(अनुभव की बात, अनुभव के साथ)
पिछले कई चुनावों की तरह इस लोकसभा चुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी ने अपने घोषणा पत्र, नहीं इस बार भारतीय जनता पार्टी ने इसे संकल्प पत्र का नाम दिया है, में जम्मू एवं कश्मीर से अनुच्छेद 35ए और धारा 370 को समाप्त करने की बात कही है। कश्मीर से धारा 370 को समाप्त करने की बात लंबे समय से भाजपा के घोषणा पत्र का हिस्सा रही है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, भाजपा नेता अरुण जेटली और अन्य भाजपा नेता अपने भाषण में दृढ़ता से इस बात को कह रहे हैं कि यदि इस बार केंद्र में उनकी सरकार बनी तो जम्मू एवं कश्मीर से धारा 370 को समाप्त कर दिया जाएगा। भाजपा के संकल्प पत्र में इस बात का जिक्र और फिर भाजपा नेताओं द्वारा भाषणों में इस मुद्दे को शामिल करने के बाद इस पर राजनीति शुरू हो गई है। भाजपा के प्रमुख सहयोगी जनता दल यू ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि अनुच्छेद 370 और 35ए के साथ छेड़छाड़ देश की एकता और अखंडता के लिए घातक है। जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि कश्मीर में धारा 370 को खत्म नहीं किया जा सकता है,धारा 370 का संविधान में प्रावधान है।आतंकी गतिविधियों को रोकने के लिए धारा 370 को हटाने की जरूरत नहीं है। उन्होंने साफ कहा है कि हम धारा 370 को हटाने के खिलाफ हैं।
वहीं दूसरी ओर जम्मू एवं कश्मीर में इस मुद्दे पर अच्छी खासी बयानबाजी शुरू हो चुकी है। प्रदेश की राजनीति के दो प्रमुख केंद्र फारुख अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती ने भाजपा के इस घोषणा का घोर विरोध किया है और इसके भयंकर परिणाम भुगतने की चेतावनी दे रहे हैं। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने कहा कि यदि धारा 370 को खत्म किया जाता है तो भारत और राज्य के बीच संबंध समाप्त हो जाएगा।आगे उन्होंने यहां तक कह दिया कि हमें इस पर विचार करना होगा कि हमें भारत के साथ रहना भी है या नहीं।वहीं जम्मू एवं कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला ने मोदी सरकार को संविधान की धारा 370 और 35ए को छूकर दिखाने की चुनौती दी है।उन्होंने एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि जिस समय वे धारा 370 और 35ए के साथ छेड़छाड़ करेंगे,भारत के साथ जम्मू एवं कश्मीर का विलय समाप्त हो जाएगा।उन्होंने आगे कहा कि ये अनुच्छेद यदि अस्थाई हैं तो जम्मू एवं कश्मीर और भारत का विलय भी अस्थाई है।
इस तरह की राजनीति, कश्मीरी नेताओं के इस तरह के बयान, निश्चित रूप से देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा है।आजादी के सात दशक बीत जाने के बाद भी यदि कश्मीरी नेता और वहां की आवाम हिंदुस्तान को अपना नहीं समझती है, यदि हिंदुस्तान से संबंध खत्म करने की बात करती है,वो भी तब जबकि उनके हर सुख-दुख,हर तकलीफ़, उनकी बेहतर जिंदगी के लिए हिन्दुस्तान सरकार लगातार प्रयास कर रही है,तो ऐसे में अब वह वक्त आ गया है जब हिंदुस्तानी सरकार को अन्य राजनीतिक दलों और आम जनता को विश्वास में लेकर,ताकत के बल पर जम्मू एवं कश्मीर में भी हिंदुस्तानी संविधान को लागू कर देना चाहिए।कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक एक भारत,अखंड भारत,एक संविधान और एक राष्ट्र ध्वज।
ऐसे में दो कहावत मुझे याद आ रहे हैं,पहला तो यह कि “लातों के भूत बातों से नहीं समझते”, और दूसरा “जिसकी लाठी उसकी भैंस”। बशर्ते इस मुद्दे पर राजनीति नहीं होनी चाहिए।क्योंकि यह बहुत ही बड़ा राजनीतिक मुद्दा है, जिससे तमाम देशवासियों की भावनाएं जुड़ी हुई हैं।