पा जाते हैं।साथ ही साथ उन्होंने ऐसे उद्योगों के प्रोत्साहन की बात भी कही जो 70 फीसदी रोजगार मध्यप्रदेश के लोगों को देंगे।
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ का यह बयान देश के संघीय प्रारूप के लिए बिल्कुल उचित नहीं है।हिन्दुस्तान एक राष्ट्र है,हिस्सों में बंटा हुआ जमीन का टुकड़ा नहीं। हिंदुस्तान के प्रत्येक नागरिक को यह अधिकार है कि वह समस्त राष्ट्र में कहीं भी नौकरी या रोजगार कर सकता है।यदि राष्ट्र पर प्रांतवाद हावी होता है,तो ये कदापि उचित नहीं है।कमलनाथ का ये बयान निश्चित रूप से निंदनीय है।ऐसे में बड़ी मुसीबत खड़ी हो सकती है।देश का हर राज्य किसी ना किसी रूप में एक- दूसरे से जुड़ा है और एक दूसरे पर निर्भर भी है।
वहीं दूसरी ओर कमलनाथ के बयान से ऐसा महसूस होता है कि उन्हें अपने प्रदेश के लोगों की चिंता तो है।उन्हें इतनी फिक्र तो है कि उनके प्रदेश में रोजगार स्थापित हो और स्थानीय लोगों को रोजगार मिले,उनके प्रदेश में कोई भी बेरोजगार ना रहे।वहीं बिहार में,जहाँ के नेता सबसे अधिक इस बयान के पीछे पड़े हैं वहाँ यदि कुछ महीनों को छोड़ दें तो पिछले करीब 13 वर्षों से एनडीए गठबंधन की सरकार है।करीब इतने ही वर्षों से नीतीश कुमार प्रदेश के मुख्यमंत्री भी हैं।आज एनडीए के घटक दलों,भाजपा और जदयू के नेता जितनी गंभीरता से कमलनाथ के बयान को उठा रहे हैं,काश कि वो प्रदेश में रोजगार के अवसर उत्पन्न करने के लिए भी इतने गंभीर होते हैं।एनडीए के घटक दलों के नेताओं को यह अच्छी तरह पता है कि उनके शासनकाल में प्रदेश में रोजगार के कितने अवसर उत्पन्न हुए,कितने नए कल कारखाने लगे।कमलनाथ से माफी मांगने की मांग करने वाले एनडीए के नेताओं को यह भी बताना चाहिए कि आखिर ऐसी क्या वजह है कि बिहारी आज भी दूसरे प्रदेशों में रोजगार की तलाश में जा रहे हैं ? हमारी सरकार ने पिछले वर्षों में आखिर कितने लोगों को रोजगार उपलब्ध करवाया ?
वैसे तो सटीक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं,परंतु एक अनुमान के मुताबिक जितने बिहारी,बिहार के बाहर देश के विभिन्न हिस्सों में नौकरी और रोजगार में लगे हैं,संभवतः उससे कहीं ज्यादा रिक्तियाँ सिर्फ प्रदेश के सरकारी संस्थानों में है।यदि सरकार नए कल कारखाने स्थापित करने या फिर बंद पड़े कल- कारखानों को चालू करने पर ध्यान देती तो फिर शायद ही कोई बिहारी,बिहार के बाहर रोजगार की तलाश में गया होता।
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। दिल्ली,महाराष्ट्र और अन्य राज्यों में भी इस तरह की बात पहले उठ चुकी है। परंतु अफसोस की कमलनाथ पर उंगली उठाने वाले राजनेता अपनी कमजोरियों को अपनी कमियों पर ध्यान नहीं देते।उन्हें सिर्फ और सिर्फ राजनीति करनी है,जो वो कर रहे हैं। काश कि ये सारे राजनेता प्रदेश में रोजगार के अवसर उत्पन्न करने पर भी इतने गम्भीर होते।