(पंकज कुमार श्रीवास्तव)भले ही आज मुंबई में सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने सोहराबुद्दीन और तुलसीराम प्रजापति एनकाउंटर मामले में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को बडा सकुन दिया हो लेकिन ये मामला अभी और तुल पकडेगा। सीबीआई ने जो काँल डिटेल्स स्पेशल कोर्ट के सामने रखा,कोर्ट इससे सहमत नहीं हुआ। कारण काँल डिटेल्स से ये साबित नहीं हो सकता कि शाह इस फोन से किसी साजिश को अंजाम दे रहे थे या फिर अपने नौकरशाहों को कोई अन्य निर्देश। तर्क में दम भी है,कारण एनकाउंटर के समय अमित शाह गुजरात के गृह राज्यमंत्री थे। एक अोर आरोप है कि दोनों एनकाउंटर की साजिश उन्होंने रची, उन्हीं के कहने पर दोनों फर्जी एनकाउंटर भी हुए और इस एनकाउंटर से जूडे सभी सबूत भी मिटवाए गये। वही दूसरी ओर भाजपा का आरोप है कि उस वक्त की केन्द्र सरकार जानबुझ कर इस मामले में उन्हें फँसया। कारण कांग्रेस लोकतांञिक ढंग से गुजरात में भाजपा को हरा नहीं सकती थी। नतीजा तत्कालीन सीबीआई का इस्तेमाल किया। बहरहाल कोर्ट ने तो उनके खिलाफ सभी आरोप खारिज कर दिए हैं। लेकिन सोहराबुद्दीन शेख पर पाकिस्तानी आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैय्यबा से संबंध होने का आरोप अभी तक साबित नहीं हो पाया है। सीबीआई के मुताबिक,सोहराबुद्दीन शेख नवंबर 2005 में अपनी पत्नी के साथ बस में हैदराबाद से सांगली जा रहा था, तब गुजरात की एंटी टेररिज्म स्क्वॉड ने दोनों को पहले अगवा किया और फिर फर्जी मुठभेड़ में उनको मार गिराया। इस कांड का मुख्य हत्या गवाह तुलसीराम प्रजापति था जिसे तकरीबन सालभर बाद दिसंबर में एक फर्जी मुठभेड़ में मार गिराया गया। बहरहाल इस ममले से हटकर एक बडा प्रश्न है क्या देश की सबसे बडी जाँच ऐजेंसी सीबीआई, केंद्र सरकार का अपने विरोधियों के लिए हथियार ही साबित होती रहेगी?