श्राप की चर्चा और पाप पर मौन

राकेश सैन, लेखक
कल्पना करें कि द्वापर युग में आज का मीडिया होता तो किस तरह की महाभारत लिखी जाती। उसमेें द्रोपती द्वारा दुषासन के रक्त से केस धोने की विभत्स प्रतिज्ञा की निंदा, आलोचना और पांचाली को लेकर गाली गलौच तो होता परंतु चीरहरण का जिक्र सुनने को नहीं मिलता। यह तो धन्यवाद हो ईश्वर का कि महर्षि वेदव्यास आज के बुद्धिजीवियों की भांति छद्म प्रगतिशील व धर्मनिरपेक्ष न थे और उन्होंने कौरव सभा की कलंक कथा की सच्चाई को समाज के सामने उजागर किया। साध्वी प्रज्ञा ठाकुर प्रकरण साक्षी है कि आज के वेद व्यास श्राप की तो चर्चा करते हैं परंतु पाप पर मौन धार जाते हैं।
विगत यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान कथित हिंदू आतंकवाद व सैफरन टेरेरिज्म का चेहरा बना कर पेश की गई साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने अपबीती सुनाते हुए बताया कि मालेगांव बम विस्फोट मामले को मनवाने के लिए उन पर किस तरह अमानुषिक अत्याचार ढाए गए। साध्वी प्रज्ञा ने उस समय के एनआईए के अधिकारी व मुंबई आतंकी हमले के शहीद हेमंत करकरे को लेकर श्राप शब्द का प्रयोग किया जिस पर विवाद पैदा होने के बाद उन्होंने माफी भी मांग ली, परंतु उन बुद्धिजीवियों ने शायद साध्वी को अभी तक माफ नहीं किया जिन्होंने यूपीए सरकार के भगवा आतंक के झूठ को खूब उछाला और हिटलर के मंत्री जोसेफ गोयेबल्स की भांति हजारों नहीं लाखों बार इस झूठ का पाठ किया ताकि यह किसी न किसी तरह सच्चाई में बदल जाए। साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने तो  शहीद के प्रति कहे गए अपशब्दों के लिए माफी मांग ली परंतु क्या देश के तत्कालीक कर्णाधार कभी अपने अपराध के लिए  देश विशेषकर हिंदू समाज से क्षमा मांगेंगे जिन्होंने साध्वी के बहाने पूरे हिंदू समाज को लांछित करने का अपराध किया?
साध्वी प्रज्ञा ठाकुर की व्यथा कुछ लोगों के लिए नई होगी परंतु साध्वी ने जेल में रहते हुए 2013-14 के रक्षाबंधन पर देश के सभी संपादकों को रक्षासूत्र भेजे और एक पत्र में अपने ऊपर हुए अत्याचारों की सारी कथा सुनाई। जालंधर से प्रकाशित मासिक पत्रिका ‘पथिक संदेशÓ का संपादक होने के नाते रक्षासूत्र मुझे भी प्राप्त हुआ और तब से साध्वी प्रज्ञा के साथ मेरा अंजान बहन-भाई का नाता जुड़ गया। शहीद हेमंत करकरे के बारे उनके मुख से अपमानजनक शब्द सुन कर मुझे भी दुख हुआ परंतु जब उन्होंने अपने कहे की माफी मांग ली तो लानत-मलानत का क्रम भी तो रुकना चाहिए। राजनीतिक दलों व बुद्धिजीवियों के लिए अगर श्राप की चर्चा इतनी ही जरूरी है तो वह बिना पापकथा के पूरी नहीं हो सकती।
साध्वी के शब्दों में मालेगांव बम विस्फोट सहित अनेक अपराध मनवाने के लिए उन्हें न केवल पशुओं की भांति मारा-पीटा गया बल्कि पुरुष पुलिस कर्मचारियों ने उनके साथ अभद्र व्यवहार भी किया। हिरासत में प्रताडऩा के दौरान उनकी नारी सुलभ मर्यादा का कितना मान सम्मान किया गया होगा इसका अनुमान तो सहज ही लगाया जा सकता है। पुलिस अधिकारी हेमंत करकरे को एक तरफ कर भी दिया जाए तो आखिर वो कौन सी ताकत थी जो हर हाल में साध्वी प्रज्ञा के बहाने किसी भी कीमत पर हिंदू आतंकवाद का सिद्धांत स्थापित करना चाहती थी। करकरे तो उस यूपीए सरकार के औजार मात्र थे जिसके कर्णाधार राहुल गांधी, पी. चिदंबरम, दिग्विजय सिंह, सुशील शिंदे जैसे अनेक कई लोग अपने राजनीतिक फायदे के लिए जिहादी आतंकवाद के समानांतर भगवा आतंकवाद का हौवा खड़ा करने की जल्दबाजी में थे। दुर्भाग्य है कि आज का बुद्धिजीवी वर्ग साध्वी के श्राप के लिए तो उन्हें फांसी तक देने को तैयार है और अत्याचारों पर मौनी बाबा बना है। न तो मानवाधिकार वादी और न ही कोई महिलावादी न्याय की बात करने का साहस जुटा पा रहे हैं। मोमबत्ती ब्रिगेड के स्टॉक में तो मानो मोमबत्तियों का अकाल पड़ चुका है। इन बुद्धिजीवियों के समक्ष छोटा सा प्रश्न है कि एक साध्वी के रूप में विचाराधीन महिला कैदी को अवैध हिरासत में रखना, पुरुष कर्मचारियों द्वारा प्रताडि़त करना, गाली गलौच करना, अश्लील वीडियो दिखाना तो भारतीय दंड संहिता, अपराधिक दंड प्रक्रिया, जेल अधिनियम, यौन उत्पीडऩ अधिनियम की विभिन्न धाराओं के अंतर्गत संगीन अपराध है और कृपया बुद्धिजीवी बताएं कि श्राप देना कौन से अपराध के अंतर्गत आता है? श्राप देने पर आईपीसी, सीआरपीसी की कौन-कौन सी धाराएं लगाई जा सकती हैं? शर्मनाक है कि अपराध की तरफ आंखें बंद करके एक हाय के लिए एक महिला  को प्रताडि़त करने का प्रयास हो रहा है जो किसी भी दुखी हृदय से अक्सर निकल जाती है। क्या निर्बल,असहाय व दुखी व्यक्ति को अब हाय देने का अधिकार भी नहीं है?
साध्वी प्रज्ञा पर हुआ अत्याचार केवल एक व्यक्ति विशेष पर नहीं बल्कि उस पूरे हिंदू समाज पर ढाया गया जुल्म है जो कई सदियों से विदेशी आक्रांताओं के उत्पीडऩ, तो कभी खालिस्तानी और कभी जिहादी दहशतगर्दी का शिकार होता आया है। तत्कालीन सरकार का उद्देश्य केवल साध्वी को अपराधी साबित करना नहीं बल्कि उनके बहाने पूरे हिंदू समाज को भगवा आतंकवाद या हिंदू आतंकवाद की गाली से लांछित करना था परंतु वह सफल नहीं हो पाए। उस समय हिंदू आतंकवाद का मनगढ़ंत सिद्धांत स्थापित करने के लिए जिन-जिन लोगों को मोहरा बनाया गया देश की न्यायिक प्रक्रिया एक-एक कर सभी को आरोपमुक्त करती जा रही है। संत सदैव दुनिया के भले की कामना करते हैं और अगर श्राप देते हैं तो उन परिस्थितियों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए जिसके चलते वे ऐसा करने को विवश हुए। पांचाली के केशों में लगे दुषासन के लहु से पहले उसके पापी हाथों को भी तो देखा जाना चाहिए जो भरी सभा में एक अबला के वस्त्रों की तरफ बढ़े। अगर साध्वी प्रज्ञा श्राप के लिए अपराधी है तो उनसे बड़ी अपराधी उस समय की सरकार व पूरी व्यवस्था भी है जिसने एक भगवाधारी को श्राप के लिए विवश किया। श्राप पर चर्चा करनी है तो उस पाप का भी जिक्र करना होगा जो एक महिला के साथ हुआ।
– राकेश सैन
32, खण्डाला फार्मिंग कालोनी
वीपीओ लिदड़ां
जालंधर।
लेख में प्रकशित विचार लेखक के निजी हैं 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *