बचपन में विद्यालय के शिक्षक की एक छड़ी से चोटिल होकर घर तक रोते बिलखते आकर पिता के साथ थाने में छात्र के साथ अमानवीय व्यवहार की सूचना दर्ज कराने वाले लोगों को 8 वर्ष निरंतर सलाखों में रह कर पुलिस के उत्पीड़न का शिकार हुई साध्वी प्रज्ञा ठाकुर आज आतंकवादी लगती है।
वैसे वो आतंकवादी लगे भी क्यों नहीं, यह एक ऐसा देश है जहां पर याकूब मेमन और कसाब जैसे लोगों पर भी दोष की सिद्धि होने के बाद उन्हें ऐसे रखा जाता है जैसे विदेशों से आये कोई राजदूत हों और उनको कोई कष्ट नहीं पहुंचें। घटना है वर्ष 2008 की जब मालेगाँव में एक बम ब्लास्ट होता है, कुछ लोग उसमें मारे जाते हैं और पुलिस अपराधी को ढूंढते ढूंढते एक तपस्यारत तपस्विनी के द्वार पहुंच जाती है और उसे गिरफ्तार कर लेती है। पुलिस के द्वारा गिरफ्तार करने के लिए सबूत के नाम पर मात्र एक बात होती है कि इस तपस्विनी की वह मोटरसाइकिल जो इसके अनुसार उन्होंने घटना के चार वर्ष पूर्व बेच दी थी वह घटनास्थल से बरामद हो जाती है। अब बात को पूरा हुए कई वर्ष बीत चुके हैं।
इस आरोपी का नाम साध्वी प्रज्ञा ठाकुर है जो अब महामंडलेश्वर स्वामी पूर्णचेतनानंद गिरी के नाम से जानी जाती है। इस घटना को बीते अब 11 वर्ष हो चुके हैं कुछ ने याद रखा था कुछ भूल गए थे और बहुत से लोग इस घटना से अनभिज्ञ भी थे। लेकिन अचानक से जब अपने स्वास्थ्यकारणों से वह जमानत पर जेल से वापस आती हैं और वर्षों तक इस्लामी टोपी पहन कर घूमने वाले भगवाधारी हिन्दू को हिन्दुआतंकवाद से जोड़ने वालों को प्रोत्साहित करने वाले और 2003 में मीसा भारती द्वारा चुनाव के मैदान में पराजित होकर दस वर्ष तक चुनाव नहीं लड़ने की कसम खाने वाले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह के विरुद्ध जब वे चुनाव लड़ने की घोषणा करती हैं तब देश के नागरिकों की तन्द्रा अचानक से भंग हो जाती है और फिर शुरू होता है हिन्दू आतंकवाद पर टिपण्णी का दौर।
अपने एक बयान में जब साध्वी प्रज्ञा ठाकुर द्वारा कह दिया जाता है कि हेमंत करकरे को उसके पापों की सजा मिली है और वह शहीद जरूर हुआ लेकिन उसपर हमारी हाय का प्रभाव पड़ा है। तो देश का प्रबुद्ध वर्ग उन्हें आतंकवादी बताने लग जाता है और उनकी मानसिकता पर प्रश्न खड़ा करता है। छोटी सी बात है कि वध कर्ण का भी हुआ था और वह भी अनैतिक था। लेकिन कहीं ना कहीं उस पर भी अभिमन्यु की हाय लगी होगी। लेकिन शर्म की बात यह है कि जो वर्ग प्रज्ञा ठाकुर के घण्टे भर पुराने बयान पर उनको साध्वी के नाम पर कलंक, ढोंगी और सत्ता की लोभी जैसे शब्दों से सुशोभित करता है वहीं वर्ष 2018 के अक्टूबर महीने में जब साध्वी प्रज्ञा ने अपनी आपबीती सुनाई थी तब से ये लोग कहाँ सोये थे कि उनके हित मे एक शब्द नहीं बोल पाए। उनके प्रति सद्भावना का कोई वाक्य इनके मुँह से नहीं निकला, और एटीएस की टीम के द्वारा किए गए इस कृत्य पर उनके द्वारा एक भी क्रुधात्मक बोल नहीं निकले।
बात बस यहीं तक सीमित नहीं है, अपने नेताओं की एक बात पर 100 अर्थ निकालने वाले लोगों ने साध्वी प्रज्ञा द्वारा दिए गए बयान का एक ही अर्थ निकाला और सोशल मीडिया पर यह कहा जाने लगा कि अगर श्राप देना है तो हाफिज और अजहर मशुद को दें, जबकि अगर हम उस बयान का अवलोकन करें तो विदित हो कि प्रज्ञा ठाकुर ने कहा था कि हेमंत करकरे को उसके किये की सजा मिली है अर्थात एक महिला जिस पर इतना उत्पीड़न किया गया उसकी हाय, उसका दुख, उसकी पीड़ा, उसकी वेदना इतनी प्रबल थी कि हेमंत करकरे ही शहीद हुए। इसमें कहीं दो राय नहीं है कि हेमंत करकरे की शहादत पर पूरा देश शोकाकुल था परंतु शहीद हो जाने का यह अर्थ नहीं है कि आप अपने पिछले बुरे कर्मों से मुक्त हो गए और आपके दुष्कृत्यों पर कोई अंगुली नहीं उठाएगा।
बाटला हाउस कांड पर तुच्छ बयान देने वाले नेताओं पर जिन्होंने यह तक कह दिया कि जो हमारे मुस्लिम भाइयों को मारेगा वो ऐसी ही मौत मरेगा इस पर ये बुद्धिजीवी वर्ग किस सुसुप्ता अवस्था मे था? हमारे सेना के जवानों को अभद्र कहने वाले लोगों के बयानों पर इनके मुख से शब्द क्यों नहीं निकलते हैं? बस इसलिए कि ये विचार हिन्दू हित मे नहीं होते या फिर इस लिए कि इस संदर्भ में बोलने पर इनकी रोटी पानी मुश्किल हो जाएगी?
कुछ बुद्धिजीवी लोगों का मानना है कि हमें न्यायपालिका पर भरोसा रखना चाहिए और प्रज्ञा ठाकुर पर आरोप है तो वे चुनाव क्यों लड़ रही हैं तो उनसे एक सीधा प्रश्न है कि कन्हैया कुमार पर किस मंदिर में पूजारी होने का आरोप है और उस पर ये लोग चुप क्यों हैं? और न्यायपालिका की दक्षता की बात करने वाले लोगों से सीधा प्रश्न है कि जब इंसाफ की चौखट तले प्रज्ञा ठाकुर को लगभग 11 दिनों तक पुलिस हिरासत में रखा गया था और अदालत में पेश नहीं किया गया था, जब उनकी मेडिकल जांच तब तक नहीं कराई गई थी जब तक उनके फेफड़े की झिल्ली नहीं फट गई। उस समय संविधान की आत्मा कहे जाने वाले संवैधानिक उपचारों का अधिकार की बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट कहाँ थी ? उस वक़्त न्यायपालिका किस निद्रा में थी ? जब एक महिला को पुरुष पुलिस अधिकारियों द्वारा उत्पीड़ित किया जा रहा था उस समय देश के कानून की याद किसी को क्यों नहीं आयी ? जब 6 माह पूर्व साध्वी ने अपनी आपबीती सुनाई थी तब महिला सशक्तिकरण की बात करने वाले नेता क्यों नहीं जगे बस इसलिए कि उस स्त्री के शरीर को ढकने वाला वस्त्र भगवा था ? बस इसलिए कि वह स्त्री अपने धर्म की रक्षा हेतु घर से बाहर निकली थी ? या फिर इसलिए कि लोगों को डर था कि अगर इसकी आवाज़ बुलंद हो गयी तो हमारे कई राज से पर्दा हट जाएगा, हमारे कृत्य सबके सामने आ जाएंगे।
अब बात सीधे आती है कि ये सब हो किस लिए रहा है तो विपक्ष द्वारा यह सब बस इसलिए किया जा रहा है कि सभी हिंदुओं को आतंकवादी और आरएसएस के कार्यकर्ता कहने वाले और हिन्दू जैसा कोई शब्द नहीं होता इस बयान को देने वाले पूरे देश मे भगवाधारियों को हिन्दू आतंकवाद के नाम से संबोधित करने वाले नेता दिग्विजय सिंह के विपक्ष में भाजपा ने आठ वर्षों तक उत्पीड़ित होने के बाद भी भगवा की शान को बचाये रखने वाली हिन्दू महिला साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को भोपाल की लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने हेतु टिकट दे दिया है और यह बात अब खल रही है कि एक बार एक भगवाधारी महिला से मात खाने वाले दिग्विज सिंह जो अब अपनी सफेद टोपी उतार कर चुनाव प्रचार में भगवा टोपी धारण कर चुके हैं, जो हिन्दू जैसा कोई शब्द नहीं होता कि बयान के बाद अब मंदिर मंदिर घूमने लगे हैं कहीं वो एक बार फिर हारकर राजनीति से जीवनपर्यंत संन्यास नहीं ले लें, बस यह डर अब इतना प्रबल बन गया है कि इसकी पूरी भड़ास सोशल मीडिया और समाचार चैनलों पर निकाली जा रही है।
प्रज्ञा ठाकुर को आतंकवादी और उनका समर्थन करने वालों को ढोंगी हिंदू ठहराया जा रहा है, छद्म राष्ट्रवाद को पुनः स्थापित करने का आरोप लगाया जा रहा है लेकिन क्या करें जब अपनी पर पड़े तो खुदा ना करे की स्थिति हर जगह व्याप्त है। देश की जनता सब देख रही है, एक तरफ मैदान में एक ऐसा व्यक्ति खड़ा है जो हर समय हिंदुत्व ही आलोचना, भगवान पर प्रश्न, धर्म पर व्यंग्य करते रहा है और वहीं दूसरी ओर एक तपस्विनी अपने ऊपर किये गए अत्याचारों और उत्पीड़न से त्रस्त होने के बाद अपनी आवाज़ को बुलंद करने हेतु स्वयं को मजबूत करते हुए, जनता का प्रतिनिधित्व करने के लिए खड़ी हुई है और अब यह राजनीतिक लड़ाई अपने चरम पर पहुंच गई है और जनता के मत के बाद इस का अंतिम परिणाम जो सच में दिलचस्प होगा 23 मई को निकलेगा और सभी उसकी प्रतीक्षा में आंखें बिछाए खड़े हैं।
अंकित देव, स्वतंत्र लेखक, मेरठ