मुश्किल होंगी शाॅटगन की राहें, प्रतिष्ठा की सीट बनी पटना साहिब में रविशंकर प्रसाद ही हैं बीजीपी के तुरुप के इक्का

मधुप मणि “पिक्कू”

पिछले दो चुनावों में भारी मतों से जीत हासिल करने वाले सिने अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा की जीत पर इस बार ब्रेक लग सकता है। भाजपा ने इस चुनाव में उनके मुकाबले तेज तर्रार केन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद को आगे किया है। बतौर मंत्री रविशंकर प्रसाद ने जमीनी स्तर पर बहुत कार्य किये हैं। पटना जिले के कई गाँवों को डिजिटल बनाने के लिए रविशंकर प्रसाद ने अपने विभाग की इकाई सीएससी के द्वारा पटना हीं नहीं राज्य के अधिकतर गाँवों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की योजनाओं का क्रियान्वयन किया है।

कायस्थ बहुल पटना साहिब की सीट रविशंकर प्रसाद के लिए होगी आसान

कायस्थ बहुल पटना साहिब की सीट रविशंकर प्रसाद के लिए बहुत आसान दिख रही है। इसका पहला कारण तो यह है कि यह सीट भाजपा की परम्परागत सीट रही है। पिछले कई चुनावों से यह सीट भाजपा के खाते में है। सिने अभिनेता शेखर सुमन से लेकर भोजपुरी के सुपर स्टार कुणाल तक इस सीट से अपना भाग्य आजमा चुके हैं। दुसरा कारण यह है कि परिस्थिति चाहे कुछ भी हो कायस्थ मतदाता भाजपा के कैडर वोटर रहे हैं। मोदी सरकार के द्वारा सवर्णों को दस प्रतिशत आरक्षण देने के बाद एससी-एसटी एक्ट में नाराज सवर्ण वोटर भी भाजपा के साथ खड़े दिख रहे हैं।

यशवन्त सिन्हा इसी क्षेत्र को सबसे सुरक्षित मानकर यहाँ से चुनाव मैदान में उतरे थें

पटना साहिब और पाटलिपुत्र संसदीय क्षेत्र बनने के पूर्व यह क्षेत्र पटना संसदीय क्षेत्र हुआ करता था। इस क्षेत्र में कायस्थों की बड़ी संख्या अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर सरकार में वित्त मंत्री यशवन्त सिन्हा पुरे देश में इसी क्षेत्र को सबसे सुरक्षित मानकर यहाँ से चुनाव मैदान में उतरे थें। हालांकि उनको उस चुनाव में कितना वोट मिला, इसका पता नहीं चल पाया। वजह, बड़े पैमाने पर धांधली की शिकायत पर चुनाव आयोग ने पटना का आम चुनाव रद्द कर दिया. वोटों की गिनती नहीं हो पाई। राज्य में जनता दल की सरकार थी। लालू प्रसाद मुख्यमंत्री थे। इंद्र कुमार गुजराल जनता दल के उम्मीदवार थे। गुजराल सुप्रीम कोर्ट तक गए। बाद के चुनाव में गुजराल और सिन्हा उम्मीदवार नहीं बने. जनता दल के उम्मीदवार की हैसियत से रामकृपाल यादव चुनाव जीते।

सी पी ठाकुर और रामकृपाल यादव भी इस क्षेत्र से रह चुके हैं संसद

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, बिहार की पटना लोकसभा सीट पर वर्ष 1989 के बाद वर्ष 1998 (12वीं लोकसभा) के चुनाव में भाजपा की वापसी हुई। चुनावी अखाड़े में भाजपा के डॉ. सी. पी. ठाकुर ने 52606 मतों के भारी अंतर से राजद के रामकृपाल यादव को पटखनी दी। डॉ. ठाकुर को जहां 331860 वोट मिले वहीं श्री यादव को 279254 मतों से संतोष करना पड़ा। तेरहवें लोकसभा चुनाव (1999) में डॉ. ठाकुर ने फिर बाजी मारी और उन्हें 379370 मत मिले। उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी श्री यादव को 352478 मत प्राप्त कर 46892 वोट के अंतर से हार गए।
डॉ. ठाकुर 14वें लोकसभा चुनाव में पटना सीट पर हैट्रिक बनाने से चूक गए। पिछले दो चुनाव में उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी रहे राजद के रामकृपाल यादव ने 433853 मत हासिल कर उनके विजय रथ को रोक दिया। डॉ. ठाकुर को 395291 मतदाताओं ने पसंद किया और वह 38562 मतों के अंतर से पराजित हुए। परिसीमन के बाद वर्ष 2004 में हुए 15वें लोकसभा चुनाव में पटना सीट पटना साहिब हो गयी और इस बार भाजपा ने यहां से बिहारी बाबू को अपना उम्मीदवार बनाया। उन्होंने फिर से इस सीट पर भाजपा का परचम लहराया और अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी राजद के विजय कुमार को 166770 मतों से हराया। कांग्रेस की टिकट से एक और फिल्म अभिनेता शेखर सुमन ने भी दांव लगाया लेकिन महज 61308 वोट लाकर वह तीसरे स्थान पर रहे। इसके बाद 15वें लोकसभा चुनाव (2014) में भाजपा ने एक बार फिर श्री सिन्हा को अपना उम्मीदवार बनाया और उन्हें रिकॉर्ड 485905 वोट मिले। उन्होंने निकटतम प्रतिद्वंद्वी भोजपुरी सिनेमा के सुपर स्टार और कांग्रेस प्रत्याशी कुणाल सिंह को हराया जिन्हें 220100 और तीसरे स्थान पर रहे जदयू उम्मीदवार गोपाल प्रसाद सिन्हा को 91024 वोट मिले।

पीएम की योजनाओं का पटना में किया है सफल क्रियान्वयन

पटना जिले में केन्द्रीय मंत्री रहते हुए रविशंकर प्रसाद ने ग्रामीण स्तर पर बहुत कार्य किये हैं। गाँवों को डिजिटल बनाने के मुहिम में अपने विभाग के माध्यम से स्वयं मानिटरिंग करते थें और दिशा-निर्देश देते थें। यही कारण है कि पीएम की कई महत्वकांक्षी योजना पुरे देश में सफल हुई और पटना में तो उन्होने स्वयं कई योजनाओं का उद्घाटन के साथ-साथ स्वयं समीक्षा भी किया कि कार्य जमीनी स्तर पर हो रहा है या नहीं।

डिजिटल क्रान्ति का लाभ समाज के आखिरी व्यक्ति तक पहुँचाने में रविशंकर प्रसाद का बहुत बड़ा रोल है

भारत सरकार की कई ऐसी योजनाएँ हैं जिसका लाभ सीधे ग्रामीण और गरीब जनता को मिलता है पर यह योजनाएँ ससमय या तो लोंगो तक नहीं पहूँच पाती थी या बंदरबांट हो जाता था। मोदी सरकार के कार्यकाल में आये डिजिटल क्रान्ति के माध्यम से नयी योजनाएँ तो लागु हुइ हीं पुरानी योजनाओं का भी लाभ समाज के आखिरी व्यक्ति तक पहूँचने लगा। इस काम को अंजाम तक लाने में विभागीय मंत्री रविशंकर प्रसाद का बहुत बड़ा रोल है। विभाग की एक इकाई सीएससी जिसका नेटवर्क पंचायत स्तर तक है और बहुत मजबुत है। सीएससी के माध्यम से हीं सरकार की योजनाएँ समाज के आखिरी व्यक्ति तक पहूँच पाया है। रविशंकर प्रसाद ने इस नेटवर्क का भरपुर फायदा उठाया और सरकार की योजनाओं को हर गाँव तक पहूँचाया।

शाटगन के आगे भाजपा के पास रविशंकर ही हैं तुरुप का इक्का

भाजपा ने भी पटना साहिब सीट को प्रतिष्ठा की सीट बनाते हुए उम्मीदवारों के चयन में बहुत सावधानी बरती है। राज्यसभा में रविशंकर प्रसाद का कार्यकाल अभी बाकी होने के बाद भी भाजपा नेतृत्व ने रविशंकर प्रसाद पर भरोसा किया। शत्रुघ्न सिन्हा के दमदार छवि के आगे उनके शख्सियत को टक्कर देने वाले उम्मीदवार में नेेेतृत्व को रविशंकर प्रसाद में हीं ऐसी छवि दिखी जो पटना साहिब में भाजपा की नैया पार लगायेंगे। बागी शाटगन के मुकाबले रविशंकर प्रसाद को कायस्थ समाज के होने का भी फायदा मिलेगा।
हालांकि आरम्भ में रविशंकर प्रसाद को कुछ कायस्थ संगठनों को विरोध भी झेलना पड़ा। चुकि रविशंकर प्रसाद किसी भी कायस्थ संगठन से सक्रिय रूप से जुड़े नहीं हैं इसलिए संगठन किसी ऐसे व्यक्ति को टिकट देने की मांग कर रही थी जो समाज से सीधे रूप से जुड़े हों। पटना साहिब सीट के लिए अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के नाम से दो इकाइंयों ने अलग-अलग प्रेस कांफ्रेस भी किया गया।
रविशंकर प्रसाद की छवि आम जनता के बीच काफी साफ-सुथरी है। लोग उन्हें पीएम के बहुत करीब मानते हैं और यह भी जानते हैं कि यदि रविशंकर प्रसाद पटना साहिब से संासद बनते हैं तो उन्हें सरकार में महत्वपूर्ण भूमिका भी मिलेगी।
अंतिम चरण में होने वाले पटना साहिब सीट की लड़ाई काफी रोमांचक होगी। दो बड़े दिग्गज जो साथ में मंच साझा करते थें वो चुनावी मैदान में आमने-सामने होंगे।

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