बिहार के खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री मदन सहनी ने केन्द्रीय खाद्य आपूर्ति मंत्री रामविलास पासवान के बयान पर पलटवार करते हुए कहा कि दाल की खरीददारी के लिए राज्य नहीं, केन्द्र सरकार जिम्मेदार है। उन्होनें कहा कि बिहार में दाल की जो आवश्यकता है। उससे सम्बंधित 16,500 मैट्रिक टन के लिए केंद्र को पत्र लिखा गया था। ये भी इंगित किया कि बिहार में मसूर दाल को छोड़कर किसी दाल की मिलिंग की व्यवस्था नहीं है। मिल्ड् (दली हुई) तुर दाल उपलब्ध कराया जाता है, तो लाभुकों को 1 किलोग्राम प्रतिमाह के हिसाब से प्रतिमाह 16,500 मैट्रिक टन की आवश्यकता होगी। जबकि 2,690 मैट्रिक टन के हिसाब से ही ‘अनमिल्ड तुर दाल’ आवंटित किया गया है। इसके वितरण के लिए ट्रांसपोर्टेशन में आने वाले खर्च की भी मांग की गयी थी, पर उसका कोई जवाब अभी तक नहीं आया, न ही राशि भेजी गयी। हम इसे दूसरे राज्यों में इसे दलेंगे तो उसपर अलग से राशि खर्च होगी।
डाईरेक्ट बेनिफिट ट्रांस्फर और प्वाईंट ऑफ सेल अगले महीने-
श्री सहनी ने कहा कि जन वितरण प्रणाली में डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांस्फर प्रक्रिया के लिए कार्य प्रगति पर है। लाभुकों के बैंक खाते, आधार कार्ड को लिंक करने का कार्य पूरा किया जा चुका है। अगले महीने डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांस्फर की शुरुआत पुर्णिया के कस्बा प्रखंड में शुरू की जायेगी। और अगस्त में ही प्वाईंट ऑफ सेल की शुरुआत नालंदा जिले के नूरसराय प्रखंड से की जायेगी। दोनों में से जनता की सहुलियत के हिसाब से जो ज्यादा बेहतर होगा। उसे पूरे प्रदेश में लागू किया जायेगा। राम विलास पासवान प्वाईंट ऑफ सेल लगाने की बात कर रहे हैं, जबकि मीडिया के माध्यम से इसके संबंद में पूर्व में जानकारी दी जा चुकी है।
पूरी तरह सफल नहीं है प्वाईंट ऑफ सेल-
श्री सहनी ने कहा कि प्वाईंट ऑफ सेल पूरी तरह सफल नहीं है. राजस्थान और मध्य प्रदेश में बहुत तरह की शिकायतें मिल रही है कि वहां प्वाईंट ऑफ सेल पूरी तरह सफल नहीं है. कई बार अंगुलियों के निशान स्कैन नहीं हो पाने से गरीबों को अनाज नहीं मिल पाता है. इसलिए प्वाईंट ऑफ सेल और डाईरेक्ट बेनिफिट ट्रांस्फर में से जो ज्यादा सफल रहेगा, उसे प्रदेश में लागु किया जायेगा |